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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - बृहस्पतिः, विश्वेदेवाः, वर्चः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वर्चः प्राप्ति सुक्त
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    ह॒स्ती मृ॒गाणां॑ सु॒षदा॑मति॒ष्ठावा॑न्ब॒भूव॒ हि। तस्य॒ भगे॑न॒ वर्च॑सा॒भि षि॑ञ्चामि॒ माम॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह॒स्ती । मृ॒गाणा॑म् । सु॒ऽसदा॑म् । अ॒ति॒स्थाऽवा॑न् । ब॒भूव॑ । हि । तस्य॑ । भगे॑न । वर्च॑सा । अ॒भि । सि॒ञ्चा॒मि॒ । माम् । अ॒हम् ॥२२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हस्ती मृगाणां सुषदामतिष्ठावान्बभूव हि। तस्य भगेन वर्चसाभि षिञ्चामि मामहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हस्ती । मृगाणाम् । सुऽसदाम् । अतिस्थाऽवान् । बभूव । हि । तस्य । भगेन । वर्चसा । अभि । सिञ्चामि । माम् । अहम् ॥२२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कीर्ति पाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (हि) क्योंकि (सुषदाम्) सुखसे चढ़ने योग्य (मृगाणाम्) पशुओं में (हस्ती) हाथी (अतिष्ठावान्) प्रतिष्ठावाला (बभूव) हुआ है, (तस्य) उसके (भगेन) सेवनीय (वर्चसा) कान्ति से (अहम्) मैं (माम्) अपने को (अभिषिञ्चामि) भले प्रकार सींचूँ [शुद्ध करूँ] ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे हाथी में अन्य पशुओं से अधिक बुद्धि बल होता है, वैसे ही प्रधान पुरुष अन्य पुरुषों से अधिक बुद्धिबलवाला होवे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(हस्ती) गजः। (मृगाणम्) पशूनां मध्ये। (सुषदाम्) अ० ३।१४।१। सुखेन सदनयोग्यानाम्। (अतिष्ठावान्) आतश्चोपसर्गे। पा० ३।१।१०६। इति अति+ष्ठा-अङ्, टाप्, मतुप्। प्रतिष्ठावान्। (हि) यस्मात् कारणात्। (तस्य) गजस्य। (भगेन) भजनीयेन। सेवनीयेन। (वर्चसा) तेजसा। (अभि) सर्वतः। (सिञ्चामि) शोधयामि। (माम्) आत्मानम्। (अहम्) उपासकः ॥

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    विषय

    अतिष्ठावान्

    पदार्थ

    १. (सुषदाम्) = [सुखेन सीदन्ति] अरण्य में स्वेच्छा से आसीन होनेवाले (मृगाणाम्) = हरिण आदि पशुओं में (हस्ती) = हाथी (हि) = निश्चय से (अतिष्ठावान् बभूव) = सबको लाँघकर स्थितिवाला सबसे आगे बढ़ा हुआ है। हाथी का बल सबसे अधिक है। २. (तस्य) = उस हाथी के (भगेन) = भजनीय सेवनीय (वर्चसा) = बल से (अहम) = मैं (माम्) = अपने को (अभिषिञ्चामि) = अभिषिक्त करता है। मैं भी बल के दृष्टिकोण से अपनों में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील होता हैं।

    भावार्थ

    जैसे हाथी पशओं में सर्वाधिक बली है. इसीप्रकार मैं अपने सजातियों में सर्वाधिक बली बनने के लिए यत्नशील होता हूँ।

    विशेष

    सुरक्षित शक्ति के द्वारा उत्तम सन्तानों का निर्माण करनेवाला यह साधक 'ब्रह्मा' [creater] बनता है। यह जिन सन्तानों को जन्म देता है, वे चन्द्रतुल्य सुन्दर मुखवाले होते हैं। अगले सूक्त का ऋषि यह ब्रह्मा है और देवता 'चन्द्रमाः' है -

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    भाषार्थ

    (सुषदाम्) सुख से स्थित हुए। (मृगाणाम्) मृगों के मध्य, (हस्ती) हाथी, (हि) निश्चय से (अतिष्ठावान्) बल में सबको अतिक्रान्त करके स्थित हुआ है; (तस्य) उस हाथी के (भगेन) यश द्वारा (वर्चसा) तथा तेज द्वारा. (अहम्) मैं (माम्) अपने-आपका (अभिषिच्यामि) अभिषेक करता है।

    टिप्पणी

    [भगेन=यशसा, यथा "ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा।" नवनिर्वाचित राजा, जल द्वारा अभिषिक्त न होकर, अपने-आपको यश और तेज द्वारा अभिषिक्त होने का अभिलाषी है। यह चाहता है कि राज्य में उसका यश और तेज बढ़े।।

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    विषय

    तेजस्वी होने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    (मृगाणां) पशुओं में से (हस्ती) हाथी (सुषदाम्) उत्तम सवारियों में से (अति-ष्ठावान्) अति अधिक स्थिर, निश्चल और सब से बढ़ कर युद्ध में निर्भय, टिकाऊ और प्रतिष्ठादायी (बभूव ह) है इसी प्रकार आकाश-मण्डल में (सुषदां) सुस्थिर (मृगाणां) नक्षत्रों में से (हस्ती) सूर्य जिस प्रकार (अति-ष्ठावान्) अति अधिक तेजस्वी है उसके (भगेन) लक्ष्मी, सौभाग्य (वर्चसा) और तेज से (अहम्) मैं स्वयं अपने आपको अपने राजपद के योग्य बनाऊँ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वशिष्ठ ऋषिः । वर्चो देवता । बृहस्पतिरुत विश्वेदेवाः । १ विराट् त्रिष्टुप् । ३ त्रिपदा परानुष्टुप् विराड्जगती । ४ त्र्यवसाना षट्पदा जगती । २, ५, ६ अनुष्टुभः ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Lustre of Life

    Meaning

    Of the animals, the elephant is steady, sure and comfortable without disturbance. With the strength, vigour, lustre and regality like the elephant’s, I vest and raise myself. Note: Man can get strength, vigour, lustre and constant steadiness from divine nature, by living in close contact with it and not by going away from it. And the example of strength, vigour, lustre and grace from the world of nature is the elephant, not the lion. Satavalekar in his note on this sukta makes a significant observation: the elephant is herbivorous, not carnivorous. Real strength, vigour, lustre and steady grace can be gained from life itself, not through the destruction of life. The humans therefore should be vegetarians for gaining vigour and lustre of the graceful sort.

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    Translation

    Surely the elephant has become prominent among the animals pleasant to ride upon. with his splendour and vigour, I hereby grace myself. (This refers to the taming of wild elephant)

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    Translation

    The elephant is strongest and firmest amongst the riding animals. I therefore, make me blessed with splendid vigor of it.

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    Translation

    Just as the elephant is the chief of all pleasant beasts to ride, so is the sun most resplendent of all the steady planets. With his high fortune and his strength I grace and consecrate myself.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(हस्ती) गजः। (मृगाणम्) पशूनां मध्ये। (सुषदाम्) अ० ३।१४।१। सुखेन सदनयोग्यानाम्। (अतिष्ठावान्) आतश्चोपसर्गे। पा० ३।१।१०६। इति अति+ष्ठा-अङ्, टाप्, मतुप्। प्रतिष्ठावान्। (हि) यस्मात् कारणात्। (तस्य) गजस्य। (भगेन) भजनीयेन। सेवनीयेन। (वर्चसा) तेजसा। (अभि) सर्वतः। (सिञ्चामि) शोधयामि। (माम्) आत्मानम्। (अहम्) उपासकः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (সুষদাম্) সুখপূর্বক স্থিত (মৃগাণাম্) মৃগদের মাঝে, (হস্তি) হাতি, (হি) নিশ্চিতরূপে (অতিষ্টাবান) শক্তির দিক থেকে সকলকে অতিক্রম করে স্থিত হয়েছে; (তস্য) সেই হাতির (ভগেন) যশ দ্বারা (বচর্সা) এবং তেজ দ্বারা, (অহম্) আমি (মাম্) নিজে-নিজেকে (অভিষিঞ্চামি) অভিষেক করি।

    टिप्पणी

    [ভগেন = যশসা, যথা “ঐশ্বর্যস্য সমগ্ৰস্য ধর্মস্য যশসঃ শ্রিয়ঃ। জ্ঞনবৈরাগ্যশ্চৈব ষণ্ণাং ভগ ইতীরণা।" নবনির্বাচিত রাজা, জল দ্বারা অভিষিক্ত না হয়ে, নিজেকে-নিজেকে যশ ও তেজ দ্বারা অভিষিক্ত হওয়ার অভিলাষী। তিনি চান যে, তাঁর রাজ্যে তাঁর যশ ও তেজ বৃদ্ধি হোক।]

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    मन्त्र विषय

    কীর্তিপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (হি) কারণ (সুষদাম্) সুখপূর্বক আরোহণ যোগ্য (মৃগাণাম্) পশুদের মধ্যে (হস্তী) হাতি (অতিষ্ঠাবান্) প্রতিষ্ঠাবান (বভূব) হয়েছে, (তস্য) তার (ভগেন) সেবনীয় (বর্চসা) কান্তি দ্বারা (অহম্) আমি (মাম্) নিজেকে (অভিষিঞ্চামি) উত্তমরূপে সিঞ্চন করি [শুদ্ধ করি] ॥৬॥

    भावार्थ

    যেমন হাতির মধ্যে অন্য পশুদের থেকে অধিক বুদ্ধি বল থাকে, তেমনই প্রধান পুরুষ অন্য পুরুষদের থেকে অধিক বুদ্ধিমান, বলবান হোক ॥৬॥

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