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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 12
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - मरुद्गणः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९
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    आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे। दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आत् । अह॑ । स्व॒धाम् । अनु॑ । पुन॑: । ग॒र्भ॒ऽत्वम् । आ॒ऽई॒रि॒रे ॥ दधा॑ना: । नाम॑ । य॒ज्ञिय॑म् ॥६९.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे। दधाना नाम यज्ञियम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आत् । अह । स्वधाम् । अनु । पुन: । गर्भऽत्वम् । आऽईरिरे ॥ दधाना: । नाम । यज्ञियम् ॥६९.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (आत्) फिर (अह) अवश्य (स्वधाम् अनु) अपनी धारण शक्ति के पीछे (यज्ञियम्) सत्कारयोग्य (नाम) नाम [यश] का (दधानाः) धारण करते हुए लोगों ने (पुनः) निश्चय करके (गर्भत्वम्) गर्भपन [सारपन, बड़े पद] को (एरिरे) सब प्रकार से पाया है ॥१२॥

    भावार्थ

    जहाँ पर पूर्वोक्त प्रकार से न्याययुक्त स्वतन्त्रता के साथ लोग कार्य करते हैं, वहाँ पर सब पुरुष बड़ाई पात हैं ॥१२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र, आचुका है-अ० २०।४०।३ ॥ १२-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० २०।४०।३ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या, अथर्व० २०.४०.३॥

    पदार्थ

    अगले सूक्त का ऋषि भी 'मधुच्छन्दाः' ही है -

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    भाषार्थ

    देखो—२०.४०.३।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Bearing the sacred vapours of yajna as is their wont and nature, the winds rise to the sky, hold the clouds in their womb, and after the rain carry on the cycle with the sun-rays and yajna-fire.

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    Translation

    Maruts, the souls, in accordance with Sradha, the fruit of previous action possessing mundane desire (NAM) again come in life (birth) through mothers’ womb.

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    Translation

    Maruts, the souls, in accordance with Svadha. the fruit of previous action possessing mundane desire (NAM) again come in life (birth) through mothers’ womb.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र, आचुका है-अ० २०।४०।३ ॥ १२-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० २०।४०।३ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (আৎ) তদনন্তর (অহ) অবশ্য (স্বধাম্ অনু) নিজের ধারণ শক্তির অনুকরণে (যজ্ঞিয়ম্) সৎকারযোগ্য (নাম) নাম [যশ] (দধানাঃ) ধারণকারী মনুষ্যগণ (পুনঃ) নিশ্চয়ই (গর্ভত্বম্) গর্ভত্ব [সারাংশ, উচ্চ পদ] (এরিরে) সকল প্রকারে প্রাপ্ত করেছে ॥১২॥

    भावार्थ

    যেখানে পূর্বোক্ত প্রকারে ন্যায়যুক্ত স্বতন্ত্রতার সাথে লোকজন কার্য করে, সেখানে সকল পুরুষ প্রশংসিত হন ॥১২॥

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    भाषार्थ

    দেখো—২০.৪০.৩।

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