अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
1
परि॑ धत्त ध॒त्त नो॒ वर्च॑से॒मं ज॒रामृ॑त्युं कृणुत दी॒र्घमायुः॑। बृह॒स्पतिः॒ प्राय॑च्छ॒द्वास॑ ए॒तत्सोमा॑य॒ राज्ञे॒ परि॑धात॒वा उ॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑। ध॒त्त॒। ध॒त्त। नः॒। वर्च॑सा। इ॒मम्। ज॒राऽमृ॑त्युम्। कृ॒णु॒त॒। दी॒र्घम्। आयुः॑। बृह॒स्पतिः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। वासः॑। ए॒तत्। सोमा॑य। राज्ञे॑। परि॑ऽधात॒वै। ऊं॒ इति॑ ॥२४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
परि धत्त धत्त नो वर्चसेमं जरामृत्युं कृणुत दीर्घमायुः। बृहस्पतिः प्रायच्छद्वास एतत्सोमाय राज्ञे परिधातवा उ ॥
स्वर रहित पद पाठपरि। धत्त। धत्त। नः। वर्चसा। इमम्। जराऽमृत्युम्। कृणुत। दीर्घम्। आयुः। बृहस्पतिः। प्र। अयच्छत्। वासः। एतत्। सोमाय। राज्ञे। परिऽधातवै। ऊं इति ॥२४.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे विद्वानो !] (नः) हमारे लिये (इमम्) इस [पराक्रमी] को (परि धत्त) [वस्त्र] पहिराओ और (वर्चसा) तेज के साथ (धत्त) पुष्ट करो और (जरामृत्युम्) बुढ़ापे [अर्थात् निर्बलता] को मृत्यु समान त्याज्य माननेवाला [अथवा स्तुति के साथ मृत्युवाला] (दीर्घम्) बड़ी (आयुः) आयु (कृणुत) करो। (बृहस्पति) बृहस्पति [बड़े-बड़े विद्वानों के रक्षक पुरोहित] ने (एतत्) यह (वासः) वस्त्र (सोमाय) सूर्यसमान (राज्ञे) राजा को (उ) ही (परिधातवे) धारण करने के लिये (प्र अयच्छत्) दिया है ॥४॥
भावार्थ
सुनीतिज्ञ पुरुष को मनुष्य वस्त्र आदि पहिनाकर राजसिंहासन पर सुशोभित करें और सब विद्वान लोग प्रतिष्ठा के साथ उसे राज्य करने के लिये उत्साह देवें ॥४॥
टिप्पणी
यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व०२।१३।२॥४−(जरामृत्युम्) जरा निर्बलता मृत्युर्दुःखमिव त्याज्यं यस्य तम्। यद्वा जरया स्तुत्या मरणयुक्तम् (सोमाय) सोमः सूर्यः प्रसवनात्-निरु०१४।१२। अन्यद् व्याख्यातम्-म०२।१३।२
विषय
ज्ञानवस्त्रों का धारण
पदार्थ
१. हे देवो! आप (न:) = हमारे (इयम्) = इस व्यक्ति को (परिधत्तन) = ज्ञानरूप वस्त्र धारण कराओ और इसप्रकार इसे वासनाओं से ऊपर उठाकर (वर्चसा धत्त) = शक्ति के साथ धारण करो। इसके जीवन को आप शक्तिशाली बनाओ। इसे शक्ति-सम्पन्न बनाकर इसके लिए (जरामृत्युम्) = अत्यन्त वृद्धावस्था में मृत्युवाले (दीर्घमायुः) = दीर्घजीवन को (कृणुत) = करो। २. (ब्रहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी सबका आचार्य प्रभु (एतत् वास:) = इस ज्ञान-वस्त्र को (परिधातवा उ) = निश्चय से धारण करने के लिए (सोमाय) = सौम्य स्वभाववाले-विनीत (राज्ञे) = जितेन्द्रिय-इन्द्रियों के राजा-व्यवस्थित जीवनवाले विद्यार्थी के लिए प्रायच्छत् देता है।
भावार्थ
देव हमें ज्ञान-वस्त्र को धारण कराके दीर्घजीवनवाला बनाएँ। ज्ञान का स्वामी आचार्य सौम्य व जितेन्द्रिय विद्यार्थी को ज्ञान देता है।
भाषार्थ
हे राष्ट्राधिकारियो! तथा प्रजाजनो! (परि धत्त) सम्राट् को [राज्याभिषेक के समय] वस्त्र पहिनाओ, (नः) हमारे सम्राट् का (वर्चसा) सम्राट्-उचित तेज और दीप्ति तथा शोभा द्वारा (धत्त) धारण और पोषण करो। (इमम्) इस सम्राट् को (जरामृत्युम्) बुढ़ापे से मरनेवाला (कृणुत) करो, (दीर्घम् आयुः) इसलिए इसका इस प्रकार धारण-पोषण करो, ताकि इसकी दीर्घ आयु हो। (बृहस्पतिः) बृहती वेदवाणी के पति पुरोहित ने (सोमाय राज्ञे) सर्वप्रेरक तथा सौम्यप्रकृति राजा के (परिधातवै उ) पहिनने के लिए (एतत् वासः) यह वस्त्र (प्रायच्छत्) दिया है।
टिप्पणी
[वैदिक राज्य व्यवस्थानुसार जब किसी सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को राजार्थ चुन लिया जाए, तब उसे उसकी पूर्ण आयु पर्यन्त, सुशासन का अधिकार दे देना चाहिए।]
इंग्लिश (4)
Subject
Rashtra
Meaning
Invest him with the robes of office. Hold and support him for ourselves with vigour and honour in lustre and splendour to live a long, healthy, full age till the end and total fulfilment, so that this Soma Ruler may wear these robes which Brhaspati, sage of great Vedic wisdom, has given him to wear for his office.
Translation
Enclothe (him);-enclothe him with our-splendour. Grant him long life to die of ripe old age. This is the garment which the Lord supreme presented to the blissful king for investiture.
Translation
O Ye men, surround him, cover him with all splendor make him live long and death come him after old age, the full maturity. The master of the Vedas present garment to inspiring king shining amongst al! to wrap about him.
Translation
O leaders of the nation, protect the land and clothe him with splendour through our aid. Prolong his life to enable him not to meet his death before advanced age. Let the Vedic scholar offer this robe to the peace-showering king to wear.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र आ चुका है-अथर्व०२।१३।२॥४−(जरामृत्युम्) जरा निर्बलता मृत्युर्दुःखमिव त्याज्यं यस्य तम्। यद्वा जरया स्तुत्या मरणयुक्तम् (सोमाय) सोमः सूर्यः प्रसवनात्-निरु०१४।१२। अन्यद् व्याख्यातम्-म०२।१३।२
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