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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 132 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 4
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    तद्वात॒ उन्म॑थायति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । वात॒: । उन्म॑थायति ॥१३२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्वात उन्मथायति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । वात: । उन्मथायति ॥१३२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (तत्) उस [ब्रह्म] को (वातः) वायु (उन्मथायति) अच्छे प्रकार मथन [मनन] करता है ॥४॥

    भावार्थ

    वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥

    टिप्पणी

    ४−(तत्) ब्रह्म (वातः) वायुः (उन्मथायति) उत्तमतया मथनं मननं करोति ॥

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    विषय

    प्राणसाधना व प्रभु का मनन

    पदार्थ

    १. वे प्रभु करिक: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के पदार्थों के कर्ता हैं। निखातकः स्वयं स्वस्थान में सढरूप से स्थित है, 'कूटस्थ, अचल व ध्रुव' हैं। स्वयं गतिशून्य होते हुए सारे ब्रह्माण्ड को गति देनेवाले हैं [तदेजति तन्नजति] २. तत्-उस ब्रह्म को वात:-वायु के समान निरन्तर क्रियाशील पुरुष अथवा प्राणसाधना करनेवाला पुरुष [वायुः प्राणो भूत्वा] उन्मथायति-उत्तमतया मन्थित करता है। यह प्राणसाधक ही दीस प्रज्ञावाला बनकर प्रभु का मनन कर पाता है।

    भावार्थ

    प्रभु सर्वकर्ता व स्वस्थान में सुदृढ़ हैं-कूटस्थ हैं। प्राणसाधक पुरुष ही प्रभु का मनन कर पाता है।

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    भाषार्थ

    (तद्) वह ब्रह्म (वातः) मानो झंझावात के सदृश होकर (उन्मथायति) प्रलयकाल के उपस्थित होने पर जगत् को मथ डालता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    That is the wind and storm that churns and shakes up the world of existence.

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    Translation

    That God like wind shakes every thing.

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    Translation

    That God like wind shakes everything.

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    Translation

    He (soul) creates a place of refuge for himself under Him (God).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(तत्) ब्रह्म (वातः) वायुः (उन्मथायति) उत्तमतया मथनं मननं करोति ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তৎ) সেই [ব্রহ্মকে] (বাতঃ) বায়ু (উন্মথায়তি) উত্তম প্রকারে মথন [মনন] করে ॥৪॥

    भावार्थ

    এই ব্রহ্ম নিরাধার একাকী হয়ে সকলের আধা এবং নির্মাতা, বায়ু আদি পদার্থ পরমেশ্বরের আজ্ঞায় কার্য করে। সকল মনুষ্য সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করুক ॥১-৪॥

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    भाषार्थ

    (তদ্) সেই ব্রহ্ম (বাতঃ) মানো ঝঞ্ঝাবাতের সদৃশ হয়ে (উন্মথায়তি) প্রলয়কাল উপস্থিত হলে জগত মন্থনকারী/মথনকারী।

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