अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 12
ह॒तासो॑ अस्य वे॒शसो॑ ह॒तासः॒ परि॑वेशसः। अथो॒ ये क्षु॑ल्ल॒का इ॑व॒ सर्वे॒ ते क्रिम॑यो ह॒ताः ॥
स्वर सहित पद पाठह॒तास॑: । अ॒स्य॒ । वेशस॑: । ह॒तास॑: । परि॑ऽवेशस: । अथो॒ इति॑ । ये । क्षु॒ल्ल॒का:ऽइ॑व । सर्वे॑ । ते । क्रिम॑य: । ह॒ता: ॥२३.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
हतासो अस्य वेशसो हतासः परिवेशसः। अथो ये क्षुल्लका इव सर्वे ते क्रिमयो हताः ॥
स्वर रहित पद पाठहतास: । अस्य । वेशस: । हतास: । परिऽवेशस: । अथो इति । ये । क्षुल्लका:ऽइव । सर्वे । ते । क्रिमय: । हता: ॥२३.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
छोटे-छोटे दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) इस [क्रिमी] के (वेशासः) मुख्य सेवक (हतासः=हताः) नष्ट हों, और (परिवेशसः) साथी भी (हतासः) नष्ट हों। (अथो=अथ−उ) और भी (ये) जो (क्षुल्लकाः इव) बहुत सूक्ष्म आकारवाले से हैं, (ते) वे (सर्वे) सब (क्रिमयः) कीड़े (हताः) नष्ट हों ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्य अपनी स्थूल और सूक्ष्म कुवासनाओं का और उन की सामग्री का सर्वनाश कर दे, जैसे रोगजनक जन्तुओं को औषध आदि से नष्ट करते हैं ॥१२॥
टिप्पणी
१२−यथा−अ० २।३२।५। (हतासः) हताः (वेशसः) प्रवेशकाः। मुख्यसेवकाः (परिवेशसः) परितः स्थिताः। अनुचरा (अथो) अपि च (क्षुल्लकाः) क्षुदिर् सम्पेषणे−क्विप्+लक प्राप्तौ−अच्। सूक्ष्माकाराः क्षुद्रजन्तवः ॥
विषय
वेशसः परिवेशसः
पदार्थ
१. (अस्य वेशसः हतास:) = इस कृमि के घरवाले मारे गये हैं, (परिवेशसः इतास:) = इसके पड़ौसी भी मारे गये हैं। २. (अथो) = और अब (ये) = जो (क्षुल्लकाः इव) = छोटे-मोटे पीस देने योग्य से कृमि थे (ते) = वे (सर्वे कमयः हता:) = सब कृमि मारे गये हैं।
भावार्थ
कृमियों का समूलोन्मूलन ही अभीष्ट है।
भाषार्थ
(अस्य) इस राजारूप क्रिमि के (वेशस:१ ) समीप बैठनेवाले क्रिमि (हतासः ) मर गये हैं और (परिवेशसः) इसे घेरकर दूर बैठनेवाले भी (हतासः) मर गये हैं। (अथो) तथा (ये) जो (क्षुल्लकाः इव) क्षुद्र के सदृश हैं (ते सर्वे ) वे सब (क्रिमयः) क्रिमि (हताः) मर गये हैं।
टिप्पणी
[मन्त्र ११ में राजा और स्थपति का वर्णन हुआ है, अत: मन्त्र १२ में उनमें मन्त्रियों और सभासदों का वर्णन अभिप्रेत है। वेशसः हैं मन्त्री, और परिवेशस: हैं सभा के सभासद् तथा क्षुल्लकाः हैं नौकर चाकर, जोकि क्षत अर्थात क्षुधा के निवारणार्थ नौकरी करते हैं। इस प्रकार सामान्य घटना के द्वारा शासन-तत्त्वों का भी कथन हुआ है।] [१. वेशसः= प्रविष्टाः, समीपस्थाः (विश् प्रवेशने, तुदादि:)। परिवेशसः= परितः प्रविष्टाः, दूरस्था:।]
विषय
रोगकारी जन्तुओं के नाश का उपदेश।
भावार्थ
(अस्य) इस रोगजनक कीट के (वेशसः) प्रवेश करने के स्थानों को अथवा उसके सेवकों को (हतासः) विनाश कर दिया जाय और (परिवेशसः) उसके समीपवर्ती अन्य जन्तुओं को भी (हतासः) मार दिया जाय (अथो) और (ये) जो (क्षुल्लका इव) और भी छोटे २ बच्चे कच्चे हों (ते सर्वे) वे सब (क्रिमयः) विकार उत्पन्न करने वाले रोग जन्तु (हताः) मार दिये जायं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। क्रिमिजम्भनाय देवप्रार्थनाः। इन्द्रो देवता। १-१२ अनुष्टुभः ॥ १३ विराडनुष्टुप। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Destruction of Germs
Meaning
Killed are those that remained in their colony, killed are those around. And those that were too tiny, they too are destroyed. All of them are eliminated.
Translation
His dependents have also been destroyed; all his neighbours around him are destroyed. His little-one progeny also does not exist; it is all dead. (Also Av. 11.32.5)
Translation
Slain are the worms living with it one place, killed are those worms which are in its family and destroyed are all those worms which are small ones.
Translation
Destroyed are his dependants, those who dwell around him are destroyed. All the worms, that seem to be the little ones are done to death.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−यथा−अ० २।३२।५। (हतासः) हताः (वेशसः) प्रवेशकाः। मुख्यसेवकाः (परिवेशसः) परितः स्थिताः। अनुचरा (अथो) अपि च (क्षुल्लकाः) क्षुदिर् सम्पेषणे−क्विप्+लक प्राप्तौ−अच्। सूक्ष्माकाराः क्षुद्रजन्तवः ॥
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