यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 7
प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्येतु सू॒नृता॑। अच्छा॑ वी॒रं नर्यं॑ प॒ङ्क्तिरा॑धसं दे॒वा य॒ज्ञं न॑यन्तु नः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे॥७॥
स्वर सहित पद पाठप्र। ए॒तु॒। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। प्र। दे॒वी। ए॒तु॒। सू॒नृता॑। अच्छ॑। वी॒रम्। नर्य्य॑म्। प॒ङ्क्तिरा॑धस॒मिति॑ प॒ङ्क्तिऽरा॑धसम्। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। न॒य॒न्तु॒। नः॒ ॥ म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒ शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒ शी॒र्ष्णे ॥७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता । अच्छा वीरन्नर्यम्पङ्क्तिराधसन्देवा यज्ञन्नयन्तु नः । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र। एतु। ब्रह्मणः। पतिः। प्र। देवी। एतु। सूनृता। अच्छ। वीरम्। नर्य्यम्। पङ्क्तिराधसमिति पङ्क्तिऽराधसम्। देवाः। यज्ञम्। नयन्तु। नः॥ मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा शीर्ष्णे॥७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
स्त्रीपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह॥
अन्वयः
हे विद्वन्! यं वीरं नर्य्यं पङ्क्तिराधसं यज्ञं देवा नोऽस्मान्नयन्तु ब्रह्मणस्पतिः प्रैतु सूनृता देव्यच्छ प्रैतु तं मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा वयमाश्रयेम॥७॥
पदार्थः
(प्र) (एतु) प्राप्नोतु (ब्रह्मणः) धनस्य (पतिः) पालकः (प्र) (देवी) विदुषी (एतु) (सूनृता) सत्यभाषणादिसुशीलतायुक्ता (अच्छ) अत्र निपातस्य च [अ॰६.३.१३६] इति दीर्घः। (वीरम्) सर्वदुःखप्रक्षेप्तारम् (नर्यम्) नृषु साधुम् (पङ्क्तिराधसम्) यः पङ्क्तीः समुदायान् राध्नोति तम् (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) सुखसङ्गमकम् (नयन्तु) प्रापयन्तु (नः) अस्मान् (मखाय) विद्यावृद्धये (त्वा) त्वाम् (मखस्य) सुखरक्षणस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरोवद्वर्त्तमानाय (मखाय) धर्माचरणनिमित्ताय (त्वा) (मखस्य) धर्मरक्षणस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) सर्वसुखकराय (त्वा) (मखस्य) सुखवर्द्धकस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) उत्तमसुखप्रदाय॥७॥
भावार्थः
ये मनुष्या याः स्त्रियश्च स्वयं विद्यादिगुणान् प्राप्यान्यान् प्रापय्य विद्यासुखधर्मवृद्धयेऽधिकान् सुशिक्षितान् विदुषः कुर्वन्ति, ते तांश्च सततमानन्दन्ति॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
स्त्री-पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्वन्! जिस (वीरम्) सब दुःखों को हटाने वाले (नर्य्यम्) मनुष्यों में उत्तम (पङ्क्तिराधसम्) समुदायों को सिद्ध करनेवाले (यज्ञम्) सुखप्राप्ति के हेतु जन को (देवाः) विद्वान् लोग (नः) हमको (नयन्तु) प्राप्त करें (ब्रह्मणः, पतिः) धन का रक्षक जन (प्र, एतु) प्रकर्षता से प्राप्त हो (सूनृता) सत्य बोलना आदि सुशीलता वाली (देवी) विदुषी स्त्री (अच्छ) (प्र, एतु) अच्छे प्रकार प्राप्त होवे उस (त्वा) तुझको (मखाय) विद्यावृद्धि के लिये (मखस्य) सुख रक्षा के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) आपको (मखाय) धर्माचरण निमित्त के लिये (त्वा) आपके (मखस्य) धर्मरक्षा के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) आपको (मखाय) सब सुख करनेवाले के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) सब सुख बढ़ानेवाले के सम्बन्धी (शीर्ष्णे) उत्तम सुखदायी जन के लिये (त्वा) आपका आश्रय करें॥७॥
भावार्थ
जो मनुष्य और जो स्त्रियां स्वयं विद्यादि गुणों को पाकर अन्यों को प्राप्त कराके विद्या, सुख और धर्म की वृद्धि के लिये अधिक सुशिक्षित जनों को विद्वान् करते हैं, वे पुरुष और स्त्रियां निरन्तर आनन्दित होते हैं॥७॥
विषय
मुख्य शिरोमणी नायक की उत्पत्ति।
भावार्थ
(ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्म, महान् ऐश्वर्य, वेदज्ञान का पालक राजा और विद्वान् ( प्र एतु) उत्तम पद को प्राप्त हो । (सूनृता देवी) शुभ सत्य- ज्ञान से युक्त विदुषी और विद्वत् सभा ( प्र एतु) उत्तम पद को प्राप्त हो (वीरम्) वीर, शूर, सब दुःखों और शत्रुओं के प्रक्षेपक, नाशक, (नर्यम्) सब मनुष्यों के हितकारी, ( पंक्तिराधसम् ) सेना की पंक्तियों को वश में करने में समर्थ वीर पुरुष को (देवाः) विजयी, युद्धक्रीड़ाशील सैनिक औरउत्तम विद्वान् जन (नः) हमारे ( यज्ञम् ) यज्ञ अर्थात् प्रजापति पद को (नयन्त) प्राप्त करावें । (मखाय त्वा, मखस्य शीर्णे स्वा) पूज्य पद और यज्ञ या संग्राम के प्रमुख स्थान के लिये तुझे नियुक्त करते हैं । इत्यादि ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्वः । ईश्वरः । निचृदष्टिः । मध्यमः ॥
विषय
ज्ञान, सूनृतवाणी व यज्ञ
पदार्थ
प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'कण्व' मेधावी है। इसकी प्रार्थना है कि १. (ब्रह्मण: पति:) = ज्ञान का स्वामी प्रभु हमें (प्रएतु) = प्रकर्षेण प्राप्त हो। इस ज्ञान के स्वामी की प्राप्ति से हमारा ज्ञानभण्डार समृद्ध हो। २. (देवी) = दिव्यगुणोंवाली (सूनृता) = [सु+ऊन + ऋत] उत्तम, दुःखों का परिहाण करनेवाली ठीक वाणी प्रएतु प्रकर्षेण प्राप्त हो, अर्थात् हम प्रिय सत्यवाणी को बोलनेवाले हों। ३. (देवाः) = सब देव (नः) = हमें (वीरम्) = वीर बनानेवाले (नर्यम्) = नरहित के कार्यों में प्रेरित करनेवाले (पङ्क्तिराधसम्) = कर्मेन्द्रियपञ्चक, ज्ञानेन्द्रियपञ्चक प्राणपञ्चक व अन्तःकरणपञ्चक [हृदय, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार] की उत्तमता को सिद्ध करनेवाले (यज्ञम् अच्छ) = यज्ञ की ओर (नयन्तु) = ले - चलें। संक्षेप में, हमारे मस्तिष्क ज्ञान से परिपूर्ण हों, हमारी जिह्वा सूनृत वाणी का उच्चारण करनेवाली हो और हमारे हाथ यज्ञों में व्यापृत रहें । मैं (त्वा) = ज्ञान को, सूनृत वाणी को व उत्तम कर्मों को (मखाय) = सब दोषों का निवारण करनेवाले यज्ञ के लिए ग्रहण करता हूँ । (त्वा) = इन ज्ञान आदि को इसलिए अपनाता हूँ कि (मखस्य शीर्ष्णे) = यज्ञ के शिखर पर पहुँच सकूँ। यज्ञ के लिए, यज्ञ के शिखर पर पहुँचने के लिए। यज्ञ के लिए और यज्ञ के शिखर पर पहुँचने के लिए ही।
भावार्थ
भावार्थ- मेरा ज्ञान, मेरी सूनृतवाणी, मेरे उत्तम कर्म- ये सभी मुझे यज्ञमय बनाएँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जे पुरुष व स्रिया स्वतः विद्या वगैरे गुण प्राप्त करून इतरांनाही शिकवितात व विद्या, सुख आणि धर्म वाढविण्यासाठी सुशिक्षित लोकांना विद्वान करतात ते स्री-पुरुष सतत आनंदी असतात.
विषय
स्त्री-पुरुष कसे असावेत, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान, (आम्हा यम प्रेमीजनांची प्रार्थना वा कामना आहे की) (वीरम्) जनसमूहाना एकत्रित करणारा वा समाजात ऐक्य घडविणारा जो (यज्ञम्) सुखप्राप्तीचे कारण असलेला हा विशिष्ट पूज्य मनुष्य आहे, तो आणि (देवाः) विद्वज्जन (नः) आम्हा (यज्ञप्रेमीजनांना) (नयन्तु) प्राप्त व्हावेत. (ब्रह्मणः, पतिः) धनाचे रक्षण करणारा धनिक मनुष्य (प्र, एतु) आम्हाला अवश्य प्राप्त व्हावा (कारण की यज्ञपूर्तीसाठी धन हे नितांत आवश्यक आहे) तसेच यज्ञकार्यासाठी (सूनृता) सत्यभाषिणी व सदाचारिणी (देवी) विदुषी स्त्री (अच्छ) (प्र, एतु) सहज प्राप्त व्हावी (इथे द्यावी) हे विद्वान, (त्वा) आपराला (मकाय) विद्यावृद्धीसाठी आणि (मखस्य) सुखाच्या रक्षणासाठी (शीर्ष्णे) उत्तम अंग वा साधने प्राप्त करण्यासाठी आम्ही (त्वा) आपणास प्राचारण करीत आहेत. (मखाय) धर्माचरणासाठी (त्वा) आपणास (मखाय) सुखप्रदान करण्यासाठी (त्वा) आपणास आणि (मखास्य) सुखवृद्धी करण्यास (शीर्ष्णे) उत्तम सहकारी लोकांसाठी आम्ही (त्वा) आपणास निमंत्रित करीत आहोत. ॥7॥
भावार्थ
भावार्थ - जे पुरुष वा स्त्रिया स्वतः विद्या आदी गुण प्राप्त करुन इतरांनाही ते देतात आणि अशाप्रकारे समाजात विद्या, धर्म आणि सुखाची वृद्धी करण्याकरिता झटतात, सर्वांना सुशिक्षित व विद्यावान करतात, ते पुरुष व त्या स्त्रिया आनंदी राहतात. ॥7॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May the learned bring us in contact with a person, the dispeller of miseries, the leader of men, the controller of vast numbers in war, and the bestower of happiness. May we associate with a lord of wealth. May we acquire a truthful, good mannered, and well-read wife. We seek thy shelter for the advancement of knowledge, and as an excellent means of happiness. We seek thy shelter for performing religious duties, and as a nice instrument for protecting religion. We seek thy shelter as a harbinger of happiness, as an advancer and giver of happiness.
Meaning
May the sagely scholar of the Veda come and advance the yajna. May the noble ladies, scholars of the Law of Truth and the Divine Voice, come and take on the yajna for conduct. May the noble sages guide our yajna and take it forward, yajna which is good and gracious, maker of the brave, creator of great men and women, and inspirer of the leaders of the communities. Sage and scholar of the Veda, we welcome you to the yajna and request you to take it to the top of success in knowledge. Ladies of the Law, we welcome you to the yajna and we request you take it to the top of success in Dharmic values. Noble saints and scholars, we welcome you to the yajna for meticulous conduct of it and pray you take it to the top of success in the advancement of culture, good conduct and civilized manners.
Translation
May the high preceptor come to us. May brilliant divine virtues comes to us. May Nature's bounties lead us to glory and drive away every adversary and help us in the cause beneficial to men and measures leading to prosperity. (1) I invoke you for the sacrifice; I invoke you for the greatest of the sacrifices. (2) I invoke you for the sacrifice; I invoke you for the greatest of the sacrifices. (3) I invoke you for the sacrifice; I invoke you for the greatest of the sacrifices. (4)
Notes
Brahmaṇaspatiḥ, high preceptor; also, the Lord of divine knowledge. Devī sūnṛtā, brilliant speech; or, divine virtues. Devāḥ, bounties of Nature; divinities; godly persons. Vīram, one who scatters or drives away the adversaries; a hero, a warrior; also, a brave son. Naryam, beneficial for men. Pańktirädhasam, measures leading to prosperity.
बंगाली (1)
विषय
স্ত্রীপুরুষাঃ কীদৃশাঃ স্যুরিত্যাহ ॥
স্ত্রী-পুরুষ কেমন হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ ! যে (বীরম্) সকল দুঃখের নিবারক (নর্য়্যম্) মনুষ্যদিগের মধ্যে উত্তম (পঙ্ক্তিরাধসম্) সমুদায়কে সিদ্ধকারক, (য়জ্ঞম্) সুখপ্রাপ্তি হেতু ব্যক্তিকে (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (নঃ) আমাদিগকে (নয়ন্তু) প্রাপ্ত করুক (ব্রহ্মণঃ, পতিঃ) ধনের রক্ষক (প্র, এতু) প্রকর্ষতাপূর্বক প্রাপ্ত হউক (সুনৃতা) সত্য বলা ইত্যাদি সুশীলতাযুক্তা (দেবী) বিদুষী স্ত্রী (অচ্ছ) (প্র, এতু) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হউক সেই (ত্বা) আপনাকে (মখায়) বিদ্যাবৃদ্ধি হেতু (মখস্য) সুখরক্ষার (শীষে্র্×) উত্তম অবয়বের জন্য (ত্বা) আপনাকে (মখায়) ধর্মাচরণ নিমিত্ত হেতু (ত্বা) আপনার (মখস্য) ধর্ম রক্ষার (শীষে্র্×) উত্তম অবয়ব হেতু (ত্বা) আপনাকে (মখায়) সর্ব সুখকারীদের জন্য (ত্বা) আপনাকে (মখস্য) সর্ব সুখ বৃদ্ধিকারীদের সম্পর্কীয় (শীষে্র্×) উত্তম সুখদায়ী ব্যক্তির জন্য (ত্বা) আপনার আশ্রয় করি ॥ ৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে সকল মনুষ্য এবং যে সকল স্ত্রীগণ স্বয়ং বিদ্যাদি গুণ পাইয়া অন্যকে প্রাপ্ত করাইয়া বিদ্যা, সুখ ও ধর্মের বৃদ্ধির জন্য অধিক সুশিক্ষিত ব্যক্তিকে বিদ্বান্ করেন, তাহারা পুরুষ ও স্ত্রীগণ নিরন্তর আনন্দিত হয় ॥ ৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্রৈতু॒ ব্রহ্ম॑ণ॒স্পতিঃ॒ প্র দে॒ব্যে᳖তু সূ॒নৃতা॑ ।
অচ্ছা॑ বী॒রং নর্য়ং॑ প॒ঙ্ক্তিরা॑ধসং দে॒বা য়॒জ্ঞং ন॑য়ন্তু নঃ ।
ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে । ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে ।
ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে ॥ ৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রৈত্বিত্যস্য কণ্ব ঋষিঃ । ঈশ্বরো দেবতা । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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