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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 20
    ऋषिः - शुक्रः देवता - कृत्यादूषणम् अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - विराड्गर्भास्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - प्रतिसरमणि सूक्त
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    आ मा॑रुक्षद्देवम॒णिर्म॒ह्या अ॑रि॒ष्टता॑तये। इ॒मं मे॒थिम॑भि॒संवि॑शध्वं तनू॒पानं॑ त्रि॒वरू॑थ॒मोज॑से ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । मा॒ । अ॒रु॒क्ष॒त् । दे॒व॒ऽम॒णि: । म॒ह्यै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये । इ॒मम् । मे॒थिम् । अ॒भि॒ऽसंवि॑शध्वम् । त॒नू॒ऽपान॑म् । त्रि॒ऽवरू॑थम् । ओज॑से ॥५.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ मारुक्षद्देवमणिर्मह्या अरिष्टतातये। इमं मेथिमभिसंविशध्वं तनूपानं त्रिवरूथमोजसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । मा । अरुक्षत् । देवऽमणि: । मह्यै । अरिष्टऽतातये । इमम् । मेथिम् । अभिऽसंविशध्वम् । तनूऽपानम् । त्रिऽवरूथम् । ओजसे ॥५.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 20
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    हिन्दी (3)

    विषय

    हिंसा के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवमणिः) दिव्य मणि [श्रेष्ठ नियम] (मह्यै) बड़ी (अरिष्टतातये) कुशलता के लिये (मा) मुझ पर (आ अरुक्षत्) आरूढ़ [अधिकारवान्] हुआ है। [हे विद्वानो !] (इमम्) इस (तनूपानम्) शरीरपालक, (त्रिवरूथम्) तीन [आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक] रक्षावाले (मेथिम्) ज्ञान में (ओजसे) बल के लिये (अभिसंविशध्वम्) सब ओर से मिलकर प्रवेश करो ॥२०॥

    भावार्थ

    सर्वशक्तिमान् परमेश्वर ने प्रत्येक प्राणी के कुशल के लिये उत्तम नियम उत्पन्न किये हैं, सब विद्वान् लोग उनका आश्रय लेकर अपना बल बढ़ावें ॥२०॥ इस मन्त्र का पूर्वभाग कुछ भेद से आ चुका है-अ० ३।५।५ ॥

    टिप्पणी

    २०−(मा) माम् (आ अरुक्षत्) अ० ३।५।५। आरूढवान्। अधिष्ठितवान्, (देवमणिः) दिव्यगुणो मणिः श्रेष्ठनियमः (मह्यै) महत्यै (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। कुशलकरणाय (इमम्) सुप्रसिद्धम् (मेथिम्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। मेथृ वधे मेधायां च-इन्। बोधम् (अभिसंविशध्वम्) सर्वतो मिलित्वा प्रविशत, आश्रयध्वम् (तनूपानम्) शरीरपालकम् (त्रिरूथम्) जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। वृञ् स्वीकरणे संवरणे वा-ऊथन्। त्रीणि वरूथानि आध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकानि रक्षणानि यस्मिंस्तम् (ओजसे) बलाय ॥

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    विषय

    देवमणिः

    पदार्थ

    १. (देवमणिः) = प्रभु द्वारा शरीर में स्थापित की गई यह वीर्यरूपमणि (मा आरुक्षत्) = मेरे शरीर में सर्वत: आरोहणवाली होती है। शरीर में मैं इसकी ऊर्ध्व गति करनेवाला बनता हूँ। यह (मही) = [महत्यै] महती (अरिष्टतातये) = अहिंसा के लिए होती है। यह सब हिंसनों को दूर करके क्षेम [कल्याण] का साधन बनती है। २. (इमम्) = इस (मेथिम्) = शत्रुओं का विलोडन करनेवाली रोगादि का विनाश करनेवाली देवमणि को (अभिसंविशध्वम्) = अभितः सम्यक् संभालकर रखनेवाले बनो। शरीर में यह तुम्हें नीरोग बनाये और मस्तिष्क में ज्ञानदीस । इस मणि का तुम आश्रय करो जोकि (तनूपानम्) = शरीर का रक्षण करनेवाली है, (त्रिवरूथम्) = त्रिविध आवरण से युक्त है-शरीर को रोगों से बचाती है, मन को वासनाओं से आक्रान्त नहीं होने देती तथा बुद्धि को लोभ से उपहत नहीं होने देती। यह मणि (ओजसे) = हमारे ओज के लिए होती है-हमें ओजस्वी बनाती है।

    भावार्थ

    शरीर में वीर्य की ऊर्ध्व गति होने पर यह हमारे अहिंसन का कारण बनता है। शत्रुओं का विध्वंस करके यह 'शरीर,मन व बुद्धि' का रक्षक आवरण बनता है। हमें ओजस्वी बनाकर शरीर-रक्षण के योग्य बनाता है।

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    भाषार्थ

    (देवमणिः) दिव्यगुणी मणि अर्थात् पुरुषरत्न सेनाध्यक्ष (मा) मुझ पर (आ अरुक्षत्) आरूढ़ हुआ है, (मह्यै अरिष्टतातये) साम्राज्य या राष्ट्र के महा-अरिष्ट के लिये। (मेथिम्) शत्रुहिंसक (इमम्) इस देवमणि के सैन्य में (अभिसंविशध्वम्) प्रवेश पाओ (ओजसे) साम्राज्य और राष्ट्र के ओजस की समृद्धि के लिये यह सैन्य (तनूपानम्) तनूओं और सन्तानों का पालक है, और (त्रिवरूथम्) तीन साधनों द्वारा शत्रु का निवारक है।

    टिप्पणी

    [मा आरुक्षत्= युद्ध उपस्थित हो जाने पर सम्राट् और राजा को चाहिये कि वह सेनाध्यक्ष के निर्देशानुसार युद्धकार्य में सहयोग दें। यह सेनाध्यक्ष का आरोहण है, राष्ट्रशासन में सर्वोच्चरूप में होता है। अरिष्ट= रिष् हिंसायाम्, तदभावः, अर्थात् साम्राज्य या राष्ट्र का क्षेम। त्रिवरूथम्= पदाती सैनिक, अश्वारोही सैनिक, रथारोही सैनिक, ये तीन साधन हैं शत्रु के निवारण के लिये]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Pratisara Mani

    Meaning

    May the divine armour of defence stay on me all round as a high bulwark of protection against violence. Come friends, join together under the umbrella protection of this invincible triple armour of defence of body, mind and soul collectively for the glory and fulfilment of our human destiny.

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    Translation

    May this blessing of the enlightened ones be put on me for guarding me against harm, (O bounties of nature) may you enter together this pillar of strength, a three-fold defence, protecting the body, for bestowing vigour on me.

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    Translation

    Let this wonderful Mani be bound on me to keep me safe from all troubles. O learned men ! for attaining strength enter in this pillar of safety which is the protection of body and is the symbol of industry, intelligence and sincerity.

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    Translation

    Excellent Vedic law has been taught to me to keep me safe from every ill. O learned persons, come ye and except for strength this law, the averter of moral foes, the guardian of the body, the triple protector!

    Footnote

    Triple protector: That protects us from spiritual (आध्यात्मिक) physical (आधिभौतिक) and elemental (आधिदैविक)affliction.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(मा) माम् (आ अरुक्षत्) अ० ३।५।५। आरूढवान्। अधिष्ठितवान्, (देवमणिः) दिव्यगुणो मणिः श्रेष्ठनियमः (मह्यै) महत्यै (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। कुशलकरणाय (इमम्) सुप्रसिद्धम् (मेथिम्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। मेथृ वधे मेधायां च-इन्। बोधम् (अभिसंविशध्वम्) सर्वतो मिलित्वा प्रविशत, आश्रयध्वम् (तनूपानम्) शरीरपालकम् (त्रिरूथम्) जॄवृञ्भ्यामूथन्। उ० २।६। वृञ् स्वीकरणे संवरणे वा-ऊथन्। त्रीणि वरूथानि आध्यात्मिकाधिभौतिकाधिदैविकानि रक्षणानि यस्मिंस्तम् (ओजसे) बलाय ॥

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