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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - पङ्क्तिः सूक्तम् - सूक्त-७४
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    सर्वं॑ परिक्रो॒शं ज॑हि ज॒म्भया॑ कृकदा॒श्वम्। आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्व॑म् । प॒रि॒ऽक्रो॒शम् । ज॒हि॒ । ज॒म्भय॑ । कृ॒क॒दा॒श्व॑म् ॥ आ । तु । न॒: । इ॒न्द्र॒ । शं॒स॒य॒ । गोषु॑ । अश्वे॑षु । शु॒भ्रिषु॑ । स॒हस्रे॑षु । तु॒वि॒ऽम॒घ॒ ॥७४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वं परिक्रोशं जहि जम्भया कृकदाश्वम्। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वम् । परिऽक्रोशम् । जहि । जम्भय । कृकदाश्वम् ॥ आ । तु । न: । इन्द्र । शंसय । गोषु । अश्वेषु । शुभ्रिषु । सहस्रेषु । तुविऽमघ ॥७४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 74; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे राजन् !] (सर्वम्) प्रत्येक (परिक्रोशम्) निन्दक, (कृकदाश्वम्) कष्ट देनेवाले को (जहि) पहुँच और (जम्भय) मार डाल। (तुविमघ) हे महाधनी (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े प्रतापी राजन्] (तु) निश्चय करके (नः) हमको (सहस्रेषु) सहस्रों (शुभ्रिषु) शुभ गुणवाले (गोषु) विद्वानों और (अश्वेषु) कामों में व्यापक बलवानों में (आ) सब ओर से (शंसय) बड़ाईवाला कर ॥७॥

    भावार्थ

    राजा गुणों में दोष लगानेवाले कुचाली हिंसकों को नष्ट करके प्रजा को सब प्रकार सुखी रक्खे ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(सर्वम्) प्रत्येकम् (परिक्रोशम्) क्रुश आह्वाने शब्दे च-पचाद्यच्। परिक्रोशकम्। निन्दकम् (जहि) हन हिंसागत्योः। गच्छ। प्राप्नुहि (जम्भय) मारय (कृकदाश्वम) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। कृञ् हिंसायाम्-कक्। कृवापाजि०। उ० १।१। दाशृ दाने-उण्। अमि यणादेशः। पीडादातारम्। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    'परिक्रोश' से दूर

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = शत्रु-विद्रावक प्रभो! (सर्वम्) = सब (परिक्रोशम्) = गालियों को (जहि) = विनष्ट कर दीजिए। हम किसी के लिए अपशब्दों का प्रयोग न करें। निन्दात्मक वचन हमसे दूर ही रहें। (कृकदाश्वम्) = [कृक-The throat; दाश्नोति kill] गला काटने की वृत्ति को जम्भया नष्ट कर दीजिए। हम कभी भी किसी की हिंसा करनेवाले न बनें। २. हे (इन्द्र) = शत्रु-नाशक प्रभो! आप (तु) = निश्चय से (न:) = हमें (शभिषु) = शुद्ध व (सहस्त्रेषु) = संप्रसादयुक्त (गोषु) = ज्ञानेन्द्रियों व (अश्वेषु) = कर्मेन्द्रियों मैं (आशंसय) = प्रशंसनीय जीवनवाला कीजिए । (तुवीमघ) = आप अनन्त ऐश्वर्यवाले हैं। हम भी इसी प्रकार क्रोध ब क्रूरता को दूर करके अध्यात्म-सम्पत्तिवाले बनें।

    भावार्थ

    हम अभिशाप के शब्द न बोलते रहें, औरों का गला न काटते फिरें। पवित्र जीवनवाला अंग-प्रत्यंग में शक्तिवाला होता हुआ 'परुच्छेप' अगले सूक्त का ऋषि -

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (परिक्रोशम्=आक्रोशम्) परकीय निन्दावृत्ति को, तथा हमारे आन्तरिक (क्रोशम्) शोरगुल को (जहि) हम से परे कीजिए। और (कृकदाश्वम्) कुत्सित कर्मों के करने में शीघ्रकारी अर्थात् सदा तत्पर अविवेकी व्यक्ति को (जम्भय) अपनी न्याय की दाढ़ों द्वारा कुचल कीजिए। (आ तू नः০) पूर्ववत् (मन्त्र २०.७४.१)

    टिप्पणी

    [कृकदाश्वम्=कृ (कर्म)+कद् (कुत्सित)+आशुम् (आशुः—अम्)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Indra, lord of the world’s wealth and glory, silence the wail of lamentations, crush the spirit of evil, and inspire and establish us in a splendid state of thousand-fold purity of conduct, free dominion over the earth and meteoric speed of progress and attainment.

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    Translation

    O mighty ruler, you stay reviler and destroy him who injures us clandistinely. Do you, O wealthy one give us hope of beauteous horses and cows in thousands.

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    Translation

    O mighty ruler, you stay reviler and destroy him who injures us clandestinely. Do you, O wealthy one give us hope of beauteous horses and cows in thousands.

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    Translation

    O king or commander, smash all those who revile and destroy those, who secretly arrange murderous attack against you. 2nd part as before.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(सर्वम्) प्रत्येकम् (परिक्रोशम्) क्रुश आह्वाने शब्दे च-पचाद्यच्। परिक्रोशकम्। निन्दकम् (जहि) हन हिंसागत्योः। गच्छ। प्राप्नुहि (जम्भय) मारय (कृकदाश्वम) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। कृञ् हिंसायाम्-कक्। कृवापाजि०। उ० १।१। दाशृ दाने-उण्। अमि यणादेशः। पीडादातारम्। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে রাজন্ !] (সর্বম্) প্রত্যেক (পরিক্রোশম্) নিন্দুক, (কৃকদাশ্বম্) কষ্ট প্রদানকারীর নিকট (জহি) পৌঁছান এবং (জম্ভয়) বিনাশ করুন। (তুবিমঘ) হে মহাধনী (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [মহা পরাক্রমশালী রাজন্] (তু) নিশ্চিতরূপে (নঃ) আমাদের (সহস্রেষু) সহস্র (শুভ্রিষু) শুভ গুণযুক্ত (গোষু) বিদ্বান এবং (অশ্বেষু) কার্যে ব্যাপক বলবানদের মধ্যে (আ) সর্বতোভাবে (শংসয়) প্রশংসার যোগ্য করুন।

    भावार्थ

    গুণ সমূহে দোষ আরোপকারী কুটিল, হিংসুকদের বিনষ্ট করে রাজা সর্বতোভাবে প্রজাদের সুখী করেন ॥৭॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (পরিক্রোশম্=আক্রোশম্) পরকীয় নিন্দাবৃত্তিকে তথা আমাদের আন্তরিক (ক্রোশম্) কোলাহলকে (জহি) আমাদের থেকে দূর করুন। এবং (কৃকদাশ্বম্) কুৎসিত কর্ম করার ক্ষেত্রে শীঘ্রকারী অর্থাৎ সদা তৎপর অবিবেকী ব্যক্তিকে (জম্ভয়) নিজের ন্যায়ের দন্ত দ্বারা পিষ্ট করো। (আ তূ নঃ॰) পূর্ববৎ (মন্ত্র ২০.৭৪.১)

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