अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 6
त्रिं॒शद्धामा॒ वि रा॑जति॒ वाक्प॑त॒ङ्गो अ॑शिश्रियत्। प्रति॒ वस्तो॒रह॒र्द्युभिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्रिं॒शत् । धाम॑ । वि । रा॒ज॒ति॒ । वाक् । प॒त॒ङ्ग: । अ॒शि॒श्रि॒य॒त् ॥ प्रति॑ । वस्तो॑: । अह॑: । द्युऽभि॑: ॥४८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिंशद्धामा वि राजति वाक्पतङ्गो अशिश्रियत्। प्रति वस्तोरहर्द्युभिः ॥
स्वर रहित पद पाठत्रिंशत् । धाम । वि । राजति । वाक् । पतङ्ग: । अशिश्रियत् ॥ प्रति । वस्तो: । अह: । द्युऽभि: ॥४८.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सूर्य वा भूमि के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(पतङ्गः) चलनेवाला वा ऐश्वर्यवाला सूर्य (त्रिंशद् धामा) तीस धामों पर [दिन-रात्रि के तीस मुहूर्तों पर] (वस्तोः, अहः) दिन-दिन (द्युभिः) अपनी किरणों और गतियों के साथ (प्रति) प्रत्यक्ष रूप से (वि) विविध प्रकार (राजति) राज करता वा चमकता है, (वाक्) इस वचन ने [उस सूर्य में] (अशिश्रियत्) आश्रय लिया है ॥६॥
भावार्थ
यह बात स्वयं सिद्ध है कि यह सूर्य सर्वदा सब ओर चमकता रहकर अपनी परिधि के सब लोकों को गमन, आकर्षण, विकर्षण, वृष्टि, शीत, ताप आदि द्वारा स्थिर रखता है ॥६॥
टिप्पणी
४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० ६।३१।१-३ ॥
विषय
तीसों धाम
पदार्थ
१. यह साधक (प्रिंशत् धाम) = तीसों स्थानों में (विराजति) = चमकता है। दिन की तीसों घड़ियों में वा महीने के तीसों दिनों में दीप्तिवाला होता है। इसकी (वाक्) = वाणी (पतङ्गः) = उस सूर्यसम ज्योतिवाले ब्रह्म को (अशिश्रियत्) = सेवित करती है, अर्थात् यह वाणी से प्रभु का ही गुणगान करता है। २. यह साधक (प्रतिवस्तो:) = प्रतिदिन (अहः) = [एव] निश्चय से (घुभि:) = ज्ञान-ज्योतियों से उपलक्षित होता है। इसका ज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है।
भावार्थ
हम सदा प्रभु के नाम का जप करें और अपने को ज्ञान-ज्योति से दीस करें। अगले सूक्त में भी ऋषि पूर्ववत् ही है -
भाषार्थ
(पतङ्गः) जीवात्म-पक्षी, जब तक (त्रिंशत् धामा=धामानि) दिन-रात के ३० मुहूर्तों में, देह में (अशिश्रियत्) परमेश्वर के नियमानुसार आश्रय पाता है, तब तक (वाक्) वाक् आदि इन्द्रियाँ भी, जागरित तथा प्रसुप्तावस्था में, (प्रति वस्तोः) प्रतिदिन, (अहः द्युभिः) दिन के आरम्भक प्रकाशों से लेकर, (त्रिंशत् धामा) तीस मुहूर्तों तक (वि राजति) शरीर में विराजमान रहती हैं।
टिप्पणी
[पतङ्ग का अर्थ होता है—पक्षी। पतङ्ग का धात्वर्थ है—“उड़ जाने वाला”। जीवात्मा को मन्त्र में पतङ्ग कहा है। त्रिशद् धामा=रात-दिन में ३० मुहूर्त होते हैं। मन्त्र में यह दर्शाया है कि शरीर में इन्द्रियाँ तभी तक काम करती हैं, जब तक कि शरीर में जीवात्मा की सत्ता है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Thirty stages of the day from every morning to evening does the sun rule with the rays of its light while songs of adoration are raised and offered to the mighty ‘Bird’ of heavenly space.
Translation
This sun shines throughout thirty Muhurtas and through out the days. The speech (known as Sauri Vak) rest in it.
Translation
This sun sines throughout thirty Muhurtas and throughout the days. The speech (known as Sauri Vak) rest in it.
Translation
See A.V.6.31.3
Footnote
(4-6) cf. Rig, 10,184 or A.V. 6.31. Verse 3 has two readings, (ii) is according to Krishna Lal edited Samhita
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० ६।३१।१-३ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
৪-৬ সূর্যস্য ভূমের্বা গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(পতঙ্গঃ) গমনকারী বা ঐশ্বর্যবিশিষ্ট সূর্য (ত্রিংশৎ ধামা) ত্রিশ ধামে [দিন রাত্রির ত্রিশ মুহূর্তে] (বস্তোঃ, অহঃ) দিন-দিন (দ্যুভিঃ) নিজের কিরণ এবং গতির সাথে (প্রতি) প্রত্যক্ষরূপে (বি) বিবিধ প্রকারে (রাজতি) রাজ করে বা চমকিত হয়, (বাক্) এই বচন [সেই সূর্যে] (অশিশ্রিয়ৎ) আশ্রয় নিয়েছে ॥৬॥
भावार्थ
এই কথা স্বয়ংসিদ্ধ যে এই সূর্য সর্বদা সবদিকে চমকিত থেকে নিজের পরিধির লোক-সমূহকে গমন, আকর্ষণ, বিকর্ষণ, বৃষ্টি, শীত, তাপ আদি দ্বারা স্থির রাখে ॥৬॥
भाषार्थ
(পতঙ্গঃ) জীবাত্ম-পক্ষী, যতক্ষণ পর্যন্ত (ত্রিংশৎ ধামা=ধামানি) দিন-রাতের ৩০ মুহূর্তে, দেহে (অশিশ্রিয়ৎ) পরমেশ্বরের নিয়মানুসারে আশ্রয় পায়, ততক্ষণ পর্যন্ত (বাক্) বাক্ আদি ইন্দ্রিয়-সমূহ, জাগরিত তথা প্রসুপ্তাবস্থায়, (প্রতি বস্তোঃ) প্রতিদিন, (অহঃ দ্যুভিঃ) দিনের আরম্ভক প্রকাশ থেকে শুরু করে, (ত্রিংশৎ ধামা) ত্রিশ মুহূর্ত পর্যন্ত (বি রাজতি) শরীরে বিরাজমান থাকে।
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