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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शतवारः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतवारमणि सूक्त
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    श॒तं वी॒रान॑जनयच्छ॒तं यक्ष्मा॒नपा॑वपत्। दु॒र्णाम्नः॒ सर्वा॑न्ह॒त्वाव॒ रक्षां॑सि धूनुते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम्। वी॒रान्। अ॒ज॒न॒य॒त्। श॒तम्। यक्ष्मा॑न्। अप॑। अ॒व॒प॒त्। दुः॒ऽनाम्नः॑। सर्वा॑न्। ह॒त्वा। अव॑। रक्षां॑सि। धू॒नु॒ते॒ ॥३६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं वीरानजनयच्छतं यक्ष्मानपावपत्। दुर्णाम्नः सर्वान्हत्वाव रक्षांसि धूनुते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम्। वीरान्। अजनयत्। शतम्। यक्ष्मान्। अप। अवपत्। दुःऽनाम्नः। सर्वान्। हत्वा। अव। रक्षांसि। धूनुते ॥३६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 36; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    विषय

    रोगों के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    उस [शतवार] ने (शतम्) सौ [अनेक] (वीरान्) वीर (अजनयत्) उत्पन्न किये हैं, (शतम्) सौ [अनेक] (यक्ष्मान्) राजरोग (अप अवपत्) इतर-वितर किये हैं। वह (सर्वान्) सब (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर आदि] को (हत्वा) मारकर (रक्षांसि) राक्षसों [रोगजन्तुओं] को (अव धूनुते) हिला डालता है ॥४॥

    भावार्थ

    शतवार महौषध के सेवन से वीर्य पुष्ट होकर सब वीर सन्तान उत्पन्न होते हैं, और सब दुष्ट रोग नष्ट होते हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(शतम्) अनेकान् (वीरान्) शूरान् (अजनयत्) उदपादयत् विश्ववारः-अ०५ (यक्ष्मान्) राजरोगान् (अपावपत्) सर्वथा विक्षिप्तवान् (दुर्णाम्नः) अर्शआदिरोगान् (सर्वान्) (हत्वा) नाशयित्वा (रक्षांसि) रोगजन्तून् (अव धूनुते) सर्वथा कम्पयति ॥

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    भाषार्थ

    शतवार (शतम्) सैकड़ों (वीरान्) वीरों को (अजनयत्) मानो नवीन जन्म देता है; (शतम्) सैकड़ों (यक्ष्मान्) यक्ष्मरोगों को (अपावयत्) दूर कर उनका वपन कर देता है; और (सर्वान्) सब (दुर्णाम्नः) दुष्टपरिणामों का (हत्वा) हनन करके (रक्षांसि) यक्ष्मरोग के कीटाणुओं को (अवधूनुते) कम्पा गिराता है।

    टिप्पणी

    [वीरान्= वीर पुरुषों को भी यदि यक्ष्मरोग हो जाए, और इस कारण वे निर्बल हो जांय, तो शतवार उन्हें पुनः वीरता-सम्पन्न कर देता है, मानो उन्हें नवीन-जन्म प्रदान कर देता है।]

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    विषय

    वीरान् अजनयत्, यक्ष्मान् अपावपत्

    पदार्थ

    १. यह शतवार मणि हमें (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त-आजीवन (वीरान् अजनयत्) = वीर बनाती है। इसके रक्षण से हम सदा वीर बने रहते हैं। यह (शतं यक्ष्मान्) = सैकड़ों रोगों को अपावपत् सुदूर विनष्ट करनेवाली होती है। २. (सर्वान) = सब (दुर्णाम्न:) = श्वित्र, दद्ग, पामा आदि दुष्ट रोगों को (हत्वा) = विनष्ट करके (रक्षांसि अवधूनुते) = सब रोगकृमियों को कम्पित करके दूर करती है।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य हमें वीर बनाता है और रोगों को दूर करता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shatavara Mani

    Meaning

    Shatavara has given new life to a hundred brave. It has eliminated a hundred cancers and consumptions. It destroys notorious ailments, and shakes and throws out dangerous and destructive causes of these killer diseases.

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    Translation

    A hundred brave sons it does produce; a hundred wasting diseases it does destroy; smiting all the ill-named maladies, it shakes away the injurious germs.

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    Translation

    Praisworthy germicidal Shatavara vanishes all those consumptions minor or complicated and those diseases which make patient crying.

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    Translation

    This wonderful herb, creating hundreds of cells of energy and vigor, roots out the germs of consumption. Killing all the malignant viruses, causing skin diseases it smashes all the atmospheric germs or microbes of the fell diseases.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(शतम्) अनेकान् (वीरान्) शूरान् (अजनयत्) उदपादयत् विश्ववारः-अ०५ (यक्ष्मान्) राजरोगान् (अपावपत्) सर्वथा विक्षिप्तवान् (दुर्णाम्नः) अर्शआदिरोगान् (सर्वान्) (हत्वा) नाशयित्वा (रक्षांसि) रोगजन्तून् (अव धूनुते) सर्वथा कम्पयति ॥

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