Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 69 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 9
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९
    0

    यु॒ञ्जन्ति॑ ब्र॒ध्नम॑रु॒षं चर॑न्तं॒ परि॑ त॒स्थुषः॑। रोच॑न्ते रोच॒ना दि॒वि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जन्ति॑ । ब्र॒ध्नम् । अ॒रु॒षम् । चर॑न्तम् । परि॑ । त॒स्थुष॑: ॥ रोच॑न्ते । रो॒च॒ना । दि॒वि ॥६९.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जन्ति ब्रध्नमरुषं चरन्तं परि तस्थुषः। रोचन्ते रोचना दिवि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जन्ति । ब्रध्नम् । अरुषम् । चरन्तम् । परि । तस्थुष: ॥ रोचन्ते । रोचना । दिवि ॥६९.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ९-११ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्थुषः) मनुष्य आदि प्राणियों और लोकों में (परि) सब ओर से (चरन्तम्) व्यापे हुए, (ब्रध्नम्) महान् (अरुषम्) हिंसारहित [परमात्मा] को (रोचना) प्रकाशमान पदार्थ (दिवि) व्यवहार के बीच (युञ्जन्ति) ध्यान में रखते और (रोचन्ते) प्रकाशित होते हैं ॥९॥

    भावार्थ

    परमाणुओं से लेकर सूर्य आदि लोक और सब प्राणी सर्वव्यापक, सर्वनियन्ता परमात्मा की आज्ञा को मानते हैं, उसीकी उपासना से मनुष्य पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके आत्मा की उन्नति करें ॥९॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ९-११ आचुके हैं-अ० २०।२६।४-६ तथा ४७।१०-१२ ॥ ९-११−एते मन्त्रा आगताः-अ० २०।२६।४-६ तथा ४७।१०-१२ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    देखो व्याख्या, अथर्व० २०.२६.४-६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (ब्रध्नम्) सबसे महान् (अरुषम्) रोषरहित, (तस्थुषः परि चरन्तम्) चारों ओर स्थित जगत् में विचरनेवाले परमेश्वर को, ध्यानी, उपासक, (युञ्जन्ति) अपने साथ योगविधियों द्वारा युक्त करते हैं, सम्बद्ध करते हैं, जिसके कि सामर्थ्य द्वारा (दिवि) द्युलोक में (रोचना) रुचिकर चमकीले तारा गण (रोचन्ते) चमक रहे हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Pious souls in meditation commune with the great and gracious lord of existence immanent in the steady universe and transcendent beyond. Brilliant are they with the lord of light and they shine in the heaven of bliss.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The people co-operate the great brilliant king administering the subject and land concerned with his territory. Like the stars shining in the sky they shine with splendour.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The people co-operate the great brilliant king administering the subject and land concerned with his territory. Like the stars shining in the sky they shine with splendor.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ९-११ आचुके हैं-अ० २०।२६।४-६ तथा ४७।१०-१२ ॥ ९-११−एते मन्त्रा आगताः-अ० २०।२६।४-६ तथा ४७।१०-१२ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ ৯-১১ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তস্থুষঃ) মনুষ্যাদি প্রাণীদের মধ্যে এবং লোকসমূহে (পরি) সকল দিক হতে (চরন্তম্) ব্যাপ্ত, (ব্রধ্নম্) মহান (অরুষম্) হিংসারহিত [পরমাত্মাকে] (রোচনা) প্রকাশমান পদার্থ (দিবি) ব্যবহারের মধ্যে (যুঞ্জন্তি) স্মরণ রাখে এবং (রোচন্তে) প্রকাশিত হয় ॥৯॥

    भावार्थ

    পরমাণু থেকে শুরু করে সূর্যাদি লোক ও সকল প্রাণী সর্বব্যাপক, সর্বনিয়ন্তা পরমাত্মার আজ্ঞা মান্য করে, এবং পরমাত্মার উপাসনা দ্বারা মনুষ্যগণ পদার্থের জ্ঞান প্রাপ্ত করে আত্মার উন্নতি করে/করুক ॥৯॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (ব্রধ্নম্) সবথেকে মহান্ (অরুষম্) রোষরহিত, (তস্থুষঃ পরি চরন্তম্) চারিদিকে স্থিত জগতে বিচরণকারী পরমেশ্বরকে, ধ্যানী, উপাসক, (যুঞ্জন্তি) নিজের সাথে যোগবিধি দ্বারা যুক্ত করে, যার সামর্থ্য দ্বারা (দিবি) দ্যুলোকে (রোচনা) রুচিকর জাজ্বল্যমান তারাগণ (রোচন্তে) চমকিত হচ্ছে।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top