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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शतवारः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतवारमणि सूक्त
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    ये यक्ष्मा॑सो अर्भ॒का म॒हान्तो॒ ये च॑ श॒ब्दिनः॑। सर्वा॑न् दुर्णाम॒हा म॒णिः श॒तवा॑रो अनीनशत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। यक्ष्मा॑सः। अ॒र्भ॒काः। म॒हान्तः॑। ये। च॒। श॒ब्दिनः॑। सर्वा॑न्। दु॒र्ना॒म॒ऽहा। म॒णिः। श॒तऽवा॑रः। अ॒नी॒न॒श॒त् ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये यक्ष्मासो अर्भका महान्तो ये च शब्दिनः। सर्वान् दुर्णामहा मणिः शतवारो अनीनशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। यक्ष्मासः। अर्भकाः। महान्तः। ये। च। शब्दिनः। सर्वान्। दुर्नामऽहा। मणिः। शतऽवारः। अनीनशत् ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    विषय

    रोगों के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (यक्ष्मासः) राजरोग (अर्भकाः) छोटे और [जो] (महान्तः) बड़े हैं, (च) और (ये) जो (शब्दिनः) महाशब्दकार हैं। (सर्वान्) उन सबको (दुर्णामहा) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर दाद आदि] के मिटाने हारे, (मणिः) प्रशंसनीय (शतवारः) शतवार [मन्त्र १] ने (अनीनशत्) नष्ट कर दिया है ॥३॥

    भावार्थ

    छोटे-बड़े राजरोग आदि और वे रोग जिनसे शरीर में खुजली वा चरचराहट शब्द होता है, शतावर औषध से सब नष्ट हो जाते हैं ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(ये) (यक्ष्मासः) यक्ष्माः। राजरोगाः (अर्भकाः) क्षुद्राः (महान्तः) वृद्धिं गताः (ये) (च) (शब्दिनः) महाशब्दकारकाः (सर्वान्) (दुर्णामहा) दुर्णाम्नामर्शआदिरोगाणां हन्ता (मणिः) प्रशस्तः (शतवारः) म०१। (अनीनशत्) नाशितवान् ॥

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    भाषार्थ

    (ये) जो (यक्ष्मासः) यक्ष्मरोग (अर्भकाः) अल्पकाल के हैं, (च) और (ये) जो (महान्तः) महाकाल के अर्थात् पुरातन हो गये हैं, और (शब्दिनः) श्वास-प्रश्वास में जिनमें कफवाला शब्द होता है, (दुर्णामहा) दुष्परिणामी रोगों का हनन करनेवाला (मणिः) रत्नरूप (शतवारः) शतवार (सर्वान्) उन सब यक्ष्मों का (अनीनशत्) विनाश कर देता है।

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    विषय

    अर्भक-महान्-शब्दी

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (यक्ष्मास:) = रोग (अर्भका:) = छोटे-छोटे हैं-उत्पन्नमात्र हैं, (महान्त:) = जो बड़े हैं या बढ़ गये हैं, (च) = और (ये) = जो (शाब्दिन:) = पीड़ाजनित शब्दों को उत्पन्न कराते हैं, (सर्वान्) = उन सबको यह (शतवार:) = शतसंख्याक रोगों का निवारण करनेवाली मणि (अनीनशत्) = नष्ट करती है। २. यह (मणि:) = वीर्यमणि (दुर्णामहा) = अर्शस् आदि पाप रोगों को विनष्ट करनेवाली है।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य छोटे-बड़े व पीड़ाकारी सब रोगों को दूर करता है। यह अर्शस् आदि पापरोगों का भी निवारक है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shatavara Mani

    Meaning

    Whatever the cancerous consumption, whether minor or major or virulent, all these notorious ones, Shatavara mani destroys.

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    Translation

    The wasting diseases, which are newly born and those ones, which make much noise, all of them the satavara blessing, killer of ill-named maladies, banquished away.

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    Translation

    This Shatavara dispels away the germs with its horns-like Parts and destaoys the pains with root. This stays consumption by its stalk and no trouble escapes from it.

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    Translation

    Whatever the stages of phthisis, the lowest ones, the enhanced ones, and the last ones, with high-sounding coughs, the Shatavar, the best of the herbs, thoroughly destroys all these malignant skin-diseases and ailments.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(ये) (यक्ष्मासः) यक्ष्माः। राजरोगाः (अर्भकाः) क्षुद्राः (महान्तः) वृद्धिं गताः (ये) (च) (शब्दिनः) महाशब्दकारकाः (सर्वान्) (दुर्णामहा) दुर्णाम्नामर्शआदिरोगाणां हन्ता (मणिः) प्रशस्तः (शतवारः) म०१। (अनीनशत्) नाशितवान् ॥

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