अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 73/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - घर्मः, अश्विनौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - धर्म सूक्त
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समि॑द्धो अ॒ग्निर्वृ॑षणा र॒थी दि॒वस्त॒प्तो घ॒र्मो दु॑ह्यते वामि॒षे मधु॑। व॒यं हि वां॑ पुरु॒दमा॑सो अश्विना हवामहे सध॒मादे॑षु का॒रवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसम्ऽइ॑ध्द: । अ॒ग्नि: । वृ॒ष॒णा॒ । र॒थी । दि॒व: । त॒प्त: । ध॒र्म: । दु॒ह्य॒ते॒ । वा॒म् । इ॒षे । मधु॑ । व॒यम् । हि । वा॒म् । पु॒रु॒ऽदमा॑स: । अ॒श्वि॒ना॒ । हवा॑महे । स॒ध॒ऽमादे॑षु । का॒रव॑: ॥७७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
समिद्धो अग्निर्वृषणा रथी दिवस्तप्तो घर्मो दुह्यते वामिषे मधु। वयं हि वां पुरुदमासो अश्विना हवामहे सधमादेषु कारवः ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽइध्द: । अग्नि: । वृषणा । रथी । दिव: । तप्त: । धर्म: । दुह्यते । वाम् । इषे । मधु । वयम् । हि । वाम् । पुरुऽदमास: । अश्विना । हवामहे । सधऽमादेषु । कारव: ॥७७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(वृषणा) हे दोनों पराक्रमियों ! (समिद्धः) प्रदीप्त (अग्निः) अग्नि [के समान तेजस्वी], (दिवः) आकाश के [मध्य] (रथी) रथवाला (तप्तः) ऐश्वर्ययुक्त (धर्मः) प्रकाशमान [आचार्य वर्तमान है], (वाम्) तुम दोनों की (इषे) इच्छापूर्ति के लिये (मधु) ज्ञान (दुह्यते) परिपूर्ण किया जाता है। (पुरुदमासः) बड़े दमनशील, (कारवः) काम करनेवाले (वयम्) हम लोग (वाम्) तुम दोनों को (हि) ही, (अश्विना) हे चतुर स्त्री-पुरुष ! (सधमादेषु) अपने उत्सवों पर (हवामहे) बुलाते हैं ॥१॥
भावार्थ
सब स्त्री-पुरुष विज्ञानी शिक्षकों से विविध विद्यायें प्राप्त करें और सब लोग ऐसे विद्वान् स्त्री-पुरुषों के सत्सङ्ग से लाभ उठावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(समिद्धः) प्रदीप्तः (अग्निः) अग्निरिव तेजस्वी (वृषणा) पराक्रमिणौ (रथी) रथ-इनि। रथिकः (दिवः) आकाशस्य मध्ये (तप्तः) तप ऐश्वर्ये-क्त। ऐश्वर्ययुक्तः (धर्मः) अ० ४।१।२। प्रकाशमान आचार्यः (दुह्यते) प्रपूर्यते (वाम्) युवयोः (इषे) इच्छापूर्तये (मधु) ज्ञानम् (वयम्) (हि) अवधारणे (वाम्) युवाम् (पुरुदमासः) असुगागमः। बहुदमनशीलाः (अश्विना) अ० २।२९।६। कर्मसु व्यापकौ स्त्रीपुरुषौ (हवामहे) आह्वयामः (सधमादेषु) उत्सवेषु (कारवः) उ० १।१। करोतेः-उण्। कर्मकर्तारः ॥
विषय
तपनो धर्मः
पदार्थ
१. हे (वृषणा) = शक्ति का सेचन करनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! (दिवः रथी) = ज्ञानप्रकाश का रथी [नेता प्राप्त करानेवाला] (अग्नि:) = वह अग्रणी प्रभु (समिद्धः) = हृदयदेश में समिद्ध किया गया है। प्राणसाधना से अन्त:करण की अशुद्धियों के क्षय होने पर हृदय में प्रभु-दर्शन होता ही है। (धर्म:) = [धर्म: Sunshine] ज्ञान-सूर्य की दीप्ति (तप्त:) = खूब चमकी है [तप दीसौ] (वाम् इषे) = आपकी [इषे-इषि] प्रेरणा होने पर (मधु दुहाते) = सारभूत वीर्यरूप मधु का शरीर में प्रपूरण होता है। प्राणसाधना से वीर्य की शरीर में ऊर्ध्वगति होती है और यह वीर्य सारे शरीर में व्याप्त हो जाता है। २. हे प्राणापानो! (पुरुदमास:) = खूब ही इन्द्रियों का दमन करनेवाले होते हुए अथवा शरीररूप गृहों का पालन व पूरण करते हुए [दम-गृह, पुरु-पालन व पूरण] (कारव:) = प्रभुस्तवन करने वाले (वयम्) = हम (सधमादेषु) = यज्ञों में [सह माद्यन्ति देवा अत्र] (हि) = निश्चय से (वां हवामहे) = आपको पुकारते हैं। वस्तुतः प्राणसाधना से ही उत्तमवृत्ति होकर यज्ञों की ओर झुकाव होता है।
भावार्थ
प्राणसाधना से हृदय में प्रभु का प्रकाश होता है, ज्ञान सूर्य का उदय होता है, शरीर में वीर्य की ऊर्ध्वगति होती है और शरीररूप गृहों का सुन्दरता से पालन होता है।
भाषार्थ
(दिवः रथी) दिव्यरथ बाला (अग्निः) अग्रणी प्रधानमन्त्री (समिद्धः) सम्यक् प्रदीप्त हुआ है। (वृषणा) हे सुखों या वाणों की वर्षा करने वाले (अश्विना) अश्वविभाग के दो अधिकारियो ! (वाम्) तुम दोनों के (इषे) अन्न के लिये (मधु) मधुर (तप्तः घर्मः) गर्म क्षरित दूध (दुह्यते) दोहा जा रहा है। (पुरुदमासः) महागृहों वाले अथवा अन्नों से भरपूर गृहों वाले (वयम्) हम (कारवः) तुम्हारी स्तुति करने वाले, (वाम्) तुम दोनों को (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं, (सधमादेषु) हर्षप्रद सहभोजों में। “दमे गृहनाम (निघं० ३।४)। तप्तः = दोहा गया ताजा दूध गर्म होता है।"
टिप्पणी
[सूक्त ७७ मन्त्र (९) के अनुसार “अग्नि" राष्ट्राधिकारी प्रतीत होता है। अग्नि के सम्बन्ध में कहा है कि "अग्ने ! विश्वा अभियोक्त्रीः परसेनां विशेषेण हत्वा, शत्रून् आत्मन इच्छतां परेषां, भोजनानि आहर" (सायण)। तथा देखो मन्त्र (१०)। इस प्रकार सूक्तवर्णित अग्नि राष्ट्राधिकारी "अग्रणी", प्रधानमन्त्री प्रतीत होता है। युद्धकाल में उसका प्रदीप्त होना, शत्रुओं के प्रति कोप प्रकट करना स्वाभाविक है। युद्धार्थ तय्यारी करने वाले अश्विनौ के मानार्थ प्रजाजन उन्हें आमन्त्रित करते हैं, और उन्हें बलकारी अन्न तथा पान द्वारा सत्कृप्त करते हैं। अश्विनौ१ का यहां अर्थ है अश्वविभागों के दो अधिकारी, अश्वारोही-सेना, तथा रथारोही सेना विभाग के दो अधिकारी]। [१. अश्विनौ= "अश्वैः तद्वन्तौ"। धर्मः= घृ क्षरणदीप्त्योः (जुहोत्यादिः)। इषे अन्ननाम (निघं० २।७)।]
विषय
ब्रह्मानन्द रस।
भावार्थ
हे (अश्विना) दोनों अश्वियो ! स्त्री पुरुषो ! (दिवः) द्युलोक का (रथी) रथवाला, विजयी, रमणकारी, प्रकाशमान (अग्निः) सूर्य (सम्-इद्धः) खूब प्रकाशित हो रहा है। (धर्मः) धर्म, घाम (तप्तः) तप गया है। (वाम्) तुम दोनों के लिये (इषे) अन्न के उपभोग के लिये (मधु) मधुर दुग्ध (दुह्यते) दुहा जाता है। हे (अश्विनौ) दोनों स्त्री पुरुषो ! (पुरु-दमासः) इन्द्रियों कों दमन करने हारे अथवा बहुत से घरों वाले धनाढ्य (वयं) हम (कारवः) कार्य करने में समर्थ पुरुष (सघ-मादेषु) एक साथ आनन्द हर्ष के अवसरों पर (वाम्) तुम दोनों को (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं। जब सूर्य उग आवे, गाय दुही जायं, सम्पन्न लोग विद्वान् स्त्री पुरुषों को अपने यहां आमन्त्रित करें। अध्यात्म में—साधक आत्मज्ञान होने पर साक्षात् करता है, वह (दिवः रथी) मोक्षाख्य प्रकाश का रमणकारी आत्मा-अग्नि अब चेत गया है। धर्म = तेजोमय रस प्राप्त होगया है। प्राण और अपान दोनों के निमित्त मधुर रस का दोहन किया जाता है। इन्द्रियों के विजेता, जितेन्द्रिय हम उन अश्वियों, प्राणों को समाधि काल के आनन्द प्राप्ति के कालों में आह्वान करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अश्विनौ देवते। धर्मसूक्तम्। १, ४, ६ जगत्यः। २ पथ्या बृहती। शेषा अनुष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Yajna Karma
Meaning
Harbingers of the dawn, mighty generous Ashvins, chariot heroes of heavens, lighted is the fire, the flames of yajna are rising, honeyed milk of mother nature is flowing. Rejoicing together in yajnic homes, we invoke you and, poets of nature as we are, we celebrate and adore you in divine revelry.
Subject
Gharma - Asvinau
Translation
O your two mighty heroes, kindled is the fire, the charioteer of heaven. The libation in the cauldron is heated. It is milked sweet for your food. O twin- healers, we of many houses, skilled in arranging sacrificial feasts, call both of you.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.77.1AS PER THE BOOK
Translation
The fire (of yajna) which is the carrier of light, is inflamed Gharmah, the cauldron is boiling and the essence is drained for the nurturing energy of these two—the heavenly region and the region and the earth. We the priests practicing self-control describe the qualities of the twain of these heavenly region and earth in our yajnas, or in our assemblies.
Translation
O heroic man and woman, Sun, the charioteer of heaven has arisen, sweet milk has been milked and is being boiled to be your food. We, the masters of organs, experts in doing deeds, invite ye to be present at our festivals.
Footnote
Learned men and women should be invited on occasion of festivals and banquets,
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(समिद्धः) प्रदीप्तः (अग्निः) अग्निरिव तेजस्वी (वृषणा) पराक्रमिणौ (रथी) रथ-इनि। रथिकः (दिवः) आकाशस्य मध्ये (तप्तः) तप ऐश्वर्ये-क्त। ऐश्वर्ययुक्तः (धर्मः) अ० ४।१।२। प्रकाशमान आचार्यः (दुह्यते) प्रपूर्यते (वाम्) युवयोः (इषे) इच्छापूर्तये (मधु) ज्ञानम् (वयम्) (हि) अवधारणे (वाम्) युवाम् (पुरुदमासः) असुगागमः। बहुदमनशीलाः (अश्विना) अ० २।२९।६। कर्मसु व्यापकौ स्त्रीपुरुषौ (हवामहे) आह्वयामः (सधमादेषु) उत्सवेषु (कारवः) उ० १।१। करोतेः-उण्। कर्मकर्तारः ॥
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