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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 109 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 109/ मन्त्र 4
    ऋषिः - बादरायणिः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रभृत सूक्त
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    आ॑दिन॒वं प्र॑ति॒दीव्ने॑ घृ॒तेना॒स्माँ अ॒भि क्ष॑र। वृ॒क्षमि॑वा॒शन्या॑ जहि॒ यो अ॒स्मान्प्र॑ति॒दीव्य॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒न॒वम् । प्र॒ति॒ऽदीव्ने॑ । घृ॒तेन॑ । अ॒स्मान् । अ॒भि । क्ष॒र॒ । वृ॒क्षम्ऽइ॑व । अ॒शन्या॑ । ज॒हि॒ । य: । अ॒स्मान् । प्र॒ति॒ऽदीव्य॑ति ॥११४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदिनवं प्रतिदीव्ने घृतेनास्माँ अभि क्षर। वृक्षमिवाशन्या जहि यो अस्मान्प्रतिदीव्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदिनवम् । प्रतिऽदीव्ने । घृतेन । अस्मान् । अभि । क्षर । वृक्षम्ऽइव । अशन्या । जहि । य: । अस्मान् । प्रतिऽदीव्यति ॥११४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 109; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    व्यवहारसिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (प्रतिदीव्ने) प्रतिकूल व्यवहार करनेवाले के नाश करने को (घृतेन) प्रकाश के साथ (अस्मान् अभि) हमारे ऊपर (आदिनवम्) प्रथम नवीन वा स्तुतिवाले [बोध] को (क्षर) छिड़क। (यः) जो (अस्मान्) हमसे (प्रतिदीव्यति) प्रतिकूल व्यवहार करता है, [उसे] (जहि) मार डाल, (वृक्षम् इव) जैसे वृक्ष को (अशन्या) बिजुली से ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य वैदिक ज्ञान से अपने विरोधी शत्रु वा अज्ञान का सर्वथा नाश करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(आदिनवम्) णु स्तुतौ-अप्। आदौ प्रथमं नवो नूतनो यस्तम्, अथवा नवः स्तवो यस्य तं बोधम् (प्रतिदीव्ने) कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्विद्युप्रतिदिवः। उ० १।१५६। प्रति+दिवु व्यवहारे-कनिन्। वा दीर्घः। क्रियार्थोपपदस्य च०। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। प्रतिदिवानं प्रतिकूलव्यवहारिणं नाशयितुम् (घृतेन) प्रकाशेन (अस्मान्) धार्मिकान् (अभि) प्रति (क्षर) क्षर संचलने। वर्षय (वृक्षम्) (इव) यथा (अशन्या) विद्युता (जहि) मारय (यः) शत्रुः (अस्मान्) (प्रतिदीव्यति) प्रतिकूलं व्यवहरति ॥

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    विषय

    ज्ञान व प्रभु-स्तवन द्वारा विरोधी की पराजय

    पदार्थ

    १. (प्रतिदीव्ने) = प्रतिकूल व्यवहार करनेवाले के लिए (अस्मान्) = हमें (घृतेन) = मलक्षरण व ज्ञानदीप्ति के साथ (आदिनवं अभिक्षर) = [आदौ नवम्-स्तुतिम्, नु स्तुती] दिन के प्रारम्भ में स्तुति को प्राप्त करा। हम स्वाध्याय द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए तथा प्रतिदिन प्रात: प्रभु-स्तवन करते हुए विरुद्ध व्यवहार करनेवालों को पराजित करें। २. हे प्रभो! (यः अस्मान् प्रतिदीव्यति) = जो हमारे साथ प्रतिकूल व्यवहार करता है, उसे इसप्रकार (जहि) = विनष्ट कीजिए. (इव) = जिस प्रकार (वृक्षम्) = वृक्ष को (अशन्या) = विद्युत् से नष्ट करते हैं।

    भावार्थ

    ज्ञानदीति तथा प्रभ-स्तवन द्वारा हम विरोधी को पराजित करें। हे प्रभो! आप हमारे विरोधी को इसप्रकार विनष्ट कीजिए जैसेकि वृक्ष को विद्युत् नष्ट करती हैं।

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    भाषार्थ

    (प्रतिदोव्ने) प्रतिद्वन्द्वी-विजिगीषु-सैन्यदल के पराजयार्थ, (आदिनवम्) मैंने विजिगीषु-सैन्यदल प्रेषित किया है, [हे अग्नि ! (मन्त्र २) तू] (अस्मान्) हमें (घृतेन) घृतादि द्वारा (अभिक्षर) सींच। (यः) जो शत्रु (अस्मान्) हमारे प्रति (प्रतिदीव्यति) प्रतिद्वन्द्विता में विजिगीषु सैन्यदल प्रेषित करता है उसका (जहि) तू हनन कर (अशन्या) विद्युत् द्वारा (वृक्षम्, इव) जैसे वृक्ष का हनन होता है।

    टिप्पणी

    [आदिनवम्= आङ् पूर्वात् दीव्यतेः छन्दसि लङि, व्यत्ययेन श्नुः। लोपो व्योर्वलि (अष्टा० ६।१।६६) इति वकारलोपः। अमादेशो गुणश्च (सायण)। दिव् = विजिगीषा (दिवादिः)। प्रतिदीव्ने= तुमुन्नर्थे चतुर्थी। तम् पराजेतुम्। निज सेनापति का कथन अग्नि =अग्रणी के प्रति है]।

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    विषय

    ब्रह्मचारी का इन्द्रियजय और राजा का अपने चरों पर वशीकरण।

    भावार्थ

    (प्रतिदीव्ने) प्रतिपक्षी होकर मुझे विजय करनेवाले अपने शत्रु के लिये मैं योद्धा (आदिनवम्) आगे आकर उसपर विजय करता हूं और उससे युद्ध करता हूं। हे ब्रह्मन् परमेश्वर ! राजन् ! (अस्मान्) हम वीर भटों को (घृतेन) तेजोमय द्रव्य से (अभिक्षर) युक्त कर और (यः) जो (अस्मान्) हमारे विरुद्ध (प्रतिदीव्यति) प्रतिपक्षी होकर युद्ध करे उसको (अशन्या वृक्षम् इव) जैसे बिजली वृक्ष पर पड़ कर उसको मार डालती है उसी प्रकार (जहि) विनष्ट कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बादरायणिर्ऋषिः। अग्निमन्त्रोक्ताश्च देवताः। १ विराट् पुरस्ताद् बृहती अनुष्टुप्, ४, ७ अनुष्टुभौ, २, ३, ५, ६ त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Management

    Meaning

    Latest force with latest of universal knowledge to counter the adversary, O Agni, give us showers of ghrta to fight out the negationist’s encounters. Whoever opposes us in our positive contributions to social and cosmic yajna, pray, destroy as lightning strikes down a tree.

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    Translation

    I desire to obtain victory over my rival longing for victory. May you shower purified butter on us. Him, who wants to gain victory over us, may you smite like a tree with the thunder-bolt.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.114.4AS PER THE BOOK

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    Translation

    O learned man! let there be modernized encounter against the enemy who deals with us contrarily and pour down light upon us. Kill the foe who attacks us like the tree struck by lightning.

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    Translation

    I fight against my opponent. O God, shower wealth on us. Smite mine adversary in the battle, as lightning flash burns a tree.

    Footnote

    ‘Us' refers to warriors, soldiers.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(आदिनवम्) णु स्तुतौ-अप्। आदौ प्रथमं नवो नूतनो यस्तम्, अथवा नवः स्तवो यस्य तं बोधम् (प्रतिदीव्ने) कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्विद्युप्रतिदिवः। उ० १।१५६। प्रति+दिवु व्यवहारे-कनिन्। वा दीर्घः। क्रियार्थोपपदस्य च०। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। प्रतिदिवानं प्रतिकूलव्यवहारिणं नाशयितुम् (घृतेन) प्रकाशेन (अस्मान्) धार्मिकान् (अभि) प्रति (क्षर) क्षर संचलने। वर्षय (वृक्षम्) (इव) यथा (अशन्या) विद्युता (जहि) मारय (यः) शत्रुः (अस्मान्) (प्रतिदीव्यति) प्रतिकूलं व्यवहरति ॥

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