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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मृगारः देवता - वायुः, सविता छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
    1

    र॒यिं मे॒ पोषं॑ सवि॒तोत वा॒युस्त॒नू दक्ष॒मा सु॑वतां सु॒शेव॑म्। अ॑य॒क्ष्मता॑तिं॒ मह॑ इ॒ह ध॑त्तं॒ तौ नो॑ मुञ्चत॒मंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒यिम् । मे॒ । पोष॑म् । स॒वि॒ता । उ॒त । वा॒यु: । त॒नू इति॑ । दक्ष॑म् । आ । सु॒व॒ता॒म् । सु॒ऽशेव॑म् । अ॒य॒क्ष्मऽता॑तिम् । मह॑: । इ॒ह । ध॒त्त॒म् । तौ । न॒: । मु॒ञ्च॒त॒म् । अंह॑स: ॥२५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रयिं मे पोषं सवितोत वायुस्तनू दक्षमा सुवतां सुशेवम्। अयक्ष्मतातिं मह इह धत्तं तौ नो मुञ्चतमंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रयिम् । मे । पोषम् । सविता । उत । वायु: । तनू इति । दक्षम् । आ । सुवताम् । सुऽशेवम् । अयक्ष्मऽतातिम् । मह: । इह । धत्तम् । तौ । न: । मुञ्चतम् । अंहस: ॥२५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पवन और सूर्य के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (सविता) सूर्य (उत) और (वायुः) पवन (मे) मेरे लिये (तनू=तन्वाम्) अपने शरीर में वर्त्तमान (सुशेवम्) अति सुखदायक (रयिम्) धन, (पोषम्) पुष्टि और (दक्षम्) बल को (आ सुवताम्) भेजें। (इह) यहाँ पर (अयक्ष्मतातिम्) नीरोगता और (महः) तेज (धत्तम्) तुम दोनों दान करो, (तौ) सो तुम दोनों (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चतम्) छुड़ावो ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य वायु और सूर्य के विज्ञान से ऋद्धि, सिद्धि, बल और स्वस्थता प्राप्त करके आनन्द भोगें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(रयिम्) धनम् (मे) मह्यम् (पोषम्) पुष्टिं समृद्धिम् (सविता) सूर्यः (उत) अपि च (वायुः) पवनः (तनू) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति। सप्तम्या लुक्। ईदूतौ च सप्तम्यर्थे। पा० १।१।१९। इति प्रगृह्यम्। तन्वाम्। स्वशरीरे वर्तमानम् (दक्षम्) बलम्-निघ० २।९। (आसुवताम्) षू प्रेरणे। समन्तात् प्रेरयताम्। प्रयच्छताम् (सुशेवम्) इणशीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति शीङ् स्वप्ने-वन्। शेवं सुखम्-निघ० ३।६। अतिशयेन सुखकरम् (अयक्ष्मतातिम्) भावे च। पा० ४।४।१४४। इति बाहुलकात् भावे तातिल्। अयक्ष्मताम्। यक्ष्माद् राहित्यम्। आरोग्यम् (महः) तेजः (इह) अस्मिन् शरीरे (धत्तम्) दत्तम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    रयिं महः

    पदार्थ

    १. (सविता उत वायु:) = सूर्य और वायुदेव (मे) = मेरे लिए (रयिम्) = स्वास्थ्यरूप धन को तथा (पोषम्) = अङ्ग-प्रत्यक्ष की पुष्टि को (सवताम्) = उत्पन्न करें तथा (तन) = मेरे शरीर में (सुशेवम्) = उत्तम सुख देनेवाले (दक्षम्) = बल को (आ सुवताम्) = समन्तात् प्रेरित करें। २. तथा हे वायु व सवितादेवो! (अयक्ष्मतातिम्) = नीरोगता को (मह:) = तेज को (इह) = यहाँ-यज्ञशील पुरुष के शरीर में (धत्तम्) = धारण करो और (तौ) = वे वायु और सूर्य दोनों देव (नः) = हमें (अंहसः) = पाप और कष्ट से (मुञ्चतम्) = मुक्त करें।

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    भाषार्थ

    (सविता उत वायु:) सविता तथा वायु (मे) मेरे लिए (रयिम्) धन, (पोषम्) पुष्टि, (तनू दक्षम्) शारीरिक बल, (सुशेवम्) उत्तम सुख (आ सुवताम्) प्रेरित करें; (अयक्ष्मतातिम्) यक्ष का विनाश, (महः) तेज (इह) इस शरीर में (धत्तम्) स्थापित करें, (तौ) वे तुम दोनों (न:) हमें (अंहसः) पापजन्य कष्ट से (मुञ्चतम्) छुड़ाएँ।

    टिप्पणी

    [आ सुवताम्= षू प्रेरणे (तुदादिः)। अयक्ष्मतातिम्= 'तातिल्' प्रत्यय, अथवा 'तनु' विस्तारे।]

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    विषय

    पापमोचन की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (सविता) सूर्य (उत वायुः) और वायु = जिस प्रकार (मे) मेरे शरीर में (रयिं) वीर्य को और (पोषं) पुष्टि को प्रदान करते हैं और वे दोनों जिस प्रकार (मे तनू) मेरे शरीर में (दक्षं) बल को उत्पन्न करते हैं और (अयक्ष्मतातिं) यक्ष्म=रोग जन्तु से उत्पन्न राजरोगों से मुक्त करने वाले तेज को धारण कराते हैं उसी प्रकार ईश्वर के उक्त दोनों सामर्थ्य (मे तनू रयिं पोषं) मेरे शरीर में वीर्य और पुष्टि का प्रदान करें और (सु-शेवं) उत्तम सुख रूप में सेवन करने योग्य (दक्षं) बल और ज्ञान को (आ सुवतां) उत्पन्न करें। (इह) यहां, इस लोक में (अयक्ष्मतातिम् महः) रोग रहित तेज या कान्ति को प्रदान करें (तौ) वे दोनों ईश्वरीय शक्रियां प्रादुर्भूत होकर (नः) हमें (अंहसः मुञ्चतम्) पाप से भी मुक्त करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    तृतीयं मृगारसूक्तम्। ३ अतिशक्वरगर्भा जगती। ७ पथ्या बृहती। १, २, ४-६ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    May Savita and Vayu both create, bear and bring me cherished and auspicious wealth, honour and excellence, nourishment and good health, strong and handsome body, self-confidence and expertise for action, freedom from weakness and disease, and lustre of life, and bless me here. May both of them save us from sin, affliction and deprivation.

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    Translation

    May the impeller sun ánd the elemental wind grant to me the enjoyable riches and nourishment, an excellent body, and dexterity. May both of them grant me complete freedom from consumption. As such, may both of you free us from sin.

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    Translation

    Let the air and sun produce physical wealth, strength, favorable vigor in my body. Let them give us here complete freedom from tuberculosis. Let these two become the source of saving us from grief and trouble.

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    Translation

    May the two divine forces of God, acting like the sun and wind lend my body wealth, favorable strength and alacrity. May they give us here perfect freedom from consumption, and deliver us from sin.

    Footnote

    Here: In this world Two divine forces: Urging, प्रेरण, Creation, उत्पत्ति.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(रयिम्) धनम् (मे) मह्यम् (पोषम्) पुष्टिं समृद्धिम् (सविता) सूर्यः (उत) अपि च (वायुः) पवनः (तनू) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति। सप्तम्या लुक्। ईदूतौ च सप्तम्यर्थे। पा० १।१।१९। इति प्रगृह्यम्। तन्वाम्। स्वशरीरे वर्तमानम् (दक्षम्) बलम्-निघ० २।९। (आसुवताम्) षू प्रेरणे। समन्तात् प्रेरयताम्। प्रयच्छताम् (सुशेवम्) इणशीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति शीङ् स्वप्ने-वन्। शेवं सुखम्-निघ० ३।६। अतिशयेन सुखकरम् (अयक्ष्मतातिम्) भावे च। पा० ४।४।१४४। इति बाहुलकात् भावे तातिल्। अयक्ष्मताम्। यक्ष्माद् राहित्यम्। आरोग्यम् (महः) तेजः (इह) अस्मिन् शरीरे (धत्तम्) दत्तम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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