अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 127/ मन्त्र 8
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिरिन्द्रो वा
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
1
प॑रि॒च्छिन्नः॒ क्षेम॑मकरो॒त्तम॒ आस॑नमा॒चर॑न्। कुला॑यन्कृ॒ण्वन्कौर॑व्यः॒ पति॒र्वद॑ति जा॒यया॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप॒रि॒च्छिन्न॒: । क्षेम॑म् । अकरो॒त् । तम॒: । आस॑नम् । आ॒चर॑न् । कुला॑यन् । कृ॒ण्वन् । कौर॑व्य॒: । पति॒: । वद॑ति । जा॒यया॑ ॥१२७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
परिच्छिन्नः क्षेममकरोत्तम आसनमाचरन्। कुलायन्कृण्वन्कौरव्यः पतिर्वदति जायया ॥
स्वर रहित पद पाठपरिच्छिन्न: । क्षेमम् । अकरोत् । तम: । आसनम् । आचरन् । कुलायन् । कृण्वन् । कौरव्य: । पति: । वदति । जायया ॥१२७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(तमः) अन्धकार (परिच्छिन्नः) काट डालनेवाले [राजा] ने (आसनम्) आसन (आचरन्) ग्रहण करते हुए (क्षेमम्) आनन्द (अकरोत्) कर दिया है−[यह बात] (कुलायन्) घरों को (कृण्वन्) बनाता हुआ (कौरव्यः) कार्यकर्ताओं का राजा (पतिः) पति [गृहस्थ] (जायया) अपनी पत्नी से (वदति) कहता है ॥८॥
भावार्थ
न्यायकारी, प्रजापालक राजा की चर्चा गृहपति लोग अपनी-अपनी स्त्रियों से कहते हैं ॥८॥
टिप्पणी
८−(परिच्छिन्नः) कर्तरि क्तः। परिच्छेदकः। सर्वतो नाशकः। (क्षेमम्) आनन्दम् (अकरोत्) कृतवान् (तमः) अन्धकारम् (आसनम्) सिंहासनम् (आचरन्) स्वीकुर्वन्। गृह्णन् (कुलायन्) ह्रस्वश्छान्दसः। कुलायान्। स्थानानि। गृहाणि (कृण्वन्) कुर्वन्। रचयन् (कौरव्यः) कृग्रोरुच्च। उ० १।२४। डुकृञ् करणे-कु, उकारश्च। कुरुनादिभ्यो ण्यः। पा० ४।१।१७२। कुरु-ण्य। कुरूणां कार्यकर्तॄणां राजा। गृहपतिः (पतिः) भर्ता (वदति) (जायया) पत्न्या ॥
विषय
पति-पत्नी का मिलकर प्रभु-स्तवन
पदार्थ
१. (तमः आसनम्) = [आ अस्-क्षेपणे]-समन्तात् अन्धकार को परे फेंकने-दूर करने को (आचरन्) = करता हुआ-हमारे अज्ञानान्धकारों को दूर करता हुआ (परिक्षित्) = चारों ओर निवास व गतिवाला वह सर्वव्यापक प्रभु (न:) = हम स्तोताओं के (क्षेमम्) = कल्याण को (अकरोत्) = करता है। प्रभु की उपासना से हृदय प्रकाशमय हो उठता है और अन्धकार में पनपनेवाले सब आसुरभाव वहाँ । से विलीन हो जाते हैं। २. (कुलायन् कृण्वन्) = [कुलायं]-घर को बनाता हुआ कौरव्यः [कु+रु] पृथिवी पर प्रभुनामोच्चारण करनेवालों में उत्तम वह (पतिः) = गृहपति जायया अपनी पत्नी के साथ (बदति) = प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करता है। यह पति-पत्नी के द्वारा किया गया स्तवन ही उनके घर को उत्तम बनाता है।
भावार्थ
स्तुति किया गया प्रभु हमारे अज्ञानान्धकारों को दूर करता है। जिस घर में पति पत्नी प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं, वह घर प्रकाशमय व प्रशस्त बनता है।
भाषार्थ
(परिच्छिन्नः) सांसारिक-भावनाओं से पूर्णतया कटा होकर उपासक (क्षेमम्) सबका कल्याण (अकरोत्) करता है, और (तमः) तामसिकभावों का (आसनम्) पूर्ण-प्रक्षेप अर्थात् परित्याग (आचरन्) कर देता है। (कौरव्यः) पृथिवी में अपने सदुपदेशों को गुञ्जाता हुआ, (कुलायन् कृण्वन्) समग्र पृथिवी को अपना घर बना कर रहता है। उसके सदुपदेशों के कारण (पतिः) पति अपनी (जायया) पत्नी के साथ प्रसन्नता से (वदति) बातें करता है।
टिप्पणी
[आसनम्=आ+असनम् (अस् प्रक्षेपे)। कौरव्यः=कौ (पृथिव्याम्)+रव्यः (रव् शब्दे) कुलायन्= कुलायम्। कुलाय=A place in general (आप्टे)। तम आसनम्=तमसः आसनम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra
Meaning
The man of discrimination and detachment, taking his seat of stability, dispels darkness and does good to all: thus does the house holder, a man of action, speak to his wife while establishing a new home for his family.
Translation
The king who has dispelled the darkness mounting on the throne does give the peace and tranquility to people. This, the house-holding man (Kauravya Patih) putting his houses in order says to his wife.
Translation
The king who has dispelled the darkness mounting on the throne does give the peace and tranquility to people. This, the house-holding man (Kauravya Patih) putting his houses in order says to his wife.
Translation
Just as the ripe barley stalk stands erect on the cleft under the sunshine, similarly the subject people enjoy all the well-being and prosperity under regime of the all-defending and the well-settling king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(परिच्छिन्नः) कर्तरि क्तः। परिच्छेदकः। सर्वतो नाशकः। (क्षेमम्) आनन्दम् (अकरोत्) कृतवान् (तमः) अन्धकारम् (आसनम्) सिंहासनम् (आचरन्) स्वीकुर्वन्। गृह्णन् (कुलायन्) ह्रस्वश्छान्दसः। कुलायान्। स्थानानि। गृहाणि (कृण्वन्) कुर्वन्। रचयन् (कौरव्यः) कृग्रोरुच्च। उ० १।२४। डुकृञ् करणे-कु, उकारश्च। कुरुनादिभ्यो ण्यः। पा० ४।१।१७२। कुरु-ण्य। कुरूणां कार्यकर्तॄणां राजा। गृहपतिः (पतिः) भर्ता (वदति) (जायया) पत्न्या ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(তমঃ) অন্ধকার (পরিচ্ছিন্নঃ) নাশকারী/ছেদনকারী [রাজা] (আসনম্) আসন (আচরন্) গ্রহণ করে (ক্ষেমম্) আনন্দ (অকরোৎ) করেছে−[এই কথা] (কুলায়ন্) ঘরের (কৃণ্বন্) নির্মাণকারী (কৌরব্যঃ) কার্যকর্তাদের রাজা (পতিঃ) পতি [গৃহস্থ] (জায়যা) নিজের পত্নীকে (বদতি) বলে ॥৮॥
भावार्थ
ন্যায়কারী, প্রজাপালক রাজার আলোচনা গৃহপতিরা নিজ নিজ স্ত্রীদের কাছে বলুক॥৮॥
भाषार्थ
(পরিচ্ছিন্নঃ) সাংসারিক-ভাবনা থেকে পূর্ণরূপে ছিন্ন হয়ে উপাসক (ক্ষেমম্) সকলের কল্যাণ (অকরোৎ) করে, এবং (তমঃ) তামসিকভাবনার (আসনম্) পূর্ণ-প্রক্ষেপ অর্থাৎ পরিত্যাগ (আচরন্) করে দেয়। (কৌরব্যঃ) পৃথিবীতে নিজের সদুপদেশ গুঞ্জরিত করে, (কুলায়ন্ কৃণ্বন্) সমগ্র পৃথিবীকে নিজের ঘর করে থাকে। তাঁর সদুপদেশের কারণে (পতিঃ) পতি নিজের (জায়যা) পত্নীর সাথে প্রসন্নতাপূর্বক (বদতি) কথা বলে।
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