यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 13
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - विद्वान् देवता
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
3
स्वाहा॑ म॒रुद्भिः॒ परि॑ श्रीयस्व दि॒वः स॒ꣳस्पृश॑स्पाहि।मधु॒ मधु॒ मधु॑॥१३॥
स्वर सहित पद पाठस्वाहा॑। म॒रुद्भि॒रिति॑ म॒रुत्ऽभिः॑। परि॑। श्री॒य॒स्व॒। दि॒वः। स॒ꣳस्पृश॒ इति॑ स॒म्ऽस्पृशः॑। पा॒हि॒ ॥ मधु॑। मधु॑। मधु॑ ॥१३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वाहा मरुद्भिः परिश्रीयस्व । दिवः सँस्पृशस्पाहि । मधु मधु मधु ॥
स्वर रहित पद पाठ
स्वाहा। मरुद्भिरिति मरुत्ऽभिः। परि। श्रीयस्व। दिवः। सꣳस्पृश इति सम्ऽस्पृशः। पाहि॥ मधु। मधु। मधु॥१३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे विद्वँस्त्वं मरुद्भिः स्वाहा मधु मधु मधु श्रीयस्व, संस्पृशो दिवोऽस्मान् परि पाहि॥१३॥
पदार्थः
(स्वाहा) सत्यां क्रियाम् (मरुद्भिः) मनुष्यैः सह (परि) सर्वतः (श्रीयस्व) सेवस्व। अत्र विकरणव्यत्ययेन श्यन्। (दिवः) प्रकाशाद् विद्युतः (संस्पृशः) यः संस्पृशति तस्मात् (पाहि) (मधु) कर्म (मधु) उपासनम् (मधु) विज्ञानम्॥१३॥
भावार्थः
ये पूर्णैर्विद्वद्भिः सह कर्मोपासनाज्ञानविद्यां सत्क्रियां च गृहीत्वा सेवन्ते, ते सर्वतो रक्षिताः सन्तो महदैश्वर्यं प्राप्नुवन्ति॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्वन्! आप (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (स्वाहा) सत्क्रिया (मधु) कर्म (मधु) उपासना और (मधु) विज्ञान का (श्रीयस्व) सेवन कीजिये तथा (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्श करनेवाली (दिवः) प्रकाशरूप बिजुली से हमारी (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा कीजिये॥१३॥
भावार्थ
जो लोग पूर्ण विद्वानों के साथ कर्म, उपासना और ज्ञान की विद्या तथा उत्तम क्रिया को ग्रहण कर सेवन करते हैं, वे सब ओर से रक्षा को प्राप्त हुए बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं॥१३॥
विषय
तेजस्वी रक्षक पुरुष का स्वरूप।
भावार्थ
हे राजन् ! विद्वन् ! तू ( मरुद्भिः ) प्रजागणों और हे वीर सेनापते ! तू शत्रुओं को मारने वाले वीर सैनिकों से (परिश्रीयस्व) सब तरफ से आश्रय बन । वे तेरा आश्रय लें । तु उनके द्वारा पृथ्वी का भोग कर । तू इस राष्ट्र को (दिवः ) सूर्य के समान तेजस्वी राज गण के (संस्पृशः) तीक्ष्ण स्पर्श करने वाले कष्टदायी कारण से ( पाहि ) रक्षा कर और (मधु मधु मधु) कर्म, उपासना और ज्ञान, इनका सेवन कर और इसी प्रकार शरीर में स्थित प्राण, उदान, व्यान के समान तीनों ब्रह्मबल,. क्षात्रबल और धनबल प्रदान कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विद्वान् । निचृद् गायत्री । षड्जः ॥
विषय
पति की कामना
पदार्थ
पिछले मन्त्र में पति के 'अग्नि' तुल्य होने का उल्लेख है । अग्नि की पत्नी 'स्वाहा' है, अतः प्रस्तुत मन्त्र में पत्नी को 'स्वाहा' कहा गया है। पति कहता है कि तू १. (स्वाहा) = [ स्व + हा] अपना उत्तम त्याग करनेवाली है। पत्नी के जीवन का प्रारम्भ ही त्याग से होता है। वह अपने सारे घर-बार को छोड़कर एक नये घर का निर्माण करने के लिए पग उठाती है। सामान्यतः सबको खिला-पिलाकर खाने का ध्यान करती है। अपने लिए बचे या न बचे, वह बच्चों का पूरा ध्यान करती है। माता बच्चे के पोषण के लिए अपने सारे आराम को समाप्त कर देती है। वस्तुतः माता के त्याग पर ही घर का निर्माण होता है । २. (मरुद्भिः) = प्राणों से (परिश्रीयस्व) = तू सेवित हो, अर्थात् तू प्राणशक्ति से युक्त हो। माता निर्बल हो तो सन्तान भी निर्बल होगी। माता के स्वास्थ्य पर ही बच्चों का स्वास्थ्य निर्भर वह करता है। ३. (दिवः) = [दिव्= स्वप्न] दिवास्वप्न के (संस्पृशः) = सम्पर्क से (पाहि) = अपने को (ह) = तू बचानेवाली हो, चूँकि 'दिवा स्वपन्त्याः स्वापशील:' इस ब्राह्मणवाक्य के अनुसार दिन में सोनेवाली माता का बच्चा भी सोंदू ही होगा। 'दिव्' शब्द द्यूत, जूए की प्रवृत्ति का भी संकेत करता है। माता के अन्दर नाममात्र भी जूए से धन प्राप्ति की कामना न हो, सदा पुरुषार्थजन्य धन को ही चाहे। माता में द्यूत प्रवृत्ति होने पर बच्चा भी कुछ जुआरी व सट्टेबाज ही बनेगा । ४. सबसे बढ़कर आवश्यक बात यह है कि मधु मधु (मधु) = तूने मधुर बनना, शहद के समान मधुर वचनोंवाली होना, तेरा व्यवहार माधुर्य से परिपूर्ण हो ।
भावार्थ
भावार्थ- आदर्श पत्नी में त्याग, प्राणशक्ति, पुरुषार्थ व माधुर्य का निवास होता है।
मराठी (2)
भावार्थ
जे लोक पूर्ण विद्वानांकडून ज्ञान, कर्म, उपासना करण्याची विद्या व क्रिया जाणतात. त्यांचे सर्व प्रकारे रक्षण होऊन त्यांना आत्यंतिक ऐश्वर्य प्राप्त होते.
विषय
पुनश्च तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, आपण (मरुद्भिः) मनुष्यांसह (स्वाहा) सत्क्रिया म्हणजे प्रिय आचरण करा. (मधु) कर्म (मधु) उपासना आणि (मधु) विज्ञानाचा त्यांच्यासह सेवन करा (त्या सर्वांना आपल्या कर्म आणि ज्ञानाचा लाभ होऊ द्या) तसेच (संस्पृशः) सम्यकरीत्या स्पर्श करणार्या (दिवः) प्रकाशरूप विद्युतेपासून (आकाशातील विजेपासून) आम्हा (शिष्यांना) (परि,पाहि) सर्वतः रक्षा करा. ॥13॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक प्रकांड विद्वानांसह कर्म, उपासना आणि ज्ञान तसेच आचरण यांचे ग्रहण करतात, त्यांची सर्वतः रक्षा होत असते आणि ऐश्वर्यवान होतात. ॥13॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, in the company of other men, act thou nobly, protect us from the lightning-fall. Practice action, contemplation and knowledge.
Meaning
Man of knowledge, with truth of word and deed, shine as a flame with the children of the earth, mix with them and provide all round sustenance. Save the earth from the scorching blaze of the sun. May knowledge be holy sweet. May karma be honey-sweet. May worship be heavenly sweet. May life be honey-sweet.
Translation
Svaha ! May you be surrounded by sun-rays. (1) Save us from contaminations from the sky. (2) Sweet, sweet, sweet! (3)
Notes
Marudbhiḥ, with the sun's rays. Divaḥ samspṛśaḥ, from contamination from the sky.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! আপনি (মরুদ্ভিঃ) মনুষ্যদিগের সহ (স্বাহা) সৎক্রিয়া (মধু) কর্ম্ম, (মধু) উপাসনা এবং (মধু) বিজ্ঞানের (শ্রীয়স্ব) সেবন করুন তথা (সংস্পৃশঃ) সম্যক্ স্পর্শকারিণী (দিবঃ) প্রকাশরূপ বিদ্যুৎ হইতে আমাদের (পরি, পাহি) সব দিক্ দিয়া রক্ষা করুন ॥ ১৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যাহারা পূর্ণ বিদ্বান্দিগের সহ কর্ম্ম, উপাসনা এবং জ্ঞানের বিদ্যা তথা উত্তম ক্রিয়াকে গ্রহণ করিয়া সেবন করে তাহারা সকল দিক দিয়া রক্ষা প্রাপ্ত হইয়া মহৎ ঐশ্বর্য্য লাভ করিয়া থাকেন ॥ ১৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স্বাহা॑ ম॒রুদ্ভিঃ॒ পরি॑ শ্রীয়স্ব দি॒বঃ স॒ꣳস্পৃশ॑স্পাহি ।
মধু॒ মধু॒ মধু॑ ॥ ১৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স্বাহেত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । বিদ্বান্ দেবতা । নিচৃদ্ গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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