ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
असृ॑ग्र॒मिन्द॑वः प॒था धर्म॑न्नृ॒तस्य॑ सु॒श्रिय॑: । वि॒दा॒ना अ॑स्य॒ योज॑नम् ॥
स्वर सहित पद पाठअसृ॑ग्रम् । इन्द॑वः । प॒था । धर्म॑न् । ऋ॒तस्य॑ । सु॒ऽश्रिय॑ह् । वि॒दा॒नाः । अ॒स्य॒ । योज॑नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
असृग्रमिन्दवः पथा धर्मन्नृतस्य सुश्रिय: । विदाना अस्य योजनम् ॥
स्वर रहित पद पाठअसृग्रम् । इन्दवः । पथा । धर्मन् । ऋतस्य । सुऽश्रियह् । विदानाः । अस्य । योजनम् ॥ ९.७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो विविधगुणाकरत्वं वर्ण्यते।
पदार्थः
(इन्दवः) विज्ञानिनः (अस्य) अस्य परमात्मनो हि (योजनम्) सम्बन्धम् (विदाना) जानन्तः (सुश्रियः) विविधशोभा दधति (ऋतस्य) तथा च सत्यस्यास्य परमात्मनः (धर्मन्) धर्मणि तिष्ठन्तः (असृग्रम्) सुगुणान् लभन्ते ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा को अनेक धर्मों का आधार कथन करते हैं।
पदार्थ
(इन्दवः) विज्ञानी पुरुष (अस्य) इस परमात्मा के (योजनम्) सम्बन्ध को (विदाना) जानते हुए (सुश्रियः) अनन्त प्रकार की शोभाओं को धारण करते हैं (ऋतस्य) और इस सत्यरूप परमात्मा के (धर्मन्) धर्म में रहते हुए (असृग्रम्) अच्छे गुणों का लाभ करते हैं ॥१॥
भावार्थ
जो पुरुष परमात्मा और प्रकृति के सम्बन्ध को जानते हैं और परमात्मा के यथार्थ ज्ञान को जानकर उसके धर्मपथ पर चलते हैं, वे संसार में ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥१॥
विषय
ऋत के द्वारा सोम का रक्षण
पदार्थ
[१] (इन्दवः) = सोमकण (ऋतस्य पथा) = ऋत के मार्ग से [ऋत-यज्ञ] यज्ञात्मक कर्मों में लगे रहने से अथवा [ऋत, right] दिनचर्या को नियमित रूप से पालने के द्वारा (धर्मन्) = धारणात्मक कर्म में (असृग्रम्) = [सृज्यन्ते] लगाये जाते हैं । अर्थात् ऋत के द्वारा सोम का रक्षण होता है। ऋत का भाव है- [क] यज्ञात्मक कर्मों में लगे रहना, [ख] दिनचर्या का ठीक पालना। ऐसा करने से वासनाओं का आक्रमण नहीं होता, और सोम के रक्षण का सम्भव होता है, रक्षित सोम हमारा धारण करनेवाले होते हैं । [२] ये सोम (सुश्रियः) = उत्तम श्री का [शोभा का] कारण बनते हैं तथा (अस्य) = इस जीव के (योजनम्) = प्रभु के साथ मेल को (विदाना:) = जाननेवाले व प्राप्त करानेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- ऋत के द्वारा सोम का रक्षण होता है। रक्षित सोम - [क] शरीर का धारण करता है, [ख] हमें श्री सम्पन्न बनाता है, [ग] प्रभु के साथ हमारा मेल कराता है।
विषय
पवमान सोम। उत्तम जनों का धर्म नियमों का निर्माण और अनुवर्त्तन।
भावार्थ
(सु-श्रियः) उत्तम शोभायुक्त, सम्पन्न, (इन्दवः) स्नेही ऐश्वर्ययुक्त जन (ऋतस्य पथा) सत्य के मार्ग से ही (अस्य) इसके (ऋतस्य) सत्य ज्ञान वेद के (योजनम्) योग अर्थात् प्रयोग को (विदानाः) जानते हुए, (धर्मन्) धर्म मार्ग में ही (असृग्रम्) स्वयं चलें। वा (धर्मन् असृग्रम्) धर्मों, नियमों का निर्माण करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ५–९ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Knowing the relevance of their vibrant action in Dharma, wise sages, brilliant and gracious, move by the path of rectitude following the eternal law of existence created by the lord of peace and glory.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष परमात्मा व प्रकृतीचा संबंध जाणतात व परमेश्वराच्या यथार्थ ज्ञानाला जाणून त्याच्या धर्मपथावर चालतात ते जगात ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥१॥
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