अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 16
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठनील॑शिखण्ड॒वाह॑न:॥१३२.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
नीलशिखण्डवाहनः ॥
स्वर रहित पद पाठनीलशिखण्डवाहन:॥१३२.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
भावार्थ
परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवल “हिरण्य” आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
टिप्पणी
पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ नील॑शिखण्डो वा हनत् ॥१६॥ (नीलशिखण्डः) नील शिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला परमेश्वर] (वा) निश्चय करके (हनत्) व्यापक है [हन गतौ, गच्छति व्याप्नोति] ॥१६॥
विषय
नील-शिखण्ड-वाहन
पदार्थ
१. वासना को जीतकर संसार के रंगों में न रंगा हुआ यह पुरुष-'नील' बनता है 'कृष्णा'-न रंगा हुआ। २. क्रोध को जीतकर यह 'शिखण्ड' [crest] मूर्धन्य-शिरोमणि बनता है। ३. लोभ को जीतकर यह न्यायार्जित धन से जीवन-यात्रा का वहन करनेवाला 'वाहन' बनता है। इसप्रकार इसका नाम 'नीलशिखण्ड वाहन' हो जाता है।
भावार्थ
हम "काम, क्रोध, लोभ' रूप तीनों शत्रओं को जीतकर नीलशिखण्डवाहन' बनें।
भाषार्थ
(नीलशिखण्डवाहनः) दो नाम हैं—नीलवाहन, और शिखण्डवाहन।
टिप्पणी
[“नील” पद तमोगुण का द्योतक है, और “शिखण्ड” पद रजोगुण का। “अजामेकां लोहित-शुक्लकृष्णाम्” (श्वेता০ उप০ ४.५) में “अजा” का अर्थ है—“न उत्पन्न होनेवाली प्रकृति”। लोहित=रजोगुण। शुक्ल=सत्त्वगुण। कृष्ण=तमोगुण। तमोगुण को मन्त्र में “नील” कहा है, और रजोगुण का निर्देश “शिखण्ड” पद द्वारा किया गया है। शिखण्ड का अर्थ है—मोर की पूंछ, जो कि रंगबिरंगी होती है। रजोगुणी व्यक्ति संसार के नानाविध रंग-बिरंगों को चाहता है। शिशुबुद्धिवाले लोग कहते हैं कि परमेश्वर “नीलवाहन” है, तमोगुणवाले जगत् का वहन करता है; और वह “शिखण्डवाहन” है, रजोगुणी जगत् का वहन करता है। तमोगुणी व्यक्ति को जगत् तमोमय दीखता है, रजोगुणी को रजोमय, तथा सत्त्वगुणी को जगत् में सत्त्वगुण दीखता है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
They say It is the bearer and sustainer of the dark and colourfu
Translation
One, the fire is Nilshikhundbahanah, the bearer of black flames and smokes.
Translation
One, the fire is Nilshikhundbahanah, the bearer of black flames and smokes.
Translation
The heavens and the earth or man and woman or Prakriti and Jivatma are like two stones of the grinding mill and the All-Pervading God alone grinds them both. O virgin, (female, earth of Prakrti) that secret of the God¬head is not so simple, as the short-sighted virgin like thee understands it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ नील॑शिखण्डो वा हनत् ॥१६॥ (नीलशिखण्डः) नील शिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला परमेश्वर] (वा) निश्चय करके (हनत्) व्यापक है [हन गतौ, गच्छति व्याप्नोति] ॥१६॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(হিরণ্যঃ) হিরণ্য [তেজোময়], (বা) এবং (দ্বৌ) দুই (নীলশিখণ্ডবাহনঃ) নীলশিখণ্ড [অসংখ্য ধন বা বাসস্থানের বাহক] তথা বাহন [সকলের বাহক], (ইতি) এইরূপ হল (যে শিশবঃ) শিশু, (একে) তা কেউ-কেউ (অব্রবীৎ) বলে ॥১৪-১৬॥
भावार्थ
পরমাত্মার অনন্ত গুণ, কর্ম, স্বভাবের কারণে নাম দিয়ে গণনা করা যায় না, যে সব লোকেরা পরমেশ্বরের কেবল "হিরণ্য" আদি নাম বলে, তাঁরা শিশুর মতোই অল্প বুদ্ধিসম্পন্ন হয়॥১৩-১৬॥ পণ্ডিত সেবকলাল কৃষ্ণদাস সংশোধিত পুস্তকে মন্ত্র ১৩-১৬ এর পাঠ এরূপ ॥ নীল॑শিখণ্ডো বা হনৎ ॥১৬॥ (নীলশিখণ্ডঃ) নীল শিখণ্ড [অসংখ্য নিধি/সম্পদ বা নিবাস স্থান প্রেরক পরমেশ্বর] (বা) নিশ্চিতরূপে (হনৎ) ব্যাপক [হন গতৌ, গচ্ছতি ব্যাপ্নোতি] ॥১৬॥
भाषार्थ
(নীলশিখণ্ডবাহনঃ) দুই নাম হল—নীলবাহন, এবং শিখণ্ডবাহন।
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