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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 134 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 134/ मन्त्र 6
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृत्साम्नी पङ्क्तिः सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    1

    इ॒हेत्थ प्रागपा॒गुद॑ग॒धरा॒गक्ष्लिली॒ पुच्छिली॑यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । इत्थ॑ । प्राक् । अपा॒क् । उद॑क् । अ॒ध॒राक्ऽअक्ष्लि॑ली । पुच्छिली॑यते ॥१३४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेत्थ प्रागपागुदगधरागक्ष्लिली पुच्छिलीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । इत्थ । प्राक् । अपाक् । उदक् । अधराक्ऽअक्ष्लिली । पुच्छिलीयते ॥१३४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 134; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इह) यहाँ (इत्थ) इस प्रकार (प्राक्) पूर्व में, (अपाक्) पश्चिम में, (उदक्) उत्तर में और (अधराक्) दक्षिण में−(अक्ष्लिली) व्यवहार ग्रहण करनेवाली बुद्धि (पुच्छिलीयते) प्रसन्न होती है ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य अपनी बुद्धि को सब कामों में प्रविष्ट करके प्रसन्न रहें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(अक्ष्लिली) अक्षू व्याप्तौ−क्विप्। सलिकल्यनि०। उ० १।४। ला आदाने, इलच् स च डित्, ङीप्। अक्षः अक्षस्य व्यवहारस्य ग्राहिका बुद्धिः (पुच्छिलीयते) पुच्छ प्रसादे−इति शब्दकल्पद्रुमः। सलिकल्यनि०। उ० १।४। इति इलच् ङीप्। भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च। हलः। पा० ३।१।१२। पुच्छिली−क्यङ्, भवत्यर्थे बाहुलकात्। प्रसन्ना भवति। अन्यद् गतम्−म० १ ॥

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    विषय

    अशुद्धि क्षये ज्ञानदीप्तिः

    पदार्थ

    १. (इह) = यहाँ (इत्थ) = सचमुच (प्राग् अपाग् उदग् अधराग्) = पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में सर्वत्र उस प्रभु की व्याप्ति है। २. ऐसा चिन्तन करनेवाले पुरुष की (अक्ष्लिली) = [अर्थ pervade. penetrate] सर्वविषय व्यापिनी-गहराई तक जानेवाली बुद्धि (पुच्छिलीयते) = ['पुच्छ प्रसादे' शब्द कल्पद्रुमे] प्रसादवाली होती है-निर्मल हो जाती है। इस बुद्धि के निर्मल होने पर ही उसे विवेकख्याति होकर प्रभु का साक्षात्कार होता है।

    भावार्थ

    प्रभु की सर्वव्यापकता का चिन्तन बुद्धि को निर्मल बनाता है। इस निर्मल बुद्धि से प्रभु का साक्षात्कार हो पाता है।

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    भाषार्थ

    हे स्त्रियो! (इह) इस पृथिवी में (एत्थ) आओ, जन्म लो—(प्राक्, अपाक्, उदक्, अधराक्) चाहे पृथिवी के पूर्व आदि किसी भूभाग में जन्म लो। यह ध्यान रखो कि (अक्ष्लिली) इन्द्रियों के विषयों में अत्यन्त लीन हुई स्त्री (पुच्छिलीयते) पुच्छिल अर्थात् पूंछवाले पशु के सदृश हो जाती है।

    टिप्पणी

    [अक्ष्लिली=अक्ष=इन्द्रियां=लिली=लीङ्,यङ्लुक्। पुच्छिलीयते=पुच्छिल (पशु)+आचारे क्यङ्।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Here thus on earth, east, west, north or south, calculative intellect and pragmatic reason also follows higher rationality.

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    Translation

    Here, thus in east, in west, in north, in south the wisdom dealing with worldly affairs become free from hindrances.

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    Translation

    Here, thus in east, in west, in north, in south the wisdom dealing with worldly affairs become free from hindrances.

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    Translation

    In this world, ... below, this Prakritifull of attachment embroils the Almighty Who is free from attachment of any sort and succeeds in gettingthe universe created by Him, like an ant carrying the seed of the banyan tree and having it grown.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(अक्ष्लिली) अक्षू व्याप्तौ−क्विप्। सलिकल्यनि०। उ० १।४। ला आदाने, इलच् स च डित्, ङीप्। अक्षः अक्षस्य व्यवहारस्य ग्राहिका बुद्धिः (पुच्छिलीयते) पुच्छ प्रसादे−इति शब्दकल्पद्रुमः। सलिकल्यनि०। उ० १।४। इति इलच् ङीप्। भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च। हलः। पा० ३।१।१२। पुच्छिली−क्यङ्, भवत्यर्थे बाहुलकात्। प्रसन्ना भवति। अन्यद् गतम्−म० १ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বুদ্ধিবর্ধনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইহ) এখানে (ইত্থ) এভাবে (প্রাক্) পূর্বে, (অপাক্) পশ্চিমে, (উদক্) উত্তরে এবং (অধরাক্) দক্ষিণে− (অক্ষ্লিলী) ব্যবহার গ্রাহিকা/গ্রহণকারী বুদ্ধি (পুচ্ছিলীয়তে) প্রসন্ন হয় ॥৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্য নিজের বুদ্ধিকে সর্ব কার্যে প্রবিষ্ট করে প্রসন্ন থাকুক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    হে স্ত্রীগণ! (ইহ) এই পৃথিবীতে (এত্থ) এসো, জন্মগ্রহণ করো—(প্রাক্, অপাক্, উদক্, অধরাক্) পৃথিবীর পূর্বাদি যে কোনো ভূ-ভাগে জন্মগ্রহণ করো। ইহা স্মরণে রেখো (অক্ষ্লিলী) ইন্দ্রিয়-সমূহের বিষয়ের মধ্যে অত্যন্ত লীন স্ত্রী (পুচ্ছিলীয়তে) পুচ্ছিল অর্থাৎ লেজবিশিষ্ট পশুর সদৃশ হয়ে যায়।

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