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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    1

    वेद॑ आ॒स्तर॑णं॒ब्रह्मो॑प॒बर्ह॑णम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वेद॑: । आ॒ऽस्तर॑णम् । ब्रह्म॑ । उ॒प॒ऽबर्ह॑णम् ॥३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वेद आस्तरणंब्रह्मोपबर्हणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वेद: । आऽस्तरणम् । ब्रह्म । उपऽबर्हणम् ॥३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा के विराट् रूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (वेदः) धन [उस सिंहासनका] (आस्तरणम्) बिछौना और (ब्रह्म) अन्न (उपबर्हणम्) बालिश [शिर रखने का सहारा]था ॥७॥

    भावार्थ

    जैसे सिंहासन पर गद्दीऔर बालिश लगाये जाते हैं, वैसे ही परमेश्वर ने संसार में धन और अन्न रचे हैं॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(वेदः) विद्लृ लाभे-असुन्। धनम्-निघ० २।१० (आस्तरणम्) आस्तरः। विष्टरः (ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (उपबर्हणम्) बालिशम् ॥

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    विषय

    'ज्ञान व उपासना'-मयी आसन्दी

    पदार्थ

    १. व्रात्य की इस आसन्दी के (बृहत् च रथन्तरं च) = हृदय की विशालता और शरीर-रथ से भवसागर को तैरने की भावना ही (अनूच्ये आस्ताम्) = दाएँ-बाएँ की लकड़ी की दो पाटियाँ थीं (च) = तथा (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च) = यज्ञों के लिए हितकर वेदज्ञान तथा सुन्दर दिव्यगुणों के लिए हितकर प्रभु का उपासन ही (तिरश्च्ये) = दो तिरछे काठ सेरुवे थे। २. (ऋच:) = ऋचाएँ प्रकृतिविज्ञान के मन्त्र ही उस आसन्दी के (प्राञ्चः तन्तवः) = लम्बे फैले हुए तन्तु थे और (यजूंषि) = यज्ञ-प्रतिपादक मन्त्र ही (तिर्यञ्च:) = तिरछे फैले हुए तन्तु थे। (वेदः) = ज्ञान ही उस आसन्दी का (आस्तरणम्) = बिछौना था, (ब्रह्म) = तप [ब्रह्म: तप:] व तत्त्वज्ञान ही (उपबर्हणम्) = तकिया [सिर रखने का सहारा] था। (साम) = उपासना-मन्त्र व शान्तभाव ही (आसादः) = उस आसन्दी में बैठने का स्थान था और (उदगीथ:) = उच्यैः गेय 'ओम्' इसका (उपश्रयः) = सहारा था [टेक थी]। ३. (ताम्) = इस ज्ञानमयी (आसन्दीम्) = आसन्दी पर (व्रात्यः आरोहत्) = व्रात्य ने आरोहण किया।

    भावार्थ

    व्रात्य जिस आसन्दी पर आरोहण करता है वह ज्ञान व उपासना की बनी हुई है। उपासना से शक्ति प्राप्त करके व ज्ञान से मार्ग का दर्शन करके वह लोकहित के कार्यों में आसीन होता है-तत्पर होता है।

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    भाषार्थ

    (वेदः) सामवेद (आस्तरणम्) बिछौना अर्थात् गद्दी हुआ, (ब्रह्म) ब्रह्मदेव अर्थात् अथर्ववेद (उपबर्हणम्) मसनद अर्थात् बड़ा सिरहाना हुआ।

    टिप्पणी

    [वेदः=परिशिष्ट होने के कारण "वेद" से अभिप्राय सामवेद१ प्रतीत होता है। "ब्रह्म" शब्द अथर्ववेद के लिये प्रसिद्ध है। अथवा वेदः=वैदिक ज्ञान तथा ब्रह्म=ब्रह्म का आश्रय। उपबर्हणम्=बड़ा तकिया (बर्हणम्=बृह् वृद्धौ)] [१. "सामवेद" चूंकि उपासनाप्रधान वेद है, इसलिए इसे "आस्तरण" अर्थात् बिछौना या गद्दी कहा है, इस पर उपासना में व्रात्य ने स्थिररूप में बैठना है‌।]

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    विषय

    व्रात्य के सिंहासन का वर्णन।

    भावार्थ

    (वेदः) वेद ज्ञानमय (आस्तरणम्) उसको बिछौना और (ब्रह्म उपबर्हणम्) ब्रह्म = ब्रह्मविद्या उसका सिरहाना था।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ पिपीलिका मध्या गायत्री, २ साम्नी उष्णिक्, ३ याजुषी जगती, ४ द्विपदा आर्ची उष्णिक्, ५ आर्ची बृहती, ६ आसुरी अनुष्टुप्, ७ साम्नी गायत्री, ८ आसुरी पंक्तिः, ९ आसुरी जगती, १० प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ११ विराड् गायत्री। एकादशर्चं तृतीयं पर्याय सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Veda was the mattress, Knowledge, the pillow.

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    Translation

    The Veda (the sacred knowledge) was the carpet and the prayer the pillow.

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    Translation

    The Veda (vedic lorespu wealth or the shoot of Kushagrass) is his mattress and knowledge his coverlet.

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    Translation

    The Samaveda was the cushion, and Om the pillow.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(वेदः) विद्लृ लाभे-असुन्। धनम्-निघ० २।१० (आस्तरणम्) आस्तरः। विष्टरः (ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (उपबर्हणम्) बालिशम् ॥

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