अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 13
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - विराट्पुरस्ताद्बृहती
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
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प्रजा॑पते॒ श्रेष्ठे॑न रू॒पेणा॒स्या नार्या॑ गवी॒न्योः। पुमां॑सं पु॒त्रमा धे॑हि दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठप्रजा॑ऽपते । श्रेष्ठे॑न । रू॒पेण॑ । अ॒स्या: । नार्या॑: । ग॒वी॒न्यो: । पुमां॑सम् । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । द॒श॒मे । मा॒सि । सूत॑वे ॥२५.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापते श्रेष्ठेन रूपेणास्या नार्या गवीन्योः। पुमांसं पुत्रमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥
स्वर रहित पद पाठप्रजाऽपते । श्रेष्ठेन । रूपेण । अस्या: । नार्या: । गवीन्यो: । पुमांसम् । पुत्रम् । आ । धेहि । दशमे । मासि । सूतवे ॥२५.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भाधान का उपदेश।
पदार्थ
(प्रजापते) हे सृष्टिपालक जगदीश्वर ! (श्रेष्ठेन) श्रेष्ठ (रूपेण) रूप के साथ (अस्याः) इस (नार्याः) नारी की (गवीन्योः) दोनों पार्श्वस्थ नाड़ियों में (पुमांसम्) रक्षा करनेवाला (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (दशमे) दसवें (मासि) महीने में (सूतवे) उत्पन्न होने को (आ) अच्छे प्रकार (धेहि) स्थापित कर ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(प्रजापते) हे सृष्टि पालक जगदीश्वर ॥
विषय
पुमांसं पुत्रम्
पदार्थ
१. हे (धात:) = सबका धारण करनेवाले! (त्वष्ट:) = सबके निर्मात:-विश्वकर्मन् प्रभो! हे (सवितः) = सबको जन्म देनेवाले! (प्रजापते) = प्रजाओं के रक्षक प्रभो! (श्रेष्ठेन रूपेण) = सर्वोत्तम रूप के साथ (अस्याः नार्या:) = इस नारी की (गवीन्यो:) = गर्भधारक दोनों पार्श्वस्थ नाड़ियों में (पुमांसम्) = अपने जीवन को पवित्र बनानेवाले वीर [नकि नामर्द] (पुत्रम्) = सन्तान को (दशमे मासि सूतवे) = दसवें महीने में उत्पन्न होने के लिए (आधेहि) = सम्यक् स्थाति कीजिए। २. प्रभु ही सबका धारण करते हैं। वे ही सबके निर्माता हैं, वे जन्म देनेवाले [व प्रेरित करनेवाले] प्रभु प्रजाओं के रक्षक हैं।
भावार्थ
बालक के गर्भस्थ होने पर उस धाता, त्वष्टा, सविता, प्रजापति' प्रभु का स्मरण करनेवाली नारी ठीक समय पर पवित्र, वीर सन्तान को जन्म देती है।
विशेष
अगले सूक्क का ऋषि भी 'ब्रह्मा' ही है। यह उत्तम सन्तान यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होती है।
भाषार्थ
(प्रजापते) हे प्रजाओं के पति परमेश्वर ! (श्रेष्ठेन रूपेण) श्रेष्ठ रूपाकृति से संयुक्त [ पुत्र के लिए ] ( अस्या: नार्या: गवीन्योः) इस नारी की दो गवीनी-नाड़ियों में (पुमांसम्, पुत्रम्) पुमान पुत्र [ के उत्पादक वीर्यं ] का आधान कर, (दशमे मासि) दसवें मास में (सूतवे) उत्पन्न होने के लिए।
विषय
गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।
भावार्थ
हे (प्रजापते) प्रजा के परिपालक पते ! तू (अस्याः नार्याः गवीन्योः) इस नारी की गवीनी नामक नाड़ियों के बीच में (दशमे मासि सूतवे) दसवें महीने में प्रसव करने के लिये (पुमांसं पुत्रम्) पुमान् पुत्र का (आ-धेहि) आधान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Garbhadhanam
Meaning
O Prajapati, universal father of the children of nature and humanity, sustain and mature virile progeny with noblest form and character in the womb of this mother between her groins to be born on maturation in the tenth month.
Translation
O Lord of creatures (Prajapati), within the two groins of this woman, may you place a male child with the best of forms, due to be born in the tenth month.
Translation
May Prajapati, the Lord of the creatures set within the sides of this woman the male germ with noblest form to give birth in the tenth month.
Translation
O God, the Protector of the universe, develop in a noble way, in the body of this dame, the male child, to be born in the tenth moth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(प्रजापते) हे सृष्टि पालक जगदीश्वर ॥
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