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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 26
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मौदनः छन्दः - विराड्जगती सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
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    सोम॑ राजन्त्सं॒ज्ञान॒मा व॑पैभ्यः॒ सुब्रा॑ह्मणा यत॒मे त्वो॑प॒सीदा॑न्। ऋषी॑नार्षे॒यांस्तप॒सोऽधि॑ जा॒तान्ब्र॑ह्मौद॒ने सु॒हवा॑ जोहवीमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑ । रा॒ज॒न् । स॒म्ऽज्ञान॑म् । आ । व॒प॒ । ए॒भ्य॒: । सुऽब्रा॒ह्म॒णा: । य॒त॒मे । त्वा॒ । उ॒प॒ऽसीदा॑न् । ऋषी॑न् ।आ॒र्षे॒यान् । तप॑स: । अधि॑ । जा॒तान् । ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒ने । सु॒ऽहवा॑ । जो॒ह॒वी॒मि॒ ॥१.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोम राजन्त्संज्ञानमा वपैभ्यः सुब्राह्मणा यतमे त्वोपसीदान्। ऋषीनार्षेयांस्तपसोऽधि जातान्ब्रह्मौदने सुहवा जोहवीमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोम । राजन् । सम्ऽज्ञानम् । आ । वप । एभ्य: । सुऽब्राह्मणा: । यतमे । त्वा । उपऽसीदान् । ऋषीन् ।आर्षेयान् । तपस: । अधि । जातान् । ब्रह्मऽओदने । सुऽहवा । जोहवीमि ॥१.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (सोम) हे सर्वप्रेरक (राजन्) राजन् ! [परमात्मन्] (संज्ञानम्) चेतन्यता (एभ्यः) उनके लिये (आ वप) फैला दे, (यतमे) जो-जो (सुब्राह्मणाः) अच्छे-अच्छे ब्राह्मण [बड़े ब्रह्मज्ञानी] (त्वा) तुझको (उप सीदान्) प्राप्त होवें। (तपसः) तप से (अधि) अधिकारपूर्वक (जातान्) प्रसिद्ध (ऋषीन्) ऋषियों और (आर्षेयान्) ऋषियों में विख्यात पुरुषों को (ब्रह्मौदने) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन के बरसानेवाले परमेश्वर] के विषय में (सुहवा) सुन्दर बुलावे से (जोहवीमि) मैं पुकार-पुकार कर बुलाता हूँ ॥२६॥

    भावार्थ

    मनुष्य बड़े ब्रह्मज्ञानी ऋषि महात्माओं से आदरपूर्वक ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके आनन्द पावे ॥२६॥

    टिप्पणी

    २६−(सोम) हे सर्वप्रेरक (राजन्) परमैश्वर्यवन् (संज्ञानम्) यथार्थज्ञानम् (आ वप) प्रक्षिप (एभ्यः) ब्राह्मणेभ्यः (सुब्राह्मणाः) श्रेष्ठब्रह्मज्ञानिनः (यतमे) बहुषु ये (त्वा) (उप सीदान्) सेदतेर्लेटि, आडागमः। उपसीदन्तु। सेवन्ताम् (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १६। ऋषिषु व्याख्यातान् (तपसः) तपश्चरणात् (अधि) अधिकारपूर्वकम् (जातान्) प्रसिद्धान् (ब्रह्मौदने) म० १। परमेश्वरविषये (सुहवा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इत्याकारः। सुहवेन। यथाविध्यावाहनेन (जोहवीमि) अ० २।१२।३। पुनः पुनराह्वयामि ॥

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    विषय

    सोमरक्षण तथा ज्ञानी ब्राह्मणों का आतिथ्य

    पदार्थ

    १. हे (राजन् सोम) = शरीर में सुरक्षित होने पर शरीर की शक्तियों को दीप्त करनेवाले सोम [वीर्य]! (एभ्यः) = इन सबके लिए, (यतमे) = जितने (सुब्राह्मणा:) = उत्तम ब्रह्म के उपासक लोग (त्वा उपसीदान्) = तेरी उपासना करें, अर्थात् तुझे शरीर में सुरक्षित रखने के लिए यन करें, उन सबके लिए (संज्ञानम्) = सम्यक् ज्ञान को (आवप) = [निधेहि-सा०] प्राप्त करा। सोमरक्षण के द्वारा ज्ञानाग्नि को दीप्त करके हम संज्ञानवाले बनें। २. एक गृहपली संकल्प करती है मैं (सुहवा) = शोभन आह्वानवाली होती हुई ब्रह्मौदने ज्ञान के भोजन के निमित्त (तपसः अधिजातान्) = तप के द्वारा विकसित ज्ञानवाले (आर्षेयान्) = सदा [ऋषौ भवान्] ज्ञान में निवास करनेवाले (ऋषीन्) = [ऋष् to kill] वासना को विनष्ट करनेवाले इन लोगों को (जोहवीमि) = पुकारती हूँ। इनका आतिथ्य करती हुई इनसे ज्ञान की प्रेरणाओं को प्राप्त करती हैं।

    भावार्थ

    हम शरीर में सोम का रक्षण तथा घर में ज्ञानी ब्राह्मणों का आतिथ्य करते हुए ज्ञान प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (सोम साजन्) हे राजमान सोम! या प्रेरक राजन् ! (यतमे) जो भी (सुब्राह्मणाः) श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता अतिथि (त्वा उप सीदान) तेरे समीप बैठे (एभ्यः) इन के लिये (संज्ञानम्) यथार्थज्ञान या ऐकमत्य के बीज (आवय) बो। (ब्रह्मौदने) ब्रह्मोदन यज्ञ में (सुहवा) उत्तमाहुतियां देने वाली मैं, (तपसोधि जातान्) तपः प्रभाव से नवजन्म धारण किये हुए द्विजन्या रूप (ऋषीन, आर्षेयान्) ऋषियों और ऋषिसन्तानों के प्रति (जोहवीमि) मैं ओदनाहुतियां देती हूं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र २५ के अनुसार सोम है दुग्ध+दधि। दुग्ध= दधि तथा ओदन, सात्त्विक भोजन है। इस से बुद्धि सात्विक होकर सम्यक् अर्थात् यथार्थज्ञान के ग्रहण में सशक्त हो जाती है। प्रेरक राज-पक्ष में कहा है कि जो श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ता राजा के समीप आते और बैठते हैं, उन्हें राजा एकमत्य में रहने की प्रार्थना करता रहे। यही बीजावाप है। ब्रह्मवेत्ताओं, ऋषियों तथा ऋषिसन्तान रूपी द्विजन्माओं के प्रति, अन्न का आहुतिरूप में देना, राजपत्नी का कर्तव्य है। वह ब्रह्मौदन को यज्ञरूप अर्थात् अतिथियज्ञरूप जान कर, श्रद्धापूर्वक, अन्न द्वारा इन की सेवा बार-बार किया करे। सुहवा= सु+हव (Oblation, आप्टे) अर्थात् आहुति]।

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    विषय

    ब्रह्मोदन रूप से प्रजापति के स्वरूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (सोम राजन्) सौम्यगुण युक्त राजन् ! (त्वा) तेरे समीप (यतमे सुब्राह्मणाः) जितने उत्तम ब्रह्म के ज्ञानी ब्राह्मण, विद्वान् (उपसीदन्) आवें और बैठें (एभ्यः) उनके (संज्ञानम् आ वप) सत्ज्ञान को तू स्वयं प्राप्त कर। सदा संकल्प कर कि (ऋषीन्) ऋषियों को (आर्षेयान्) ऋषियों के सन्तानों और शिष्यों को जो (तपसः) तप, ब्रह्मविद्या के सम्बन्ध से (जातान्) विद्वान् रूप में उत्पन्न हुए हैं उनको मैं (सुहवा) उत्तम यज्ञ सम्पादन करने हारा (ब्रह्मौदने) ब्रह्मौदन यज्ञ में (जोहवीमि) बुलाऊं। अर्थात् (सुहवा) उत्तम राजा अपने राष्ट्र में उन विद्वानों को बुलावे।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘एभ्यो ब्राह्मणाः’ (तृ०) ‘ऋषीणामृषयस्तपसोऽधिजात’ (च०) ‘ब्राह्मौदने’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मोदनो देवता। १ अनुष्टुब्गर्भा भुरिक् पंक्तिः, २, ५ बृहतीगर्भा विराट्, ३ चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती, ४, १५, १६ भुरिक्, ६ उष्णिक्, ८ विराङ्गायत्री, ६ शाक्करातिजागतगर्भा जगती, १० विराट पुरोऽतिजगती विराड् जगती, ११ अतिजगती, १७, २१, २४, २६, २८ विराड् जगत्यः, १८ अतिजागतगर्भापरातिजागताविराड्अतिजगती, २० अतिजागतगर्भापरा शाकराचतुष्पदाभुरिक् जगती, २९, ३१ भुरिक् २७ अतिजागतगर्भा जगती, ३५ चतुष्पात् ककुम्मत्युष्णिक्, ३६ पुरोविराड्, ३७ विराड् जगती, ७, १२, १४, १९, २२, २३, ३०-३४ त्रिष्टुभः। सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahmaudana

    Meaning

    O Soma, self-refulgent sweetness of the food of divine yajna, O brilliant ruler of the land of peace and beautiful life, create and spread the light of comprehensive knowledge and spiritual elevation for the Brahma-loving priests and participants, howsoever may they be sitting around you. Dedicated host, lover of yajna, I call upon the Rshis and the dedicated disciples of the Rshis risen through tapas, discipline of Brahmacharya austerity, to the yajna of divine homage and human enlightenment.

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    Translation

    O king Soma, strew harmony for them, for whatsoever good Brahmans shall sit by thee; with good call, I call loudly to the brahman-rice-dish the seers, them of the seers, born from penance (tapas).

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    Translation

    Le this powerful soma harb expand the understanding of those learned men who obtain it for their use. I, the Brahman priest respectfully call these auster, seers, and the masters of vaidic knowledge (to play their roles) in preparing this (Brahmaudona) preparation for Yajna.

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    Translation

    O All-goading God, grant knowledge to the learned who approach Thee! To expatiate on God, I duly call again and again, the Rishis, their sons, and the ascetics.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(सोम) हे सर्वप्रेरक (राजन्) परमैश्वर्यवन् (संज्ञानम्) यथार्थज्ञानम् (आ वप) प्रक्षिप (एभ्यः) ब्राह्मणेभ्यः (सुब्राह्मणाः) श्रेष्ठब्रह्मज्ञानिनः (यतमे) बहुषु ये (त्वा) (उप सीदान्) सेदतेर्लेटि, आडागमः। उपसीदन्तु। सेवन्ताम् (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १६। ऋषिषु व्याख्यातान् (तपसः) तपश्चरणात् (अधि) अधिकारपूर्वकम् (जातान्) प्रसिद्धान् (ब्रह्मौदने) म० १। परमेश्वरविषये (सुहवा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इत्याकारः। सुहवेन। यथाविध्यावाहनेन (जोहवीमि) अ० २।१२।३। पुनः पुनराह्वयामि ॥

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