अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 134/ मन्त्र 4
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - विराट्साम्नी पङ्क्तिः
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
1
इ॒हेत्थ प्रागपा॒गुद॑ग॒धरा॒क्स वै॑ पृ॒थु ली॑यते ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । इत्थ॑ । प्राक् । अपा॒क् । उद॑क् । अ॒ध॒राक् । स: । वै॑ । पृ॒थु । ली॑यते ॥१३४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेत्थ प्रागपागुदगधराक्स वै पृथु लीयते ॥
स्वर रहित पद पाठइह । इत्थ । प्राक् । अपाक् । उदक् । अधराक् । स: । वै । पृथु । लीयते ॥१३४.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
(इह) यहाँ (इत्थ) इस प्रकार............. [म० १]−(सः) वह [भोजन पदार्थ] (वै) निश्चय करके (पृथु) विस्तार से (लीयते) मिलता है ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य को सब स्थान में सदा भोजन आदि पदार्थ प्राप्त करना चाहिये ॥३, ४॥
टिप्पणी
४−(सः) स्थालीपाकः (वै) निश्चयेन (पृथु) यथा तथा विस्तारेण (लीयते) म० ३। संयुज्यते ॥
विषय
प्रभु-भक्ति-लीनता
पदार्थ
१. (इह) = यहाँ (इत्थ) = सचमुच (प्राग् अपाग् उदग् अधराग्)-पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में सब ओर वे प्रभु हैं, २. ऐसा अनुभव करनेवाला (स:) = वह उपासक (वै) = निश्चय से (पृथु) = [प्रथ-विस्तारे] उस सर्वव्यापक प्रभु की भक्ति में (विलीयते) = विलीन होने के लिए यत्नशील होता है।
भावार्थ
हम प्रभु की सर्वव्यापकता को अनुभव करें और उसकी उपासना में लीन होने के लिए यत्नशील हों।
भाषार्थ
(इह) इस पृथिवी में (एत्थ) आओ, जन्म लो—(प्राक्, अपाक्, उदक्, अधराक्) चाहे पृथिवी के पूर्व आदि किसी भी भूभाग में जन्म लो। (सः) वह स्थालीपाक (वै) निश्चय से (पृथु) बहुमात्रा में सर्वत्र (लीयते) पकाया जाता है। [स्थालीपाक, देखो मन्त्र ३।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Here thus on earth, east, west, north or south, that very holy food for the action, fire of yajna, is prepared and the same expands far and wide.
Translation
Here, thus in east, in west, in north and in south that food is availbale in plenty or the grass one is to embrace annihilation.
Translation
Here, thus in east, in west, in north and in south that food is available in plenty or the grass one is to embrace annihilation.
Translation
I this world, ....below, ignorance gets dispelled at the very touch of the Omniscient God, like a drop of water, touched by hand losing its identity.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सः) स्थालीपाकः (वै) निश्चयेन (पृथु) यथा तथा विस्तारेण (लीयते) म० ३। संयुज्यते ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বুদ্ধিবর্ধনোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইহ) এখানে (ইত্থ)। এভাবে............. [ম০ ১]− (সঃ) ইহা [ভোজন পদার্থ] (বৈ) নিশ্চিতরূপে (পৃথু) বিস্তারিত (লীয়তে) পাওয়া যায় ॥৪॥
भावार्थ
মনুষ্যের উচিৎ, সর্বদা সকল স্থানে ভোজন আদি পদার্থ প্রাপ্ত করা॥৩, ৪॥
भाषार्थ
(ইহ) এই পৃথিবীতে (এত্থ) এসো, জন্মগ্রহণ করো—(প্রাক্, অপাক্, উদক্, অধরাক্) পৃথিবীর পূর্বাদি যে কোনো ভূ-ভাগে জন্মগ্রহণ করো। (সঃ) সেই স্থালীপাক (বৈ) নিশ্চিতরূপে (পৃথু) বহুমাত্রায় সর্বত্র (লীয়তে) পরিপক্ব করা হয়। [স্থালীপাক, দেখো মন্ত্র ৩।]
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