अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
नि ष्वा॑पया मिथू॒दृशा॑ स॒स्तामबु॑ध्यमाने। आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ ॥
स्वर सहित पद पाठनि । स्वा॒प॒य॒ । मि॒थु॒ऽदृशा॑ । स॒स्ताम् । अबु॑ध्यमाने॒ । इति॑ । आ । तु । न॒: । इ॒न्द्र॒ । शं॒स॒य॒ । गोषु॑ । अश्वे॑षु । शु॒भ्रिषु॑ । स॒हस्रे॑षु । तु॒वि॒ऽम॒घ॒ ॥७४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
नि ष्वापया मिथूदृशा सस्तामबुध्यमाने। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ ॥
स्वर रहित पद पाठनि । स्वापय । मिथुऽदृशा । सस्ताम् । अबुध्यमाने । इति । आ । तु । न: । इन्द्र । शंसय । गोषु । अश्वेषु । शुभ्रिषु । सहस्रेषु । तुविऽमघ ॥७४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
[हे राजन्] (मिथुदृशा) दोनों हिंसा दिखानेवाले [शरीर और मन] को (नि स्वापय) सुला दे, (अबुध्यमाने) बिना जगे हुए वे दोनों (सस्ताम्) सो जावें। (तुविमघ) हे महाधनी (इन्द्र) इन्द्र ! ....... [मन्त्र १] ॥३॥
भावार्थ
राजा अपने सुप्रबन्ध से सब प्रजा को सुबोध और निरालसी बनावे ॥३॥
टिप्पणी
३−(निष्वापय) नितरां सुप्तं कुरु (मिथुदृशा) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। मिथृ मेधाहिंसनयोः-कु+दृशेः-क्विप्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः। द्वे हिंसादर्शके शरीरमनसी (सस्ताम्) वस स्वप्ने। शयाताम् (अबुध्यमाने) अजागरिते। निद्रां प्राप्ते। अन्यद् गतम् ॥
विषय
आत्मालोचन व स्वाध्याय
पदार्थ
१. (मिथूदृशा) = एक-दूसरे को ही देखनेवालों को (नि:ष्यापया) = निश्चितरूप में सुला दीजिए, अर्थात् हम एक-दूसरे के ही दोषों को देखने में न लगे रहें, प्रत्युत् अपने ही जीवन का आलोचन करके अपने दोषों को दूर करनेवाले बनें। २. (अबुध्यमाने) = जो प्रतिदिन स्वाध्याय के द्वारा अपने बोध को बढ़ाते नहीं वे (सस्ताम्) = समाप्त हो जाएँ [सस् cease]। हम नैत्यिक स्वाध्याय के द्वारा अपने ज्ञान को बढ़ानेवाले बनें। प्रभु से कहते हैं कि हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आत्मालोचन व स्वाध्याय करनेवाले (न:) = हमें आप (शुभेषु) = शुद्ध व (सहस्रेषु) = आनन्दयुक्त (गोषु) = ज्ञानेन्द्रियों में तथा (अश्वेषु) = कर्मेन्द्रियों में (आशंसय) = प्रशंसायुक्त जीवनवाला बनाइए। (तुवीमघ) = आप तो महान् ऐश्वर्यवाले हैं-हमें भी अपने ही समान ऐश्वर्ययुक्त कीजिए।
भावार्थ
हम आत्मालोचन व स्वाध्याय के द्वारा प्रशस्त इन्द्रियौवाले बनें।
भाषार्थ
(मिथूदृशा) मिथ्यादृष्टिवाले नर और नारियाँ (निष्वापय) अपनी मिथ्यादृष्टि की दीर्घनिद्रा में सोए से रहते हैं, और (अबुध्यमाने) यथार्थबोध को न पाकर (सस्ताम्) मिथ्यादृष्टियों के स्वप्न लेते रहते हैं। (आ तू नः০) पूर्ववत् (मन्त्र २०.७४.१)।
टिप्पणी
[मिथ्यादृष्टि=नास्तिकता=परलोक नहीं, कर्मव्यवस्था कोई नहीं, परमेश्वर नहीं, जीवात्मा नहीं—इत्यादि विचारोंवाले नास्तिक।]
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Indra, glorious lord of vitality, vision and will to live, eliminate the phantom of illusion and sloth of body and mind which mislead and depress, and let us awake and rise to a splendid state of a thousand-fold brilliance of knowledge, generous prosperity and fast advancement.
Translation
O mighty ruler, you full thousand those pairs who look on each other with passions asleep to wake no more. Do…. in thousands.
Translation
O mighty ruler, you full thousand those pairs who look on each other with passions asleep to wake no more. Do…in thousands.
Translation
Let the couple, looking at each other (with love and affection) enjoy sound sleep and remain there unconscious of any danger or dread (under thy peaceful regime) (i.e., the householders may enjoy perfect peace and tranquillity at night). (2nd part is the same as above). Or O king or commander, let the rival persons, looking at you with jealousy be thrown into the state of swooning, bordering on perfect sleep and let them remain quite unconscious. 2nd part, the same as above.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(निष्वापय) नितरां सुप्तं कुरु (मिथुदृशा) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। मिथृ मेधाहिंसनयोः-कु+दृशेः-क्विप्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः। द्वे हिंसादर्शके शरीरमनसी (सस्ताम्) वस स्वप्ने। शयाताम् (अबुध्यमाने) अजागरिते। निद्रां प्राप्ते। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে রাজন্] (মিথুদৃশা) হিংসা প্রদর্শনকারী [শরীর ও মন] কে (নি স্বাপয়) সুপ্ত করো, (অবুধ্যমানে) অজাগরিত, উভয়ই (সস্তাম্) শায়িত হোক। (তুবিমঘ) হে মহাধনী (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! ...... [মন্ত্র ১]॥৩॥
भावार्थ
রাজা নিজের সুব্যবস্থার মাধ্যমে সকল প্রজাকে সুবোধ ও নিরলস, হিসেবে গড়ে তুলবে ॥৩॥
भाषार्थ
(মিথূদৃশা) মিথ্যাদৃষ্টিযুক্ত নর এবং নারীগণ (নিষ্বাপয়) নিজের মিথ্যাদৃষ্টির দীর্ঘনিদ্রায় শায়িত থাকে, এবং (অবুধ্যমানে) যথার্থবোধ না পেয়ে (সস্তাম্) মিথ্যাদৃষ্টির স্বপ্ন নিতে থাকে। (আ তূ নঃ॰) পূর্ববৎ (মন্ত্র ২০.৭৪.১)।
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