Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 10
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - आप्रियः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    वन॒स्पतिं॑ पवमान॒ मध्वा॒ सम॑ङ्ग्धि॒ धार॑या । स॒हस्र॑वल्शं॒ हरि॑तं॒ भ्राज॑मानं हिर॒ण्यय॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वन॒स्पति॑म् । प॒व॒मा॒न॒ । मध्वा॑ । सम् । अ॒ङ्ग्धि॒ । धार॑या । स॒हस्र॑ऽवल्शम् । हरि॑तम् । भ्राज॑मानम् । हि॒र॒ण्यय॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वनस्पतिं पवमान मध्वा समङ्ग्धि धारया । सहस्रवल्शं हरितं भ्राजमानं हिरण्ययम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वनस्पतिम् । पवमान । मध्वा । सम् । अङ्ग्धि । धारया । सहस्रऽवल्शम् । हरितम् । भ्राजमानम् । हिरण्ययम् ॥ ९.५.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोक्तज्ञानयज्ञ उपासनीयस्य परमात्मनो गुणा वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (पवमान) हे सर्वस्य पावयितः परमात्मन् ! भवान् (मध्वा, धारया) सुष्ठुवर्षेण (वनस्पतिम्) इमं वनस्पतिं (समङ्ग्धि) सिञ्चतु कथम्भूतम् (सहस्रवल्शम्) अनेकशाखम् (हरितम्) हरितवर्णं (भ्राजमानम्) देदीप्यमानं (हिरण्ययम्) भास्वरं तं सिञ्चतु ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब उक्त यज्ञ में उपासनीय परमात्मा के गुण कथन हैं।

    पदार्थ

    (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (मध्वा धारया) सुवृष्टि से (वनस्पतिम्) इस वनस्पति को (समङ्ग्धि) सींचें जो वनस्पति (सहस्रवल्शम्) अनन्त प्रकार की है (हरितम्) हरे रंगवाली है (भ्राजमानम्) नाना प्रकार से देदीप्यमान है और (हिरण्ययम्) सुन्दर ज्योतिवाली है ॥१०॥

    भावार्थ

    परमात्मा से प्रार्थना है कि वह चराचर ब्रह्माण्डगत वनस्पति का सिञ्चन करे। इस स्वभावोक्ति अलङ्कार द्वारा परमात्मा के वृष्टिकर्तृत्वभाव का निरूपण किया है। इसी प्रकार अन्यत्र भी वेदमन्त्रों में “कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः” अथ ३।६। २७।५। इत्यादि स्थलों में वनस्पति को परमात्मा के ग्रीवास्थानी वर्णन किया है। इसी प्रकार वनस्पति को विराट्स्वरूप की शोभा वर्णन करते हुए ईश्वर से स्वभावसिद्ध प्रार्थना है ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भ्राजमान- हिरण्यय'

    पदार्थ

    [१] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (वनस्पतिम्) = वानस्पतिक भोजन से पालित शरीर को (मध्वा धारया) = माधुर्य की धारा से (समङ्धि) = अलंकृत कर। शरीर को यहाँ 'वनस्पति' कहा गया है । यह वानस्पतिक भोजनों से ही निर्मित होना चाहिए। सोम का रक्षण होने पर इस शरीर में निवास बड़ा मधुर हो जाता है, 'नीरोगता, पवित्रता व बुद्धि की तीव्रता' से जीवन मधुर ही मधुर बन जाता है । [२] हे सोम ! तू इस शरीर को (सह स्त्रवल्शं) = [सहस्+ वल्श्] आनन्दयुक्त- विकसित - शाखाओंवाला, (हरितम्) = हरा-भरा, अशुष्क जो सूखे काठ की तरह नीरस व गिरने के लिये तैयार नहीं है, (भ्राजमानम्) = तेजस्विता से दीप्त, (हिरण्ययम्) = ज्ञान ज्योतिवाला कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के रक्षण से शरीर 'विकसित अंग-प्रत्यंगवाला, अशुष्क, तेजोदीत व ज्ञान प्रकाशित' बनता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    हरे वृक्ष के तुल्य राजा का राष्ट्र-सेचन करने का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (पवमान) पवित्र करने हारे ! (मध्वा धारया) जल की धारा से जिस प्रकार (सहस्र-वल्शं हरितम् वनस्पतिं समंजते) हज़ारों कल्लों वाले हरे पेड़ को सींचा जाता है उसी प्रकार तू (वनस्पतिं) ऐश्वर्यौ, तेजों के पालक, वटादिवत् आश्रितों के पालक (सहस्र-वल्शं) सहस्रों शाखाओं से युक्त, (हरितम्) हरे भरे, भवभय-दुःखहारी, (हिरण्ययम्) हित और रमणीय, सुवर्णादि से आढ्य, (भ्राजमानं) तेजस्वी राष्ट्रकुल को (मध्वा धारया) मधुर वचन, अन्न, ज्ञान और धारा अर्थात् दण्ड-विधान रूप वाणी और जलधारा नहर आदि से (सम अङ्धि) अच्छी प्रकार उज्ज्वल कर, पूजित कर और सेचन कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः। आप्रियो देवता ॥ छन्द:-- १, २, ४-६ गायत्री। ३, ७ निचृद गायत्री। ८ निचृदनुष्टुप्। ९, १० अनुष्टुप्। ११ विराडनुष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Pavamana, lord of piety and purity in divine flow, with honeyed showers of health and excellence bless and beautify this world of nature and humanity of a thousandfold variety clothed in dear green gold of blazing beauty and divine grandeur.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराला प्रार्थना आहे की त्याने चराचर ब्रह्मांडातील वनस्पतीचे सिंचन करावे. या स्वभावोक्ति अलंकाराद्वारे परमेश्वराच्या वृष्टिकर्तृत्व भावाचे निरुपण केलेले आहे. याच प्रकारे इतरत्र ही वेदमंत्रात ‘‘कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषव’’ अथ. ३।६।२७।५ इत्यादी स्थानी वनस्पतीला परमात्म्याच्या ग्रीवा स्थानी वर्णन केलेले आहे. याच प्रकारे वनस्पतीच्या विराट-स्वरूपाची शोभा वर्णन करत ईश्वराला स्वभावसिद्ध प्रार्थना आहे. ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top