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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
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    त्वष्टः॒ श्रेष्ठे॑न रू॒पेणा॒स्या नार्या॑ गवी॒न्योः। पुमां॑सं पु॒त्रमा धे॑हि दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्ट॑: । श्रेष्ठे॑न।रूपेण । रू॒पेण॑ । अ॒स्या: । नार्या॑: । ग॒वी॒न्यो: । पुमां॑सम् । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । द॒श॒मे । मा॒सि । सूत॑वे ॥२५.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टः श्रेष्ठेन रूपेणास्या नार्या गवीन्योः। पुमांसं पुत्रमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्ट: । श्रेष्ठेन।रूपेण । रूपेण । अस्या: । नार्या: । गवीन्यो: । पुमांसम् । पुत्रम् । आ । धेहि । दशमे । मासि । सूतवे ॥२५.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्वष्टः) हे विश्वकर्मा परमात्मन् ! (श्रेष्ठेन) श्रेष्ठ... म० १० ॥११॥

    भावार्थ

    विदुषी पत्नी परमेश्वर के गुणों का विचार करती हुई उत्तम गुण स्वभाववाला सन्तान गर्भ के पूरे दिनों में उत्पन्न करे ॥१०॥ यही भाव मन्त्र १३ तक जानों ॥

    टिप्पणी

    १०−(धातः) हे सर्वधारक परमेश्वर (श्रेष्ठेन) उत्तमेन (रूपेण) आकारेण (अस्याः) (नार्याः) स्त्रियाः (गवीन्योः) अ० १।३।६। पार्श्वद्वयस्थे नाड्यौ गवीन्यौ तयोः (पुमांसम्) अ० १।८।१। पा रक्षणो−डुम्सुन्। रक्षकम् (पुत्रम्) कुलशोधकं सन्तानम् (आ) सम्यक् (धेहि) स्थापय (दशमे) (मासि) (सूतवे) अ० १।१।२। प्रसवार्थम् ॥

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    विषय

    पुमांसं पुत्रम्

    पदार्थ

    १. हे (धात:) = सबका धारण करनेवाले! (त्वष्ट:) = सबके निर्मात:-विश्वकर्मन् प्रभो! हे (सवितः) = सबको जन्म देनेवाले! (प्रजापते) = प्रजाओं के रक्षक प्रभो! (श्रेष्ठेन रूपेण) = सर्वोत्तम रूप के साथ (अस्याः नार्या:) = इस नारी की (गवीन्यो:) = गर्भधारक दोनों पार्श्वस्थ नाड़ियों में (पुमांसम्) = अपने जीवन को पवित्र बनानेवाले वीर [नकि नामर्द] (पुत्रम्) = सन्तान को (दशमे मासि सूतवे) = दसवें महीने में उत्पन्न होने के लिए (आधेहि) = सम्यक् स्थाति कीजिए। २. प्रभु ही सबका धारण करते हैं। वे ही सबके निर्माता हैं, वे जन्म देनेवाले [व प्रेरित करनेवाले] प्रभु प्रजाओं के रक्षक हैं।

    भावार्थ

    बालक के गर्भस्थ होने पर उस धाता, त्वष्टा, सविता, प्रजापति' प्रभु का स्मरण करनेवाली नारी ठीक समय पर पवित्र, वीर सन्तान को जन्म देती है।

     

    विशेष

    अगले सूक्क का ऋषि भी 'ब्रह्मा' ही है। यह उत्तम सन्तान यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होती है।

     

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    भाषार्थ

    (त्वष्टः) हे कारीगर परमेश्वर ! (मन्त्र ५), (श्रेष्ठेन रूपेण) श्रेष्ठ रूपाकृति से संयुक्त [ पुत्र के लिए ] ( अस्या: नार्या: गवीन्योः) इस नारी की दो गवीनी-नाड़ियों में (पुमांसम्, पुत्रम्) पुमान पुत्र [ के उत्पादक वीर्यं ] का आधान कर, (दशमे मासि) दसवें मास में (सूतवे) उत्पन्न होने के लिए।

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    विषय

    गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (त्वष्टः) पुत्र के शरीर को सुगठित, सुरूप करने में समर्थ पुरुष ! तू इस नारी की गवीनी नामक नाड़ियों के बीच (श्रेष्ठेन) श्रेष्ठ रूप से युक्त सुन्दर पुमान् पुत्र का दसवें मास में प्रसव करने के लिये आधान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Garbhadhanam

    Meaning

    O Tvashta, maker of forms, pray form and mature virile progeny with noblest form and character in the womb of this mother between her groins to be born on maturation in the tenth month.

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    Translation

    O supreme architect (Tvastr), within the two groins of this woman, may you place a male child with the best of forms, due to be born in the tenth month.

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    Translation

    Let Tvaster, the form-giving energy of the world lay within this woman the made germ with the noblest form to give birth in the tenth month.

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    Translation

    O All-powerful God, develop in a noble way, in the body of this dame, the male child, to be born in the tenth month.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(धातः) हे सर्वधारक परमेश्वर (श्रेष्ठेन) उत्तमेन (रूपेण) आकारेण (अस्याः) (नार्याः) स्त्रियाः (गवीन्योः) अ० १।३।६। पार्श्वद्वयस्थे नाड्यौ गवीन्यौ तयोः (पुमांसम्) अ० १।८।१। पा रक्षणो−डुम्सुन्। रक्षकम् (पुत्रम्) कुलशोधकं सन्तानम् (आ) सम्यक् (धेहि) स्थापय (दशमे) (मासि) (सूतवे) अ० १।१।२। प्रसवार्थम् ॥

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