अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
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यथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही भू॒तानां॒ गर्भ॑माद॒धे। ए॒वा द॑धामि ते॒ गर्भं॒ तस्मै॒ त्वामव॑से हुवे ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । इ॒यम् । पृ॒थि॒वी । म॒ही । भू॒ताना॑म् । गर्भ॑म् । आ॒ऽद॒धे ।ए॒व । आ । द॒धा॒मि॒ । ते॒ । गर्भ॑म् । तस्मै॑ । त्वाम् । अव॑से । हु॒वे॒ ॥२५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथेयं पृथिवी मही भूतानां गर्भमादधे। एवा दधामि ते गर्भं तस्मै त्वामवसे हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । इयम् । पृथिवी । मही । भूतानाम् । गर्भम् । आऽदधे ।एव । आ । दधामि । ते । गर्भम् । तस्मै । त्वाम् । अवसे । हुवे ॥२५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भाधान का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (इयम्) इस (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी ने (भूतानाम्) सब जीवों का (गर्भम्) गर्भ (आदधे) धारण किया है। (एव) वैसे ही (ते) तेरा (गर्भम्) गर्भ (आ) यथावत् (दधामि) स्थापित करता हूँ, (तस्मै) उस [गर्भ] के लिये (अवसे) रक्षा करने को (त्वाम्) तुझे (हुवे) मैं बुलाता हूँ ॥२॥
भावार्थ
जैसे यह विशाल पृथिवी मेघ से गर्भ धारण करके अमूल्य रत्न उत्पन्न करती है, वैसे ही विशाल स्वभाववाली पत्नी अपने पराक्रमी पति के संयोग से साहसी विद्वान् सन्तान उत्पन्न करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(यथा) येन प्रकारेण (इयम्) दृश्यमाना (पृथिवी) भूमिः (मही) विशाला (भूतानाम्) प्राणिनाम् (गर्भम्) स्तुत्यं गर्भाशयम् (आदधे) सम्यग् धृतवती (एव) तथा (आ) समन्तात् (दधामि) स्थापयामि (ते) तव (तस्मै) गर्भहिताय (त्वाम्) पत्नीम् (अवसे) रक्षणाय (हुवे) आह्वयामि ॥
विषय
गर्भधारिका पत्नी का रक्षक पति
पदार्थ
१. पत्नी पति से कहती है-(यथा) = जैसे (इयम्) = यह (मही पृथिवी) = महनीय भूमि (भूतानाम्) = सब प्राणियों के (गर्भम्) = गर्भ को (आदधे) = धारण करती है। (एव) = इसीप्रकार मैं (ते) = तेरे (गर्भम्) = गर्भ को (दधामि) = धारण कर रही हूँ। २. (तस्मै अवसे) = उस गर्भ के रक्षण के लिए (त्वाम् हुवे) = तुझे पुकारती हूँ। गर्भरक्षण व पोषण के लिए जो भी आवश्यक साधन हैं, उन्हें जुटाने के लिए मैं आपसे कहती हूँ।
भावार्थ
पत्नी जब गर्भधारण करती है तब पति को उसके रक्षण के सब साधनों को जुटाना ही चाहिए।
भाषार्थ
(यथा) जैसे (इयम् मही पृथिवी) यह महती या मंहनीया पृथिवी (भूतानाम्) प्राणियों सम्बन्धी (गर्भम्) गर्भ के कारणीभूत बीज को (आ दधे) अपने में आहित करती है, (एवम् एव) इसी प्रकार [ हे पत्नी!] (ते) तेरे लिए (गर्भम्) गर्भ का ( आ दधामि) मैं आधान करता हूँ और (तस्मै) उस गर्भ के लिए, (अवसे) अर्थात् उसकी रक्षा के लिए, ( त्वाम्) तुझे (हुवे) आहूत करता हूँ। बीज से बीजान्न की उत्पत्ति, उसके भक्षण से वीर्य की उत्पत्ति और वीर्य से प्राणियों की उत्पत्ति। जैसे कहा है 'अन्नाद् रेतः रेतसः पुरुषः स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः' (तै०उ० ब्रह्मानन्दवल्ली; सत्यार्थप्रकाश, प्रथम समुल्लास) इस प्रकार पृथिवी का गर्भ धारण करना, परम्परा से, भूतों अर्थात् प्राणियों की उत्पत्ति का कारण है।
विषय
गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।
भावार्थ
(यथा) जिस प्रकार (मही) विशाल (पृथिवी) पृथिवी (भूतानां) समस्त प्राणियों को (गर्भम्) अपने गर्भ में (आदधे) धारण करती है। इसी प्रकार मैं पति (ते) तुझ अपनी धर्मपत्नी के शरीर में (गर्भम्) गर्भ को (दधे) धारण कराता हूं, क्योंकि तू ही मानव जीवों को गर्भ में धारण करने हारी भूमि के समान है। (तस्मै) उस गर्भ की (अवसे) रक्षा करने के लिये ही मैं (त्वाम् हुवे) तुझे बुलाता हूं या उपदेश करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Garbhadhanam
Meaning
“Just as this great earth bears the seed as womb of all living beings, so do I bear your seed of life.” “For the protection, growth and maturity of that I court you.” (This mantra can be interpreted as a dialogue between the wife and the husband, or as the address of the husband of the wife, or as the address of the wife to the husband. In any of these ways, the meaning remains clearly similar.)
Translation
As this great earth receives the germ of all the beings, so I set the germ in you. I call upon you for protection of that embryo.
Translation
I lay the germ within you, my wife! as this grand earth receives the germ of all living and non-living creatures and I advise you to protect it.
Translation
Just as this broad Earth receives the germ of all the things that be, thus within thee I lay the germ, and instruct thee to protect it.
Footnote
I: husband. Thee: wife.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यथा) येन प्रकारेण (इयम्) दृश्यमाना (पृथिवी) भूमिः (मही) विशाला (भूतानाम्) प्राणिनाम् (गर्भम्) स्तुत्यं गर्भाशयम् (आदधे) सम्यग् धृतवती (एव) तथा (आ) समन्तात् (दधामि) स्थापयामि (ते) तव (तस्मै) गर्भहिताय (त्वाम्) पत्नीम् (अवसे) रक्षणाय (हुवे) आह्वयामि ॥
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