अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 2
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - वरुणो अथवा यमः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुलपाकन्या सूक्त
1
ए॒षा ते॑ राजन्क॒न्या॑ व॒धूर्नि धू॑यतां यम। सा मा॒तुर्ब॑ध्यतां गृ॒हे ऽथो॒ भ्रातु॒रथो॑ पि॒तुः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । ते॒ । रा॒ज॒न् । क॒न्या । व॒धू: । नि । धू॒य॒ता॒म् । य॒म॒ ।सा । मा॒तु: । व॒ध्य॒ता॒म् । गृ॒हे । अथो॒ इति॑ । भ्रातु॑: । अथो॒ इति॑ । पि॒तु: ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा ते राजन्कन्या वधूर्नि धूयतां यम। सा मातुर्बध्यतां गृहे ऽथो भ्रातुरथो पितुः ॥
स्वर रहित पद पाठएषा । ते । राजन् । कन्या । वधू: । नि । धूयताम् । यम ।सा । मातु: । वध्यताम् । गृहे । अथो इति । भ्रातु: । अथो इति । पितु: ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाहसंस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(यम) हे नियम में चलानेवाले, वर (राजन्) राजा ! (एषा) यह (कन्या) कामनायोग्य कन्या (ते) तेरी (वधूः) वधू (नि) नियम से (धूयताम्) व्यवहार करे। (सा) वह (मातुः) [तेरी] माता के, (अथो) और भी (पितुः) पिता के (अथो) और (भ्रातुः) भ्राता के साथ (गृहे) घर में (बध्यताम्) नियम से बन्धी रहे ॥२॥
भावार्थ
मन्त्र २-४ वधू पक्ष के वचन हैं। वधू के माता-पिता आदि वर से कहें कि यह सुशिक्षिता गुणवती कन्या आप को सौंपी जाती है यह आप के माता, पिता और भ्राता आदि सब कुटुम्बियों में रहकर अपने सुप्रबन्ध से सबको प्रसन्न रक्खे और सुख भोगे ॥२॥ मनुजी महाराज ने कहा है−मनुस्मृति अ० २ श्लो० २४०॥ स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्मः शौचं सुभाषितम्। विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः ॥१॥ स्तुतियोग्य स्त्रियाँ, रत्न, विद्या, धर्म, शुद्धता और मीठी बोली और अनेक प्रकार की हस्तक्रियाएँ सबसे यत्नपूर्वक लेना चाहिएँ ॥ बालया वा युवत्या वा वृद्धया वापि योषिता। न स्वातन्त्र्येण कर्तव्यं किंचित् कार्यं गृहेष्वपि ॥१॥ म० ५।१४७॥ चाहे स्त्री बालक वा युवती वा बूढ़ी हो, वह स्वतन्त्रता से कोई काम घरों में भी न करे ॥
टिप्पणी
२−राजन्। १।१०।१। हे ऐश्वर्यवन् जामातः। कन्या। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। इति कन प्रीतौ, द्युतौ, गतौ−यक्, टाप् च। कन्यते काम्यते दीप्यते गच्छति वा सा। कमनीया। पुत्री। वधूः। वहेर्धश्च। उ० १।८३। वह प्रापणे-ऊ प्रत्ययः, धश्च। वहति प्रापयति सुखानीति। यद्वा। बन्ध-ऊ, न लोपः। बध्नाति प्रेम्णा या नवोढा स्त्री, भार्या। नि। नितराम्, नियमेन। धूयताम्। धूञ् कम्पने−कर्मणि लोट्। चेष्टताम्, गृहकार्येषु प्रवर्तताम्। यम। यम नियमने−अच्। यमयति नियमयति गृहकार्याणीति। यमो यच्छतीति। सन्तः, मध्यस्थानदेवतासु−निरु० १०।१९। द्युस्थानः−निरु०, १२।१०, ११। वायुः, सूर्यः। हे नियामक वर ! मातुः। १।२।१। तव जनन्याः। बध्यताम्। बन्ध बन्धने कर्मणि लोट्। प्रेमबद्धा भवतु। गृहे। गेहे कः। पा० ३।१।१४४। इति ग्रह आदाने-क। वासस्थाने, भवने, मन्दिरे। अथो। अथ+उ। अपि च। भ्रातुः। नप्तृनेष्टॄत्वष्टृहोतृ०। उ० २।९५। इति भ्राज दीप्तौ−तृन्। सहोदरस्य। पितुः। म० १। जनकस्य ॥२॥
विषय
वर के मुख्य गुण 'नियमितता, संयम'
पदार्थ
१ युवक के प्रस्ताव करने पर कन्या के माता - पिता सब विचार करते हैं और विचार का पश्चात् प्रस्ताव की स्वीकृति देते हुए कहते हैं कि है (राजन्) = भोतिक क्रियाओं [खान-पान, सोना-जागना] आदि में अत्यंत नियमित जीनेवाले, समय पर इन सब कार्यों को करनेवाले (यम) = संयमी जीनेवाले युवक ! (एषा कन्या) = यह अपने गुणों व तेज से चमकनेवाली (वधु:) = सब कार्यभार का वाहन करनेवाली हमारी सन्तान (ते) = तेरे लिए (निधूयताम्) = हमारे घर से तेरे घर में भेज दी जाए (Remove) | युवक की द्रष्टव्य विशेषताएं 'राजन् व यम' शब्दों से स्पष्ट हैं | वह युवक भोजन अदि की क्रियांओं में बड़ा नियमित हो और संयमी जीनेवाला हो | युवती भी तेज से चमके ; रुधिर अभाव से पिंगला-सी न हो तथा गृहकार्य वाहन करनेवाली हो| २. (सा) = वह कन्या विवाहित होने के पश्चात् (मातु: गृहे बध्यताम्) = माथा के घर में सम्बंधवाली हो , अर्थात जब वह पतिगृह से कहीं अन्यत्र जाए तो नाना के घर में जाए (अथो) = और (भ्रातु:) = अपने भाई के घर में जाए (अथो) = और (पितुः) = अपने पिताजी के घर में जाए | अन्य सम्बंधियो के घरों में जाने से व्यर्थ के कलह उठ खड़े होते हैं | इधर-उधर कम जाने से सम्बन्ध मधुर बने रहते हैं | एवम् कन्या की शोभा इसी में है कि वह नाना दादा [पिता] व भाई घर में ही अधिकतर जानेवाली हो|
भावार्थ
युवक नियमित जीनेवाला व संयम हो | युवति तेजोदीप्त व गृहकार्य वहन करने सक्षम हो |
भाषार्थ
(राजन्) हे राजमान अर्थात् शोभायमान१ [वर ] (एषा) यह कन्या (ते वधूः) तेरी वधू अर्थात् विवाहयोग्या पत्नी है, ( यम ) हे संयमी वर ! (निधूयताम्) इसे नितरां कम्पित कर, इसके पितृगृह से संचालित कर। (सा) वह (मातुः) तेरी माता के, (अथो) तथा (भ्रातुः) भाई के, (अथो) तथा (पितुः) पिता के (गृहे) घर में (बध्यताम्) दृढ़तया संबद्ध रहे ।
टिप्पणी
[अभिप्राय; यह तेरी वधू हुई है। इसके साथ ऐसा सद्व्यवहार करना कि यह तेरी माता, भाई तथा पिता के घर दृढ़तापूर्वक सम्बद्ध रहे। विवाह के पश्चात् वर-वधू अपने नये घर में स्वेच्छापूर्वक रहते हैं। वधू, वर के माता आदि के घर जाती रहे, इसके लिये माता, पिता भाई द्वारा वधू के साथ सद्व्यवहार रहना चाहिए। वरः= वरणीयः, वधू=प्रापणीया, वह प्रापणे, (भ्वादिः)।] [१. वर विवाहार्थ माला, मुकुट आदि द्वारा शोभायमान होता है।]
विषय
कन्यादान, विद्युत् सम्बन्धी रहस्य
भावार्थ
कन्या के पिता का ब्रह्मचारी वर के प्रति वचन। हे यम ! यम नियमों के पालक ब्रह्मचारिन् ! हे ( राजन् ) ज्ञान और ब्रह्मवर्चस तेज से प्रकाशमान वर ! ( एषा ) यह ( कन्या ) कन्या ( ते ) तेरी ( वधूः ) वधूरूप होकर ( नि धूयतां ) गृहस्थ का आनन्द उपभोग करे, (सा) वह कन्या ( मातुः ) नई माता अर्थात् सासु ( अथो भ्रातुः ) और नये भाई अर्थात देवर ( अथो पितुः ) तथा नये पिता अर्थात् ससुर के गृह में (बध्यताम्) गृहस्थ बन्धन में बंधे ।
टिप्पणी
अविवाहिता कन्या मृत्योः कन्येव परलोकं गतेवेति हिटनिकामितोऽर्थः । रोक्वेल लैन्मन पण्डितस्तु ‘निधुवन’ लिंगेन परस्परं स्वयंवरतोः प्रेमकेलिपरमेवार्थं ध्वनयति । सायण ने सोमरूप अतिथि को ‘यम’ शब्द से लेकर भी स्त्री को मां बाप के घर में डाल कर छोड़ देने परक अर्थ किया है; वह असंगत है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वंगिरा ऋषिः । ‘विद्युत्’ वरुणो, यमो वा देवता । १, ककुम्मती अनुष्टुप् । २, ४ अनुष्टुभौ । ३ चतुष्पाद विराङ्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Bride
Meaning
O brilliant bridegroom dedicated to disciplined family life, this bride is now the wife for you as yama, her husband to lead her home, and may she live bound to her new home of your father, mother and brother, now hers too in the family.
Translation
This maiden, O king, is your bride.O ordainer, now let her behave (enjoy) so. May she be bound to her mother’s home, or to that of brothers, or to that of her father’s.
Translation
O disceplined and brilliant bride-groom; this girl be your married wife and she be bound with discipline in the home of your mother, brother and father i.e., the mother-in-law, brother-in-law and father-in law.
Translation
O bridegroom, the observer of Yamas and Niyamas, refulgent with the splendor of knowledge and Brahmcharya (celibacy), let this maiden, serving as thy wife, enjoy domestic life. May she remain bound in the ties of domestic life in the house of thy mother, brother, and father.
Footnote
This verse and the next two are spoken by the relatives of the bride to the bridegroom. The interpretation put by Sayana, that when the maiden is abandoned by the husband and expelled from his house, she should remain with her mother, brother and father, does not appeal to me.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−राजन्। १।१०।१। हे ऐश्वर्यवन् जामातः। कन्या। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। इति कन प्रीतौ, द्युतौ, गतौ−यक्, टाप् च। कन्यते काम्यते दीप्यते गच्छति वा सा। कमनीया। पुत्री। वधूः। वहेर्धश्च। उ० १।८३। वह प्रापणे-ऊ प्रत्ययः, धश्च। वहति प्रापयति सुखानीति। यद्वा। बन्ध-ऊ, न लोपः। बध्नाति प्रेम्णा या नवोढा स्त्री, भार्या। नि। नितराम्, नियमेन। धूयताम्। धूञ् कम्पने−कर्मणि लोट्। चेष्टताम्, गृहकार्येषु प्रवर्तताम्। यम। यम नियमने−अच्। यमयति नियमयति गृहकार्याणीति। यमो यच्छतीति। सन्तः, मध्यस्थानदेवतासु−निरु० १०।१९। द्युस्थानः−निरु०, १२।१०, ११। वायुः, सूर्यः। हे नियामक वर ! मातुः। १।२।१। तव जनन्याः। बध्यताम्। बन्ध बन्धने कर्मणि लोट्। प्रेमबद्धा भवतु। गृहे। गेहे कः। पा० ३।१।१४४। इति ग्रह आदाने-क। वासस्थाने, भवने, मन्दिरे। अथो। अथ+उ। अपि च। भ्रातुः। नप्तृनेष्टॄत्वष्टृहोतृ०। उ० २।९५। इति भ्राज दीप्तौ−तृन्। सहोदरस्य। पितुः। म० १। जनकस्य ॥२॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(য়ম) হে নিয়মনিষ্ঠ বর! (রাজন্) হে রাজন! (এষা) এই (কন্যা) কামনা যোগ্য কন্যা (তে) তোমার (বধূঃ) বধূ (নি) নিয়ম পূর্বক (ধুয়তাম্) ব্যবহার করুক। (সা) সে (মাতুঃ) তোমার মাতার (অথো) আরো (পিতুঃ) তোমার পিতার (অথো) আরো (ভ্রাতুঃ) তোমার ভ্রাতার সহিত (গৃহে) গৃহে (বধ্যতাম্) নিয়মে আবদ্ধ থাকুক।।
भावार्थ
(বধূ পক্ষের উক্তি) হে নিয়মনিষ্ঠ সঙ্গতি সম্পন্ন পুরুষ! এই কামনাযোগ্য কন্যা বধূরূপে নিয়মপূর্বক আচরণ করিবে। এই কন্যা তোমার মাতার সহিত পিতার সহিত ও ভ্রাতার সহিত গৃহে নিয়মের বন্ধনে আবদ্ধ থাকিবে।।
मन्त्र (बांग्ला)
এষা তে রাজন্ কন্যা বধূর্নিধূয়তাং য়ম। সা মাতুর্বধ্যতাং গৃহে হ থো ভ্রাতুরথো পিতু।।
ऋषि | देवता | छन्द
ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। যম। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(বিবাহসংস্কারোপদেশঃ) বিবাহসংস্কারের উপদেশ
भाषार्थ
(যম) হে নিয়মের মধ্যে চালনাকারী, বর (রাজন্) রাজা ! (এষা) এই (কন্যা) কামনাযোগ্য কন্যা (তে) তোমার (বধূঃ) বধূ (নি) নিয়মের মধ্যে (ধূয়তাম্) ব্যবহার/গৃহকার্য করুক। (সা) সে (মাতুঃ) [তোমার] মাতার, (অথো) এবং (পিতুঃ) পিতার (অথো) এবং (ভ্রাতুঃ) ভ্রাতার সাথে (গৃহে) ঘরে (বধ্যতাম্) নিয়মের মধ্যে বন্ধনে থাকুক॥২॥
भावार्थ
মন্ত্র ২-৪ বধূ পক্ষের বচন। বধূর মাতা-পিতা আদি বরকে বলুক যে, এই সুশিক্ষিতা গুণবতী কন্যা তোমাকে সঁপে দেওয়া হচ্ছে এ তোমার মাতা, পিতা ও ভ্রাতা আদি সব আত্মীয়দের সাথে থেকে নিজের সুপ্রবন্ধ দ্বারা সকলকে প্রসন্ন রাখুক এবং সুখ ভোগ করুক ॥২॥ মনু মহারাজ বলেছেন−মনুস্মৃতি ২/২৪০॥ স্ত্রিয়ো রত্নান্যথো বিদ্যা ধর্মঃ শৌচং সুভাষিতম্। বিবিধানি চ শিল্পানি সমাদেয়ানি সর্বতঃ ॥২৪০॥ স্তুতি যোগ্য নারী, রত্ন, বিদ্যা, ধর্ম, শুদ্ধতা ও মিষ্টবচন এবং অনেক প্রকারের হস্তক্রিয়া সকলের থেকে যত্নপূর্বক নেওয়া উচিত ॥ বালয়া বা যুবত্যা বা বৃদ্ধয়া বাপি যোষিতা। ন স্বাতন্ত্র্যেণ কর্তব্যং কিংচিৎ কার্যং গৃহেষ্বপি ॥১৪৭॥ ম০ ৫।১৪৭॥ হোক স্ত্রী বাল্য বা যুবতী বা বৃদ্ধ, সে স্বতন্ত্রতার সহিত কোনো কাজ ঘরেও যেন না করে ॥
भाषार्थ
(রাজন্) হে রাজমান অর্থাৎ শোভায়মান১ [বর] (এষা) এই কন্যা (তে বধূঃ) তোমার বধূ অর্থাৎ বিবাহযোগ্যা পত্নী, (যম) হে সংযমী বর ! (নিধূয়তাম্) একে নিরন্তর কম্পিত করো, এঁর পিতৃগৃহ থেকে সঞ্চালিত করো। (সা) সে (মাতুঃ) তোমার মাতার, (অথো) এবং (ভ্রাতুঃ) ভাই এর, (অথো) এবং (পিতুঃ) পিতার (গৃহে) ঘরে (বধ্যতাম্) দৃঢ়ভাবে সংবদ্ধ থাকুক।
टिप्पणी
[অভিপ্রায়; এই তোমার বধূ হয়েছে। এর সাথে এমন সদ্ব্যবহার করো যাতে এই বধূ তোমার মাতা, ভাই এবং পিতার ঘরে দৃঢ়তাপূর্বক সম্বন্ধিত থাকে। বিবাহের পর বর-বধূ নিজেদের নতুন ঘরে স্বেচ্ছাপূর্বক থাকে। বধূ, বরের মাতা আদির ঘরে যেতে থাকুক/আসা-যাওয়া করুক, এর জন্য মাতা, পিতা ভাই দ্বারা বধূর সাথে সদ্ব্যবহার থাকা উচিৎ। বরঃ= বরণীয়ঃ, বধূ=প্রাপণীয়া, বহ প্রাপণে, (ভ্বাদিঃ)।] [১. বর বিবাহার্থে মালা, মুকুট আদি দ্বারা শোভায়মান হয়।]
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