अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 139/ मन्त्र 4
अ॒यं वां॑ घ॒र्मो अ॑श्विना॒ स्तोमे॑न॒ परि॑ षिच्यते। अ॒यं सोमो॒ मधु॑मान्वाजिनीवसू॒ येन॑ वृ॒त्रं चि॑केतथः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । वा॒म् । घ॒र्म: । अ॒श्वि॒ना॒ । स्तोमे॑न । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ ॥ अ॒यम् । सोम॑: । मधु॑ऽमान् । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । येन॑ । वृ॒त्रम् । चिके॑तथ: ॥१३९.४॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वां घर्मो अश्विना स्तोमेन परि षिच्यते। अयं सोमो मधुमान्वाजिनीवसू येन वृत्रं चिकेतथः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । वाम् । घर्म: । अश्विना । स्तोमेन । परि । सिच्यते ॥ अयम् । सोम: । मधुऽमान् । वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू । येन । वृत्रम् । चिकेतथ: ॥१३९.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
गुरुजनों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर माता-पिता, गुरुजनो] (वाम्) तुम दोनों का (अयम्) यह (घर्मः) पसीना (स्तोमेन) स्तुतियोग्य कर्म के साथ (परि सिच्यते) सिंचता है [बहता है], (वाजिनीवसू) हे बहुत वेगवाली वा बहुत अन्नवाली क्रियाओं में निवास करनेवाले दोनों ! (अयम्) वह [पसीना] (मधुमान्) उत्तम ज्ञानवाला (सोमः) सोम [तत्त्व रस] है, (येन) जिस [तत्त्व रस] से (वृत्रम्) रोकनेवाले शत्रु को (चिकेतथः) तुम दोनों जान लेते हो ॥४॥
भावार्थ
गुरुजन महान् परिश्रम करके मधुविद्या अर्थात् तत्त्वज्ञान को प्राप्त करें और शत्रुओं को मारें ॥४॥
टिप्पणी
४−(अयम्) शरीरस्थः (वाम्) युवयोः (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ क्षरणदीप्त्यो-मक्। स्वेदः (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ। गुरुजनौ (स्तोमेन) स्तुत्यकर्मणा (परि सिच्यते) आसिच्यते। वहति (अयम्) स घर्मः (सोमः) तत्त्वरसः (मधुमान्) मधुविद्यायुक्तः। श्रेष्ठज्ञानोपेतः (वाजिनीवसू) अथ० १४।२।। हे वेगवतीषु अन्नवतीषु वा क्रियासु निवासिनौ (येन) तत्त्वरसेन (वृत्रम्) आवरकं शत्रुम् (चिकेतथः) जानीथः ॥
विषय
घर्म+सोम
पदार्थ
१.हे (अश्विना) = प्राणापानो! (अयम्) = यह (वाम्) = आपका (घर्म:) = तेज (सोमेन) = प्रभु-स्तवन के साथ (परिषिच्यते) = शरीर में चारों ओर सिक्त होता है। जब प्रभु-स्तवन के साथ प्राणसाधना चलती है तब शरीर के सब अंग तेजस्विता से सिक्त होते हैं। २. हे (वाजिनीवसू) = शक्तिरूप धनोंवाले प्राणापानो! (अयम्) = यह (वाम्) = आपका-आपके द्वारा शरीर में सुरक्षित होनेवाला (सोमः) = सोम [वीर्य] (मधुमान) = जीवन को मधुर बनानेवाला है। (येन) = जिस सोम के द्वारा (वृत्रम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को (चिकेतथ:) = आप हन्तव्यरूप में जानते हो [हन्तव्यतया जानीथः]। सामान्य भाषा में यही प्रयोग इस रूप में होता है कि 'अच्छा, मैं तुझे समझ लूंगा'। सोमशक्ति के रक्षण से ही वासनाओं का विनाश होकर ज्ञान की वृद्धि होती है।
भावार्थ
प्रभु-स्तवन के साथ प्राणसाधना के चलने पर शरीर में तेजस्विता व सोम का रक्षण होता है।
भाषार्थ
(अश्विना) हे अश्वियो (वाम्) आप दोनों का (अयं घर्मः) यह राष्ट्र-यज्ञ, (स्तोमेन) सदुपदेशामृत द्वारा (परि षिच्यते) मेधावियों में सींचा जाता है। (वाजिनीवसू) हे अन्नोवाली तथा बल देनेवाली पृथिवीरूपी सम्पत्तिवाले अश्वियो! (अयम्) यह (मधुमान्) मधुर (सोमः) ओषधिरस, जल, तथा दूध है, (येन) जिसके द्वारा आप दोनों, (वृत्रम्) राष्ट्र को घेरनेवाले दुर्भिक्ष-वृत्र की (चिकेतथः) चिकित्सा करते हैं, राष्ट्र के इस दुर्भिक्ष-रोग को निवृत्त करते हैं।
टिप्पणी
[घर्मः=यज्ञः (निघं০ ३.१७)। सोमः=सोम ओषधी; जल (आप्टे)। दूध यथा “सोमो दुग्धाभिः अक्षाः” (ऋ০ ९.१०७.९)। वाजिनी=वाजः अन्नम् (निघं০ २.७); वाजः बलम् (निघं০ २.९), तद्वती पृथिवी।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
This is the yajnic fire of the season, Ashvins, which is dedicated and exalted in your honour with the chant of hymns, and this is the soma sweetened and seasoned for you, O heroes of the battle for wealth and victory, by which you would know and dare the enemy, the demon of darkness, ignorance, injustice and poverty.
Translation
O teacher and preacher, you are the lord of knowledge and wealth This your fire of Yajna is poured with hymns and oblations. This juice of Soma, the group of some herbs is for you and is very sweet. Through this you think upon the foe.
Translation
O teacher and preacher, you are the lord of knowledge and wealth. This your fire of Yajna is poured with hymns and oblations. This juice of Soma, the group of some herbs is for you and is very sweet Through this you think upon the foe.
Translation
O chemists, here is the high temperature produced by you, with the thorough interaction of various elements. O creators of strength and energy, here is this sweet essence of herbs, with which you cure the malignant disease, the deadly enemy of the patient.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(अयम्) शरीरस्थः (वाम्) युवयोः (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ क्षरणदीप्त्यो-मक्। स्वेदः (अश्विना) म० १। हे चतुरमातापितरौ। गुरुजनौ (स्तोमेन) स्तुत्यकर्मणा (परि सिच्यते) आसिच्यते। वहति (अयम्) स घर्मः (सोमः) तत्त्वरसः (मधुमान्) मधुविद्यायुक्तः। श्रेष्ठज्ञानोपेतः (वाजिनीवसू) अथ० १४।२।। हे वेगवतीषु अन्नवतीषु वा क्रियासु निवासिनौ (येन) तत्त्वरसेन (वृत्रम्) आवरकं शत्रुम् (चिकेतथः) जानीथः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
গুরুজনগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে উভয় অশ্বী! [চতুর মাতা-পিতা, গুরুজন] (বাম্) তোমরা উভয়ের (অয়ম্) এই (ঘর্মঃ) ঘাম (স্তোমেন) স্তুতিযোগ্য কর্মের সাথে (পরি সিচ্যতে) সিঞ্চিতকারী, (বাজিনীবসূ) হে বহু গতিযুক্ত বা বহু অন্নযুক্ত কর্মকাণ্ডে স্থিত উভয়! (অয়ম্) এই [ঘাম] (মধুমান্) উত্তম জ্ঞানবান (সোমঃ) সোম [তত্ত্ব রস], (যেন) যে [তত্ত্ব রস] দ্বারা (বৃত্রম্) বিঘ্নকারী শত্রুদের (চিকেতথঃ) তোমরা উভয়ে জানতে পারো ॥৪॥
भावार्थ
গুরুজন পরিশ্রম করে মধুবিদ্যা অর্থাৎ তত্ত্বজ্ঞান প্রাপ্ত করুক এবং শত্রুদের হত্যা করুক ॥৪॥
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে অশ্বিগণ! (বাম্) আপনাদের (অয়ং ঘর্মঃ) এই রাষ্ট্র-যজ্ঞ, (স্তোমেন) সদুপদেশামৃত দ্বারা (পরি ষিচ্যতে) মেধাবীদের মধ্যে সীঞ্চিত হয়। (বাজিনীবসূ) হে অন্নসম্পন্ন তথা বল প্রদানকারী পৃথিবীরূপী সম্পত্তিসম্পন্ন অশ্বিগণ! (অয়ম্) এই (মধুমান্) মধুর (সোমঃ) ঔষধিরস, জল, তথা দুধ, (যেন) যার দ্বারা আপনারা, (বৃত্রম্) রাষ্ট্র আবরণকারী দুর্ভিক্ষ-বৃত্রের (চিকেতথঃ) চিকিৎসা করেন, রাষ্ট্রের এই দুর্ভিক্ষ-রোগ নিবৃত্ত করেন।
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