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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
    ऋषिः - खिलः देवता - गौः, सूर्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४८
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    अ॒भि त्वा॒ वर्च॑सा॒ गिरः॑ सि॒ञ्चन्ती॒राच॑र॒ण्यवः॑। अ॒भि व॒त्सं न धे॒नवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । वर्च॑सा । गिर॒: । सिञ्च॑न्ती: । आच॑र॒ण्यव॑: ॥ अ॒भि । व॒त्सम् । न । धे॒नव॑: ॥४८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा वर्चसा गिरः सिञ्चन्तीराचरण्यवः। अभि वत्सं न धेनवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । त्वा । वर्चसा । गिर: । सिञ्चन्ती: । आचरण्यव: ॥ अभि । वत्सम् । न । धेनव: ॥४८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 48; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १-३ परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (आचरण्यवः) सब ओर चलती हुई (गिरः) वाणियाँ (त्वा) तुझको (वर्चसा) प्रकाश के साथ (अभि) सब प्रकार (सिञ्चन्तीः) सींचती हुई [हैं]। (न) जैसे (धेनवः) दुधेल गाएँ (वत्सम्) [अपने] बच्चे को (अभि) सब प्रकार [सींचती हैं] ॥१॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य प्रकाशस्वरूप परमात्मा की अनन्य भक्ति करके आनन्द पावें, जैसे गौएँ अपने तुरन्त उत्पन्न हुये बच्चों से प्रीति करके सुखी होती हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    [सूचना−मन्त्र १-३ ऋग्वेद आदि अन्य वेदों में नहीं है, और इनका पदपाठ भी गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई के पुस्तक में नहीं है। हम स्वामी विश्वेश्वरानन्द नित्यानन्द कृत पदसूची से संग्रह करके यहाँ लिखते हैं, बुद्धिमान् जन विचार लेवें। सूचना अथ० २०।३४।१२ भी देखें।]१−(अभि) सर्वतः) (त्वा) (वर्चसा) तेजसा (गिरः) वाचः (सिञ्चन्तीः) सिञ्चन्त्यः। वर्धयन्त्यः (आचरण्यवः) यजिमनिशुन्धि०। उ० ३।२०। आ+चरण गतौ-युच्। समन्ताद् गतिशीलाः (अभि) (वत्सम्) शिशुम् (न) यथा (धेनवः) दोग्ध्र्यो गावः ॥

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    विषय

    तेजस्विता व क्रियाशीलता

    पदार्थ

    १. मेरी ये (गिरः) = स्तुतिवाणियाँ (वर्चसा सिञ्चन्ती:) = मुझे तेजस्विता से सींचती हुई हैं, तथा (आचरण्यवः) = मुझे समन्तात् कर्तव्यों में चरणशील बनाती हैं। इन स्तुतिवाणियों से मुझे भी वैसा बनने की प्रेरणा मिलती है। यह प्रेरणा मुझे क्रियामय जीवनवाला बनाती है। २. ये स्तुतिवाणियाँ हे प्रभो ! (त्वा अभि) = आपकी ओर इसप्रकार प्रवृत्त होती हैं (न) = जैसेकि (वत्सम् अभि धेनवः) = बछड़े की ओर गौवें। मैं प्रीतिपूर्वक आपका स्तवन करता हूँ।

    भावार्थ

    हम प्रेम से प्रभु का स्तवन करें, यह स्तवन हमें तेजस्वी व क्रियामय जीवनवाला बनाएगा।

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    भाषार्थ

    (धेनवः) दुधार गौएँ (वत्सम् अभि) अपने-अपने बछड़े के प्रति (न) जैसे (सिञ्चन्तीः) दूध की धाराएँ सींचती हैं, वैसे हे परमेश्वर! (वर्चसा) ज्योति के साथ वर्तमान (त्वा अभि) आपके प्रति (गिरः) स्तुति-वाणियाँ (सिञ्चन्तीः) भक्तिरस सींचती हुई (आचरण्यवः) गौओं का सा आचरण कर रही हैं। [आचरण्यवः=आचरण+क्यच्+उ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O Sun, moving words of adoration flow and rise in love and worship to you with celebration of your splendour, like mother cows moving to their calf with love and overflowing milk.

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    Translation

    The voices of prayers spreading in all directions and pouring the flow of vital strength like cows towards their calf reach God Almighty.

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    Translation

    The voices of prayers spreading in all directions and pouring the flow of vital strength like cows towards their calf reach God Almighty.

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    Translation

    O God, the Vedic verses, moving in all directions, approach Thee with glory from all sides, just as the cow does her calf.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    [सूचना−मन्त्र १-३ ऋग्वेद आदि अन्य वेदों में नहीं है, और इनका पदपाठ भी गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई के पुस्तक में नहीं है। हम स्वामी विश्वेश्वरानन्द नित्यानन्द कृत पदसूची से संग्रह करके यहाँ लिखते हैं, बुद्धिमान् जन विचार लेवें। सूचना अथ० २०।३४।१२ भी देखें।]१−(अभि) सर्वतः) (त्वा) (वर्चसा) तेजसा (गिरः) वाचः (सिञ्चन्तीः) सिञ्चन्त्यः। वर्धयन्त्यः (आचरण्यवः) यजिमनिशुन्धि०। उ० ३।२०। आ+चरण गतौ-युच्। समन्ताद् गतिशीलाः (अभि) (वत्सम्) शिशुम् (न) यथा (धेनवः) दोग्ध्र्यो गावः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৩ অধ্যাত্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পরমেশ্বর!] (আচরণ্যবঃ) সকল দিকে গতিশীল (গিরঃ) বাণীসমূহ (ত্বা) তোমাকে (বর্চসা) প্রকাশের সাথে (অভি) সবপ্রকারে (সিঞ্চন্তীঃ) সিঞ্চন করে। (ন) যেমন (ধেনবঃ) দুগ্ধবতী গাভী (বৎসম্) [নিজের] বাচ্চাকে (অভি) সকল প্রকারে [সিঞ্চন করে]॥১॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য প্রকাশস্বরূপ পরমাত্মাকে অনন্য ভক্তি করে আনন্দ পায়/প্রাপ্ত হোক, যেমন গাভী নিজের সদ্যজাত বাছুরের প্রতি প্রীতি করে সুখী হয় ॥১॥সূচনা−মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদ আদি অন্য বেদে নেই, এবং পদপাঠও গভর্নমেন্ট বুকডিপো বম্বই এর পুস্তকে নেই। আমি স্বামী বিশ্বেশ্বরানন্দ নিত্যানন্দ কৃত পদসূচী থেকে সংগ্রহ করে এখানে উল্লেখ করেছি, বুদ্ধিমানগণ বিচার করে নেবেন। সূচনা অথ০ ২০।৩৪।১২ দেখো।]

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    भाषार्थ

    (ধেনবঃ) দুগ্ধবতী গাভী (বৎসম্ অভি) নিজ-নিজ বাছুরের প্রতি (ন) যেমন (সিঞ্চন্তীঃ) দুগ্ধ ধারা সীঞ্চণ করে, তেমনই হে পরমেশ্বর! (বর্চসা) জ্যোতির সহিত বর্তমান (ত্বা অভি) আপনার প্রতি (গিরঃ) স্তুতি-বাণী-সমূহ (সিঞ্চন্তীঃ) ভক্তিরস সীঞ্চণ করে (আচরণ্যবঃ) গাভীর স্বরূপ/সদৃশ আচরণ করছে। [আচরণ্যবঃ=আচরণ+ক্যচ্+উ।]

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