अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 135/ मन्त्र 6
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च
छन्दः - स्वराडार्ष्यनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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आदि॑त्या ह जरित॒रङ्गि॑रोभ्यो॒ दक्षि॑णाम॒नय॑न्। तां ह॑ जरितः॒ प्रत्या॑यं॒स्तामु ह॑ जरितः॒ प्रत्या॑यन् ॥
स्वर सहित पद पाठआदि॑त्या: । ह । जरित॒: । अङ्गिर:ऽभ्य॒: । दक्षि॑णाम् । अनय॑न् ॥ ताम् । ह॑ । जरित॒: । प्रति॑ । आ॑य॒न् ॥ ताम् । ऊं॒ इति॑ । ह॑ । जरित॒: । प्रति॑ । आ॑यन् ॥१३५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
आदित्या ह जरितरङ्गिरोभ्यो दक्षिणामनयन्। तां ह जरितः प्रत्यायंस्तामु ह जरितः प्रत्यायन् ॥
स्वर रहित पद पाठआदित्या: । ह । जरित: । अङ्गिर:ऽभ्य: । दक्षिणाम् । अनयन् ॥ ताम् । ह । जरित: । प्रति । आयन् ॥ ताम् । ऊं इति । ह । जरित: । प्रति । आयन् ॥१३५.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(आदित्याः) अखण्ड ब्रह्मचारियों ने (ह) ही, (जरितः) हे स्तुति करनेवाले ! (अङ्गिरोभ्यः) विज्ञानी पुरुषों के लिये (दक्षिणाम्) दक्षिणा [दान वा प्रतिष्ठा] को (अनयन्) प्राप्त कराया है। (ताम्) उस [दक्षिणा] को (ह) ही, (जरितः) हे स्तुति करनेवाले ! (प्रति आयन्) उन्होंने प्रत्यक्ष पाया है, (ताम्) उस [दक्षिणा] को (उ) निश्चय करके (ह) ही, (जरितः) हे स्तुति करनेवाले ! (प्रति आयन्) उन्होंने प्रत्यक्ष पाया है ॥६॥
भावार्थ
मनुष्य पूर्व विद्वानों के समान विद्वानों द्वारा उत्तम शिक्षा पाकर अवश्य प्रतिष्ठित होवें ॥६॥
टिप्पणी
६−(आदित्याः) अथ० १९।११।४। अदिति−ण्य। अखण्डब्रह्मचारिणः (ह) एव (जरितः) हे स्तोतः (अङ्गिरोभ्यः) अ० २०।२८।२। विज्ञानिभ्यः (दक्षिणाम्) अथ० ।७।१। दानम्, प्रतिष्ठाम् (अनयन्) प्रापितवन्तः (ताम्) दक्षिणाम् (ह) (जरितः) (प्रति) प्रत्यक्षम् (आयन्) अथ० २०।६१।२। अगच्छम्। प्राप्नुवन् (उ) अवश्यम्। अन्यद् गतम् ॥
विषय
दक्षिणा
पदार्थ
१. हे (जरित:) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले प्रभो! (आदित्या:) = विद्यादि गुणों का आदान करनेवाले पुरुष (ह) = निश्चय से (अंगिरोभ्यः) = यज्ञों के रक्षक अंगिरसों [विद्वानों] के लिए (दक्षिणाम) = दान को (अनयन्) = प्राप्त कराते हैं। गुणों का आदान करनेवाले सद्गृहस्थ स्वयं यज्ञशील होते हुए यज्ञों के रक्षक ज्ञानी पुरुषों के लिए भी धनादि के दान द्वारा यज्ञों में सहायक होते हैं। २. हे (जरितः) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले प्रभो! (ताम्) = उस दक्षिणा को (ह) = निश्चय से (प्रत्यायन्) = ये अंगिरस् प्राप्त होते है। हे (जरितः) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले प्रभो! (ताम्) = उस दक्षिणा को (उह) = अवश्य ही (प्रत्यायन) = प्राप्त होते हैं। इस दक्षिणा-प्राप्त धनों का विनियोग वे यज्ञों में ही करते हैं।
भावार्थ
गुणों का आदान करनेवाले ज्ञानी पुरुष स्वयं घरों में यज्ञ करते ही हैं। ये यज्ञों के रक्षक अंगिरसों के लिए भी दक्षिणा प्राप्त कराके उनसे किये जानेवाले यज्ञों में सहायक होते हैं।
भाषार्थ
(आदित्याः) आदित्यसम तेजस्वी अध्यात्मगुरु जन, (ह) निश्चय से (अङ्गिरोभ्यः) प्राणाभ्यासी शिष्यों से (दक्षिणाम्) श्रद्धा और सेवारूपी दक्षिणा (अनयन्) प्राप्त करते हैं। हे (जरितः) हे वेदोपदेष्टा परमेश्वर! (ताम्) उस प्राप्त दक्षिणा को वे अध्यात्मगुरुजन, शिष्यों के प्रति (प्रत्यायन्) लौटा देते हैं—अध्यात्मिक-प्रशिक्षण और शिष्यों के संरक्षण के रूप में। (ह) निश्चय से (ताम्) उस दक्षिणा को (जरितः) हे वेदोपदेष्टा परमेश्वर! अध्यात्मगुरुजन शिष्यों के प्रति (प्रत्यायन्) लौटा देते हैं—अध्यात्म-प्रशिक्षण और शिष्यों के संरक्षण के रूप में।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
O celebrant Adityas, Brahmchari students of the highest brilliant order, bring the Dakshina, gift of gratitude, for the vibrant scholars of life sciences, and the same gift of gratitude, O celebrant, the scholars return to the harbingers in the form of knowledge, yes, O celebrant, they return it to the disciples.
Translation
The celibate men, O devotee have brough the bounty of Yajna for the priests and learned men engaged in yajnas, O devotee they have got that bountee and they have really got that bountee, O devotee.
Translation
The celibate men, O devotee have brough the bounty of Yajna for the priests and learned men engaged in yajnas, O devotee they have got that bountee and they have really got that bountee, O devotee.
Translation
O Preacher of Vedic lore, the persons-in-charge of collection of the revenue under a king bring gifts to the learned persons. They may not accept them or they may accept them, as they like.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(आदित्याः) अथ० १९।११।४। अदिति−ण्य। अखण्डब्रह्मचारिणः (ह) एव (जरितः) हे स्तोतः (अङ्गिरोभ्यः) अ० २०।२८।२। विज्ञानिभ्यः (दक्षिणाम्) अथ० ।७।१। दानम्, प्रतिष्ठाम् (अनयन्) प्रापितवन्तः (ताम्) दक्षिणाम् (ह) (जरितः) (प्रति) प्रत्यक्षम् (आयन्) अथ० २०।६१।२। अगच्छम्। प्राप्नुवन् (उ) अवश्यम्। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(আদিত্যাঃ) অখণ্ড ব্রহ্মচারীগণ, (হ) ই (জরিতঃ) হে স্তোতা! (অঙ্গিরোভ্যঃ) বিজ্ঞানী পুরুষদের জন্য (দক্ষিণাম্) দক্ষিণা [দান বা প্রতিষ্ঠা] (অনয়ন্) প্রাপ্ত করিয়েছে। (তাম্) সেই [দক্ষিণা]কে (হ) ই , (জরিতঃ) হে স্তুতিকারী! (প্রতি আয়ন্) তাঁরা প্রত্যক্ষ পেয়েছে, (তাম্) সেই [দক্ষিণা] (উ) নিশ্চিতভাবে (হ) ই, (জরিতঃ) হে স্তুতিকারী! (প্রতি আয়ন্) তাঁরা প্রত্যক্ষ পেয়েছে ॥৬॥
भावार्थ
মনুষ্য পূর্ব বিদ্বানদের মতো বিদ্বানদের দ্বারা উত্তম শিক্ষা পেয়ে নিশ্চিতভাবে প্রতিষ্ঠিত হোক ॥৬॥
भाषार्थ
(আদিত্যাঃ) আদিত্যসম তেজস্বী অধ্যাত্মগুরুগণ, (হ) নিশ্চিতরূপে (অঙ্গিরোভ্যঃ) প্রাণাভ্যাসী শিষ্যদের থেকে (দক্ষিণাম্) শ্রদ্ধা এবং সেবারূপী দক্ষিণা (অনয়ন্) প্রাপ্ত করে। (জরিতঃ) হে বেদোপদেষ্টা পরমেশ্বর! (তাম্) সেই প্রাপ্ত দক্ষিণা সেই অধ্যাত্মগুরুগণ, শিষ্যদের প্রতি (প্রত্যায়ন্) ফিরিয়ে দেন—অধ্যাত্মিক-প্রশিক্ষণ এবং শিষ্যদের সংরক্ষণ রূপে। (হ) নিশ্চিতরূপে (তাম্) সেই দক্ষিণা (জরিতঃ) হে বেদোপদেষ্টা পরমেশ্বর! আধ্যাত্মগুরুগণ শিষ্যদের প্রতি (প্রত্যায়ন্) ফিরিয়ে দেয়—আধ্যাত্ম-প্রশিক্ষণ এবং শিষ্যদের সংরক্ষণ রূপে।
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