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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - कुष्ठस्तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कुष्ठतक्मनाशन सूक्त
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    उ॑त्त॒मो नाम॑ कुष्ठास्युत्त॒मो नाम॑ ते पि॒ता। यक्ष्मं॑ च॒ सर्वं॑ ना॒शय॑ त॒क्मानं॑ चार॒सं कृ॑धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्ऽत॒म: । नाम॑ । कु॒ष्ठ॒ । अ॒सि॒ । उ॒त्ऽत॒म: । नाम॑ । ते॒ । पि॒ता । यक्ष्म॑म् । च॒ । सर्व॑म् । ना॒शय॑ । त॒क्मान॑म् । च॒ । अ॒र॒सम् । कृ॒धि॒ ॥४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तमो नाम कुष्ठास्युत्तमो नाम ते पिता। यक्ष्मं च सर्वं नाशय तक्मानं चारसं कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्ऽतम: । नाम । कुष्ठ । असि । उत्ऽतम: । नाम । ते । पिता । यक्ष्मम् । च । सर्वम् । नाशय । तक्मानम् । च । अरसम् । कृधि ॥४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 4; मन्त्र » 9
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुष्ठ) हे गुणपरीक्षक राजन् ! तू (नाम) अवश्य (उत्तमः) अतिश्रेष्ठ (असि) है, (ते) तेरा (पिता) पिता (नाम) प्रसिद्ध (उत्तमः) अति उत्तम है। (सर्वम्) सब (यक्ष्मम्) राजरोग को (च) अवश्य (नाशय) नाश कर (च) और (तक्मानम्) दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर को (अरसम्) असमर्थ (कृधि) बना ॥९॥

    भावार्थ

    उत्तम गुणी राजा अपने उत्तम कुलका स्मरण करके प्रजा की दुःखों से सदा रक्षा करे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) स्वीकारे। अवश्यम् (कुष्ठ) म० १ हे गुणपरीक्षक राजन् (असि) (उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (यक्ष्मम्) अ० २।१०।५। राजरोगं क्षयम् (च) (सर्वम्) (नाशय) निवारय (तक्मानम्) म० १ कृच्छ्रजीवनकरं ज्वरम् (च) (अरसम्) असमर्थम् (कृधि) कुरु ॥९॥

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    विषय

    यक्ष्म व तक्मा का निवारण

    पदार्थ

    १. हे (कुष्ठ) = कुष्ठ औषध! तू (उत्तम: नाम असि) = निश्चय से उत्तम है-रोगों को उखाड़ फेंकने में सर्वोत्तम है। (ते पिता उत्तमः नाम) = तेरा उत्पादक यह हिमाच्छादित पर्वत भी निश्चय से उत्तम है-यह भी रोगों को दूर करनेवाला है। इसलिए यक्ष्मा के रोगी को पर्वत पर ले जाने के लिए कहा जाता है। २. हे कुष्ठ ! तू (सर्व यक्ष्मं च नाशय) = सब रोगों को तो नष्ट कर ही (च) = और (तक्मानम्) = ज्वर को (अरसं कृधि) = नि:सार कर दे-तू ज्वर को दूर करनेवाला हो।

    भावार्थ

    कुष्ठ औषध व इसका जनक हिमाच्छादित पर्वत-दोनों ही रोगों को उखाड़ फेंकने में सर्वोत्तम हैं।



     

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    भाषार्थ

    (कुष्ठ) हे कूठ-औषध ! (उत्तमः नाम ) तू प्रसिद्ध, उत्तमकोटि का है, (ते पिता) तेरा पिता अर्थात् उत्पादक कुष्ठ-बीज (उत्तम:) उत्तमकोटि का है । (सर्वम् यक्ष्मम् ) सब प्रकार के यक्ष्म का ( नाशय) तू नाश कर, (च) और (तक्मानम् ) कष्टप्रद ज्वर को ( अरसा ) रसरहित कर ।

    टिप्पणी

    [अथवा पिता है मेघ, जोकि उत्तम है, ऊपर अर्थात् अन्तरिक्ष में तना हुआ है, फैला हुआ है। उत् +तनु ( विस्तारे + मा, अथवा "उत् +तमप्"= उत्तम बीजरूप पिता ! अरसम् = रसरहित करना अर्थात् सुखा देना, नष्ट कर देना।]

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    विषय

    कुष्ठ नामक परमात्मा वा ओषधि का वर्णन करते हैं।

    भावार्थ

    (उत्तमः नाम कुष्ठ असि) हे पार्थिव-देह में स्थित ! तू उत्तम है, (उत्तमः नाम ते पिता) हे जीव ! तेरा पिता निश्चय से उत्तम है, हे प्रभो ! (तक्मानम्) राग-द्वेष आदि रोग का तथा (यक्ष्मम्) मोहरूपी महा रोग का (नाशय) नाश कर और इन्हें (अरसं कृधि) सुखादे। (२) उत्तम सूर्य उसका पालक है। वह राजयक्ष्मा और कुष्ठ रोग का भी नाशक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिरा ऋषिः। यक्ष्मनाशनः कुष्ठो देवताः। १-४, ७, ९ अनुष्टुभः। ५ भुरिक्, ६ गायत्री। १० उष्णिग्गर्भा निचृत्। दशर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kushtha Oshadhi

    Meaning

    O kushtha, best is your name and quality, noblest is your producer and protector. Remove all consumptive and cancerous diseases. Make the takman fever totally ineffective.

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    Translation

    O kustha, most celebrated by name you. are; most celebrated by name is your father. May you drive away all wasting diseases and render fever powerless.

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    Translation

    This Kustha bears excellent name its use is also nice and good. The cause which gives rise to this plant is also excellent one. Let it exterminate all consumption and make the fever powerless.

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    Translation

    Most Excellent, indeed, art Thou, O God, Most noble is thy sire, O soul, O God, destroy anger, hatred and infatuation, and render them powerless.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) स्वीकारे। अवश्यम् (कुष्ठ) म० १ हे गुणपरीक्षक राजन् (असि) (उत्तमः) श्रेष्ठः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) तव (पिता) पालकः। जनकः (यक्ष्मम्) अ० २।१०।५। राजरोगं क्षयम् (च) (सर्वम्) (नाशय) निवारय (तक्मानम्) म० १ कृच्छ्रजीवनकरं ज्वरम् (च) (अरसम्) असमर्थम् (कृधि) कुरु ॥९॥

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