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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 132 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 7
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    न व॑निष॒दना॑ततम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । व॑निष॒त् । अना॑ततम् ॥१३२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न वनिषदनाततम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । वनिषत् । अनाततम् ॥१३२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनाततम्) बिना फैले हुए पदार्थ को (न वनिषत्) वह न माँगे ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥

    टिप्पणी

    ७−(न) निषेधे (वनिषत्) म० ६। याचतां सः (अनाततम्) अविस्तृतम्। सङ्कुचितं पदार्थम् ॥

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    विषय

    'उदारता' व 'उत्तम घर का निर्माण'

    पदार्थ

    १. (कुलायम्) = घर को कृणवात् इति बनानेवाला हो। इस कारण से (उग्रम्) = अतिशयेन तेजस्वी (आततम्) = सर्वत्र फैले हुए सर्वव्यापक प्रभु की ही (वनिषद्) = याचना करे-प्रभु को ही पाने की प्रार्थना करे। तेजस्वी, व्यापक प्रभु का आराधन करनेवाला व्यक्ति घर को सदा उत्तम बनाता है। इस आराधक के घर में सबका जीवन उत्तम होता है। २. (अनाततम्) = जो व्यापक नहीं, उसकी पूजा न करे, अर्थात् व्यक्ति को गुरु धारण करके उसकी पूजा में ही न लग जाए। * पति घर में रोटी पकाये चूँकि पत्नी गुरुजी के दर्शन को गई हुई है' यह भी कोई घर है? और इन गुरुओं के कारण परस्पर फटाव व अकर्मण्यता उत्पन्न हो जाती है, चूंकि उनका विचार होता है कि गुरुजी का आशीर्वाद ही सब-कुछ कर देगा। अविस्तृत-संकुचित व अनुदार की (न वनिषत्) = याचना न करे। 'उदारं धर्ममित्याहुः'उदार ही धर्म है। संकुचित तो कभी धर्म होता ही नहीं। महत्ता ही उपादेय हो। यह महान् पुरुष ही उत्तम घर का निर्माण करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    जो यह चाहता है कि वह उत्तम घर का निर्माण करे-उसे तेजस्वी, सर्वव्यापक प्रभु की ही याचना करनी चाहिए। यह कभी अनुदारता व अल्पता की ओर नहीं जाता।

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    भाषार्थ

    उपासक (अनाततम्) अव्यापक की (न वनिषत्) संभक्ति न किया करे। [वनिषत्=वन् संभक्तौ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Let man not worship any power and presence which is not the omnipresent umbrella presence in, over and beyond the world of nature.

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    Translation

    One should not attain whatever is not pervasive.

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    Translation

    One should not attain whatever is not pervasive.

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    Translation

    Which amongst the vital breaths, creates a (Karkari) vacuum for him to rise higher up in spiritual elevation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(न) निषेधे (वनिषत्) म० ६। याचतां सः (अनाततम्) अविस्तृतम्। सङ्कुचितं पदार्थम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অনাততম্) অবিস্তৃত পদার্থ (ন বনিষৎ) তাঁরা চায় না/কামনা করে না॥৭॥

    भावार्थ

    পরমাত্মাই এই সকল লোক-সমূহের নির্মাণ করেছেন। মনুষ্য নিজের হৃদয় সর্বদা প্রসারিত করুক, কখনো সঙ্কুচিত না করুক ॥৫-৭॥

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    भाषार्थ

    উপাসক (অনাততম্) অব্যাপকের (ন বনিষৎ) সম্যক্ ভক্তি না করুক। [বনিষৎ=বন্ সম্ভক্তৌ।]

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