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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
    1

    परी॒मं सोम॒मायु॑षे म॒हे श्रोत्रा॑य धत्तन। यथै॑नं ज॒रसे॑ न॒यां ज्योक्श्रोत्रेऽधि॑ जागरत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑। इ॒मम्। सोम॑म्। आयु॑षे। म॒हे। श्रोत्रा॑य। ध॒त्त॒न॒। यथा॑। ए॒न॒म्। ज॒रसे॑। न॒याम्। ज्योक्। श्रोत्रे॑। अधि॑। जा॒ग॒र॒त् ॥२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परीमं सोममायुषे महे श्रोत्राय धत्तन। यथैनं जरसे नयां ज्योक्श्रोत्रेऽधि जागरत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि। इमम्। सोमम्। आयुषे। महे। श्रोत्राय। धत्तन। यथा। एनम्। जरसे। नयाम्। ज्योक्। श्रोत्रे। अधि। जागरत् ॥२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे प्रजागणो !] (इमम्) इस (सोमम्) चन्द्रमा [समान शान्तिकारक पुरुष] को (महे) बड़े (आयुषे) जीवन के लिये और (श्रोत्राय) सुनवाई के लिये (परि) सब प्रकार (धत्तन) धारण करो। (यथा) जिससे (एनम्) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये (नयाम्) मैं ले चलूँ, और वह (ज्योक्) बहुत काल तक (श्रोत्रे) सुनवाई में (अधि) अधिकारपूर्वक (जागरत्) जागता रहे ॥३॥

    भावार्थ

    प्रजागणों को उचित है कि जिस पुरुष को राजा बनावें, उससे सदा प्रीति रक्खें, जिससे वह स्तुति प्राप्त करके प्रजा के दुःखों को सदा सुने और दूर करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(सोमम्) चन्द्रसमानशान्तिप्रदं पुरुषम् (श्रोत्राय) श्रवणकरणाय (श्रोत्रे) श्रवणकरणे। अन्यत् पूर्ववत्-म०२॥

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    विषय

    प्रभु-धारण व ज्ञान-प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (इमं सोमम्) = इस सौम्य [शान्त] प्रभु को आयुषे दीर्घजीवन के लिए तथा (महे श्रोत्राय) = महान् श्रवणीय ज्ञान के लिए (परिधत्तन) = अपने हृदयों में धारण करो। २. (यथा) = जिस प्रकार (एनम्) = इस प्रभु को (जरसे) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाली स्तुति के लिए (नयाम्) = प्राप्त करूँ, जिससे (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (श्रोत्रे) = श्रवणीय ज्ञान के विषय में यह स्तोता (अधिजागरत्) = खूब जागरित रहे-अप्रमत्त रहे।

    भावार्थ

    हम जितना-जितना प्रभु का धारण करेंगे उतना-उतना ही वासना-विनाश द्वारा ज्ञान का धारण कर पाएँगे।

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    भाषार्थ

    हे राष्ट्राधिकारियो! तथा प्रजाजनो! (आयुषे) राष्ट्र में अन्न की वृद्धि के लिए, (महे श्रोत्राय) श्रोत्र द्वारा ग्राह्य महती वेद-विद्या के प्रसार के लिए, (इमम्) इस (सोमम्) सर्वप्रेरक तथा सौम्य स्वभाव वाले सम्राट् का (परि) सब प्रकार से (धत्तन) धारण-पोषण करो। (यथा) ताकि (एनम्) इस सम्राट् को (जरसे) जरावस्था तक (नयाम्) मैं ब्रह्मणस्पति ले चलूं, और यह (ज्योक्) चिरकाल तक (श्रोत्रे अधि जागरत्) वेदविद्या के प्रचार के निमित्त स्वाधिकारपूर्वक जागरूक रहे, सावधान रहे।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में श्रोत्र पद वेदपरक है। श्रूयन्ते धर्मार्थकाममोक्षा अस्मात् इति श्रोत्रं वेदः। तथा “श्रोत्रिय” शब्द का अर्थ है—“वेदाध्यायी”, अर्थात् वेदपाठक। इससे भी श्रोत्र का अर्थ वेद प्रतीत होता है। यथा—“श्रोत्रियंश्छन्दोऽधीते” (अष्टा० ५.२.८४)। अथवा छन्दसो वा श्रोत्रभावः निपात्यते “तदधीते” इत्येतस्मिन्नर्थे प्रत्ययः “घः”।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rashtra

    Meaning

    O high priest and people of the great social order, hold and support this Soma, inspiring ruler and lover of peace and happiness, for good health, full age and a great sensitive ear for knowledge, information and alleviation of want and suffering, so that I may lead him unto his full age of fulfilment and he may always abide awake and alert for information and rectification of the state problems.

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    Translation

    May you enclothe this blissful one for long life, for great listening (perceiving) capacity,.so that I may lead him to ripe old age. May he (remain awake and alert to) listen to his dominion for long.

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    Translation

    O Ye learned men, you invest this Soma (inspiring one) for long life and great power of hearing the subjects’ problems. So that I, the priest lead him for mature life and he may be watchful and active in ruling the kingdom for long.

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    Translation

    Cover him with this essence of medicines for long life and strong hearing power; so that we may lead him to far advance, old age, and he, being ever-vigilant, may protect us constantly.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(सोमम्) चन्द्रसमानशान्तिप्रदं पुरुषम् (श्रोत्राय) श्रवणकरणाय (श्रोत्रे) श्रवणकरणे। अन्यत् पूर्ववत्-म०२॥

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