ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यो हरि॒र्वने॑षु सीदति । रे॒भो व॑नुष्यते म॒ती ॥
स्वर सहित पद पाठअव्यः॑ । वारे॑ । परि॑ । प्रि॒यः । हरिः॑ । वने॑षु । सी॒द॒ति॒ । रे॒भः । व॒नु॒ष्य॒ते॒ । म॒ती ॥
स्वर रहित मन्त्र
अव्यो वारे परि प्रियो हरिर्वनेषु सीदति । रेभो वनुष्यते मती ॥
स्वर रहित पद पाठअव्यः । वारे । परि । प्रियः । हरिः । वनेषु । सीदति । रेभः । वनुष्यते । मती ॥ ९.७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
स परमेश्वरः (अव्यः वारे) प्रकाशमानभ्वादिलोकेषु (परि सीदति) सन्तिष्ठते (प्रियः) सर्वहितकरोऽस्ति (हरिः) अखिलजनस्य दुःखं हरति (वनेषु) उपासनादिभक्तिषु तस्यैवोपासनया (मती वनुष्यते) बुद्धिः शुद्ध्यति (रेभः) वेदादिशब्दप्रकाशकोऽस्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
वह परमात्मा (अव्यः वारे) “अव्यते प्रकाशते इति अविर्भ्वादिलोकः” प्रकाशवाले लोकों में (परि सीदति) रहता है (प्रियः) सर्वप्रिय है (हरिः) सबके दुखों को हरण करनेवाला है (वनेषु) उपासनादि भक्तियों में उसी की उपासना से (मती वनुष्यते) बुद्धि निर्मल होती है (रेभः) वेदादि शब्दों का प्रकाशक है ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा सब लोक-लोकान्तरों में व्यापक है और भक्तों की बुद्धि में विराजमान है अर्थात् जिसकी बुद्धि उपासनादि सत्कर्मों से निर्मल हो जाती है, उसी की बुद्धि में परमात्मा का आभास पड़ता है ॥६॥
विषय
अव्यः = सर्वोत्तमरक्षक
पदार्थ
[१] (अव्यः) = [अवति इति अव्-अच्, तेषु साधुः ] यह सोमरक्षण करनेवालों में उत्तम है। वारे रोगकृमिरूप शत्रुओं के वारण के निमित्त (परिप्रियः) = सर्वत्र प्रिय होता है । (हरि:) = शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ हमारे सब कष्टों का हरण करनेवाला होता है, [ग] (वनेषु सीदति) = उपासनाओं व ज्ञान-किरणों में यह स्थित होता है । इसके रक्षण के साधन यही हैं कि - [क] हम प्रभु की उपासना में प्रवृत्त रहें, तथा [ख] स्वाध्यायशील बनकर ज्ञान को उत्तरोत्तर बढ़ायें। [३] यह सोम का रक्षण करनेवाला (रेभ:) = प्रभु का स्तोता बनकर (मती) = बुद्धि के द्वारा (वनुष्यते) = सब वासनारूप शत्रुओं का संहार करता है [वन् To hurt]।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षकों में सर्वोत्तम है। यह हमारे सब कष्टों का हरण करता है। ज्ञान को बढ़ाता है, वृत्ति को उपासनामयी करता है। इसका रक्षक बुद्धि की तीव्रता के द्वारा वासनाओं को पराजित करता है ।
विषय
सन्मार्गोपदेशक राजा।
भावार्थ
(हरिः) मनोहर, पराक्रमी पुरुषोत्तम (प्रियः) सर्वप्रिय, होकर (अव्यः वारे) भूमि के रक्षक के वरण करने योग्य सर्वश्रेष्ठ पद पर (सीदति) विराजता है और वह (रेभः) स्वयं उत्तम विद्वान् उपदेष्टा, आज्ञापक होकर (मती) ज्ञानमयी बुद्धि या वाणी द्वारा सबको ज्ञान का सेवन कराता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ५–९ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ४ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Over the regions of light, dear, loved and destroyer of suffering, Soma, Spirit of purity and energy, resides in the heart of happy celebrants and, eloquent and inspiring, illuminates and beatifies their heart and intellect.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्व लोकलोकान्तरात व्यापक आहे व भक्ताच्या बुद्धीत विराजमान आहे. अर्थात ज्याची बुद्धी उपासना इत्यादी सत्कर्मानी निर्मल होते त्याच्याच बुद्धीत परमात्म्याचा आभास होतो. ॥६॥
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