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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 130

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 10
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - याजुष्युष्णिक् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    देव॑ त्वप्रतिसूर्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑ । त्वत्प्रतिसूर्य ॥१३०.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव त्वप्रतिसूर्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देव । त्वत्प्रतिसूर्य ॥१३०.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 10

    भाषार्थ -
    (দেব) হে গুরুদেব! (তু অপ্রতিসূর্য) আপনার প্রতিদ্বন্দ্বিতা তো সূর্যও করতে পারে না।

    - [সূর্য তো প্রাকৃতিক-প্রকাশ দিয়ে চোখের উপকার করে, এবং আপনি আধ্যাত্মিক-প্রকাশ দিয়ে আত্মার উপকার করেন।]

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