अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 9
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - शाला, वास्तोष्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त
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इ॒मा आपः॒ प्र भ॑राम्यय॒क्ष्मा य॑क्ष्म॒नाश॑नीः। गृ॒हानुप॒ प्र सी॑दाम्य॒मृते॑न स॒हाग्निना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा: । आप॑: । प्र । भ॒रा॒मि॒ । अ॒य॒क्ष्मा: । य॒क्ष्म॒ऽनाश॑नी: । गृ॒हान् । उप॑ । प्र । सी॒दा॒मि॒ । अ॒मृते॑न । स॒ह । अ॒ग्निना॑ ॥१२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा आपः प्र भराम्ययक्ष्मा यक्ष्मनाशनीः। गृहानुप प्र सीदाम्यमृतेन सहाग्निना ॥
स्वर रहित पद पाठइमा: । आप: । प्र । भरामि । अयक्ष्मा: । यक्ष्मऽनाशनी: । गृहान् । उप । प्र । सीदामि । अमृतेन । सह । अग्निना ॥१२.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
नवीनशाला का निर्माण और प्रवेश।
पदार्थ
(इमाः) इस (अयक्ष्माः) रोगरहित (यक्ष्मनाशनीः) रोगनाशक (अपः) जल को (प्र) अच्छे प्रकार (आ भरामि) मैं लाता हूँ। (अमृतेन) मृत्यु से बचानेवाले अन्न, घृत, दुग्धादि सामग्री और (अग्निना सह) अग्नि के सहित (गृहान्) घरों में (उप=उपेत्य) आकर (प्र) अच्छे प्रकार (सीदामि) मैं बैठता हूँ ॥९॥
भावार्थ
गृहपति रोगों से बचने और स्वास्थ्य बढ़ाने के लिये अपने घर में शुद्ध जल, अग्नि आदि पदार्थों का सदा उचित प्रयोग करें ॥९॥
टिप्पणी
९−(इमाः)। दृश्यमानाः। (आ)। समन्तात्। (अपः)। जलानि। (प्र)। (भरामि)। हरामि। (अयक्ष्माः)। यक्ष्मरहिताः। (यक्ष्मनाशनीः)। यक्ष्मनाशिकाः। स्वास्थ्यवर्धयित्रीः। (गृहान्)। भवनानि। (उप)। उपेत्य। (सीदामि)। उपविशामि। (अमृतेन)। नास्ति मृतं येन तेन। पौष्टिकेन। अन्नघृतदुग्धादिपदार्थसमूहेन। (अग्निना)। पावकेन। (सह)। सहितः ॥
विषय
अयक्ष्म-जल, अमृत अग्निं
पदार्थ
१. (इमाः) = इन (अयक्ष्मा:) = यक्ष्मा से रहित, (यक्ष्मा) = कृमियों से अनाक्रान्त (यक्ष्मनाशनी:) = यक्ष्मा को, रोग को विनष्ट करनेवाले (आप:) = जलों को (प्रभरामि) = घर में प्राप्त कराती हूँ। २. (अमृतेन) = कभी न मरनेवाले, सदा प्रज्वलित रहनेवाले (अग्निना सह) = यज्ञाग्नि के साथ (गृहान्) = घरों को (उपप्रसीदामि) = समीपता से प्राप्त होती हूँ। घर में यज्ञाग्नि कभी बुझनी नहीं चाहिए-सदा यज्ञ होने ही चाहिएँ।
भावार्थ
घरों में रोगक्रमियों से अनाक्रान्त जलों की कमी न हो, यज्ञाग्नि कभी बुझे नहीं।
विशेष
अगले सूक्त में इन जलों का ही वर्णन है। इन जलों को अग्निपक्व करके इनका प्रयोक्ता 'भृगु' [भ्रस्ज पाके] इस सूक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
(अयक्ष्मा:) यक्ष्मरहित, (यक्ष्मनाशनी:) और यक्ष्म के नाशक (इमा आपः) ये जल हैं, (इमाः) इन्हें (प्र भरामि) प्रकर्षरूप में शाला में मैं लाता हूँ। (गृहान्) घरों को (उप=उपेत्य) प्राप्त कर, (अमृतेन अग्निना सह) शीघ्र न मरने देनेवाली यज्ञियाग्नि के साथ, (प्र सीदामि) मैं प्रसन्न होता हूँ, या स्थित होता हूँ। शाला के लिए देखो (अथर्व० ९।३।१-३१)।]
विषय
बड़े २ भवन बनाने का उपदेश ।
भावार्थ
गृह में किस प्रकार के पदार्थ लावे इसका उपदेश करते हैं । (इमाः) इन (अयक्ष्मा यक्ष्मनाशनीः) रोगरहित तथा रोगनाशक स्वच्छ (आपः) जलों को मैं (प्रभरामि) अपने घर में भरूं। और (अमृतेन) अन्न के साथ २ (ऋतेन) शुद्ध, ज्ञानमय (अग्निना) अग्नि के समान तेजस्वी प्रकाशक विद्वान् के सहित (गृहान् उप) अपने गृहो में (प्र सीदामि) प्रसन्न होंकर रहूं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः । वास्तोष्पतीयम् शालासूक्तम् । वास्तोष्पतिः शाला च देवते । १,४,५ त्रिष्टुभः । २ विराड् जगती । ३ बृहती । ६ शक्वरीगर्भा जगती । ७ आर्षी अनुष्टुप् । ८ भुरिग् । ९ अनुष्टुप् । नवर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Architecture
Meaning
I bring these potfuls of water free from pollution and contagion, they cure and destroy consumptive and cancerous diseases, and I come home to my quarters and sit happy at peace with the immortal fire of yajna in company with the divines.
Translation
I bring here these waters, free from wasteful disease (consumption) and destroyers of the wasteful disease. I enter these houses with the never-dying fire (the ever-glowing one).(ayaksmā = free from disease; yaksmā-nāšanīh= destroyer of disease).
Translation
I bring here the waters which destroy consumption and are free from contagious affection. I enter in and possess this house with immortal fire, ever blazing in the Yajna Vedi of the house.
Translation
Water that kills disease, and is free from disease, here I bring. May I live happily in myhouses, full of food, in the company of learned persons brilliant like fire.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(इमाः)। दृश्यमानाः। (आ)। समन्तात्। (अपः)। जलानि। (प्र)। (भरामि)। हरामि। (अयक्ष्माः)। यक्ष्मरहिताः। (यक्ष्मनाशनीः)। यक्ष्मनाशिकाः। स्वास्थ्यवर्धयित्रीः। (गृहान्)। भवनानि। (उप)। उपेत्य। (सीदामि)। उपविशामि। (अमृतेन)। नास्ति मृतं येन तेन। पौष्टिकेन। अन्नघृतदुग्धादिपदार्थसमूहेन। (अग्निना)। पावकेन। (सह)। सहितः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(অযক্ষ্মাঃ) যক্ষ্মারহিত, (যক্ষ্মনাশনীঃ) এবং যক্ষ্মার নাশক (ইমাঃ আপঃ) এই জল, (ইমা) ইহাকে (প্র ভরামি) প্রকর্ষরূপে গৃহে আমি নিয়ে আসি। (গৃহান্) ঘরগুলোকে (উপ=উপেত্য) প্রাপ্ত করে, (অমৃতেন অগ্নিনা সহ) শীঘ্র না মরতে দেওয়া যজ্ঞিয়াগ্নির সাথে, (প্র সীদামি) আমি প্রসন্ন হই, বা স্থিত হই। শালা-এর জন্যে দেখো (অথর্ব০ ৯।৩।১-৩১) ।
मन्त्र विषय
নবশালানির্মাণং প্রবেশশ্চঃ
भाषार्थ
(ইমাঃ) এই (অযক্ষ্মাঃ) রোগরহিত (যক্ষ্মনাশনীঃ) রোগনাশক (অপঃ) জল (প্র) উত্তমরূপে (আ ভরামি) আমি নিয়ে আসি। (অমৃতেন) মৃত্যু থেকে রক্ষাকারী অন্ন, ঘৃত, দুগ্ধাদি সামগ্রী এবং (অগ্নিনা সহ) অগ্নির সহিত (গৃহান্) ঘরে (উপ=উপেত্য) এসে (প্র) উত্তমরূপে (সীদামি) আমি বসি/উপবেশন করি॥৯॥
भावार्थ
গৃহপতি রোগ থেকে বাঁচার এবং স্বাস্থ্য বৃদ্ধির জন্য নিজের ঘরে শুদ্ধ জল, অগ্নি আদি পদার্থের সদা উচিত প্রয়োগ করুক ॥৯।।
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