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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 132 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 2
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    अला॑बुकं॒ निखा॑तकम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अला॑बुक॒म् । निखा॑तकम् ॥१३२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अलाबुकं निखातकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अलाबुकम् । निखातकम् ॥१३२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अलाबुकम्) न डूबनेवाला और (निखातकम्) दृढ़ जमा हुआ है ॥२॥

    भावार्थ

    वह ब्रह्म निराधार अकेला होकर सबका आधार और बनानेवाला है, वायु आदि पदार्थ उसकी आज्ञा में चलते हैं। सब मनुष्य उसकी उपासना करें ॥१-४॥

    टिप्पणी

    २−(अलाबुकम्) म० १। (निखातकम्) खनु अवदारणे-क्त, स्वार्थे कन्। खनित्वा दृढीकृत्य स्थापितम् ॥

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    विषय

    'सर्वव्यापक-अद्वितीय-कूटस्थ' प्रभु

    पदार्थ

    १. (आत्) = सर्वथा [at all] वे प्रभु (अलाबुकम्) = [लवि अवलंसने] न अध:पतनशील हैं। वे प्रभु निराधार होते हुए सर्वाधार हैं। सर्वव्यापक होने से उन्हें आधार की आवश्यकता नहीं। उनके अध:पतन का कोई प्रसंग ही नहीं-'वे किसी स्थान पर न हो' ऐसी बात ही नहीं। २. (एककम्) = वे एक ही हैं। अद्वितीय हैं। अकेले होते हुए भी सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् होने से वे अपने सब कार्यों को स्वयं कर सकते हैं। उन्हें किसी अन्य के सहाय्य की अपेक्षा नहीं। ३. (अल्लाबुकम्) = वे कभी स्त्रस्त नहीं होते। उन्हें त्रस्त होना ही कहाँ? वे तो पहले ही सब जगह हैं। (निखातकम्) = अपने स्थान पर दृढ़ता से गढ़े हुए हैं, स्थिर हैं-ध्रुव हैं 'कूटस्थः, अचलो ध्रुवः |

    भावार्थ

    प्रभु सर्वत्र व्यापक होने से अध:पतनशील व लस्त होनेवाले नहीं। वे एक, अद्वितीय हैं। अचल व ध्रुव हैं।

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    भाषार्थ

    (अलाबुकम्) तूम्बे के सदृश तैरानेवाला ब्रह्म (निखातकम्) अविद्या की जड़ खोद देता है। [निखातकम्=खनु अवदारणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    And the One that transcends as well as saves us from drowning in the ocean of existence is Brahma who uproots darkness and ignorance and that way saves us.

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    Translation

    That unsinking God is one and only one.

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    Translation

    That unsinking God is one and only one.

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    Translation

    Just as the gourd is made hollow and lighter by taking out inner matter from it, so is the soul made pure and lighter by driving out the inner impurities of its nature, which make it heavy and burdensome.

    Footnote

    The soul is freed of inner impurities, like the karkari fruit, freed of its inner material.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अलाबुकम्) म० १। (निखातकम्) खनु अवदारणे-क्त, स्वार्थे कन्। खनित्वा दृढीकृत्य स्थापितम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অলাবুকম্) অনধঃপতনশীল/ না পতনশীল এবং (নিখাতকম্) দৃঢ়ভাবে স্থাপিত/স্থিত/বর্তমান॥২॥

    भावार्थ

    এই ব্রহ্ম নিরাধার একাকী হয়ে সকলের আধা এবং নির্মাতা, বায়ু আদি পদার্থ পরমেশ্বরের আজ্ঞায় কার্য করে। সকল মনুষ্য সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করুক ॥১-৪॥

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    भाषार्थ

    (অলাবুকম্) অলাবু-এর সদৃশ উদ্ধারকারী ব্রহ্ম (নিখাতকম্) অবিদ্যার মূল উৎখাত করেন। [নিখাতকম্=খনু অবদারণে।]

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