अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 130/ मन्त्र 17
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अथो॑ इ॒यन्निय॒न्निति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअथो॑ । इ॒यन्ऽइय॒न् । इति॑ ॥१३०.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
अथो इयन्नियन्निति ॥
स्वर रहित पद पाठअथो । इयन्ऽइयन् । इति ॥१३०.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 130; मन्त्र » 17
भाषार्थ -
(অথ উ) এবং এই সাংসারিক ভোগের মদ্যের মধ্যে স্থিত এবং মদ্য-এর মধ্যে তন্ময়, (ইয়ন্) এই মদ্য-এর দিকে এসে/আগমন করে, (ইয়ন্) এসে/আগমন করে।