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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 97/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - त्रिपदार्ची भुरिग्गायत्री सूक्तम् - यज्ञ सूक्त
    1

    यज्ञ॑ य॒ज्ञं ग॑च्छ य॒ज्ञप॑तिं गच्छ। स्वां योनिं॑ गच्छ॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यज्ञ॑ । य॒ज्ञम् । ग॒च्छ॒। य॒ज्ञऽप॑तिम् । ग॒च्छ॒। स्वाम् । योनि॑म् । ग॒च्छ॒ । स्वाहा॑ ॥१०२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ। स्वां योनिं गच्छ स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यज्ञ । यज्ञम् । गच्छ। यज्ञऽपतिम् । गच्छ। स्वाम् । योनिम् । गच्छ । स्वाहा ॥१०२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 97; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (यज्ञ) हे पूजनीय पुरुष ! (यज्ञम्) पूजनीय व्यवहार को (गच्छ) प्राप्त हो, (यज्ञपतिम्) पूजनीय व्यवहार के पालनेवाले को (गच्छ) प्राप्त हो। और (स्वाहा) सुन्दर वाणी [वेदवाणी] के साथ (स्वाम्) अपने (योनिम्) स्वभाव को (गच्छ) प्राप्त हो ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम व्यवहार और उत्तम मनुष्यों के साथ से अपने मनुष्य धर्म का कर्त्तव्य करता रहे ॥५॥ यह मन्त्र यजुर्वेद में है−८।२२ ॥

    टिप्पणी

    ५−(यज्ञ) पूजनीय पुरुष (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (यज्ञपतिम्) पूजनीयव्यवहारस्य पालकम् (गच्छ) (स्वाम्) स्वकीयाम् (योनिम्) प्रकृतिम्। स्वभावम् (गच्छ) (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाण्या। वेदवाचा ॥

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    विषय

    यज्ञ

    पदार्थ

    १.हे (यज्ञ) = श्रेष्ठतम कर्म! [यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्म] तू (यज्ञं गच्छ) = उपास्य परमात्मा को प्रास हो। हम यज्ञ करें और इन यज्ञों को प्रभु के प्रति अर्पित करनेवाले हों। हे यज्ञ! (यज्ञपतिं गच्छ) = तू यज्ञपति को प्राप्त हो, अर्थात् फल-प्रदान के द्वारा यजमान को प्राप्त होनेवाला हो। (स्वां योनि गच्छ) = अपनी कारणभत पारमेश्वरी शक्ति को प्रास हो, अर्थात् तुझे ये यजमान प्रभुशक्ति से होता हुआ जानें। (स्वाहा) = [सुआह] यह वाणी कितनी सुन्दर है, वेद का यह कथन वस्तुत: श्रेयस्कर है। २. हे (यज्ञपते) = यजमान! (एषः) = यह (ते यज्ञ:) = तुझसे किया जा रहा यज्ञ (सहसूक्तवाक:) = सूक्तवचनों के साथ हुआ है, विविध स्तोत्रों का इसमें उच्चारण हुआ है। (सुवीर्य:) = यह यज्ञ तुझे उत्तम वीर्यवाला बनाता है। (स्वाहा) = यह कथन कितना ही सुन्दर है। इसके सौन्दर्य को समझता हुआ तू यज्ञ करनेवाला बन।

    भावार्थ

    यज्ञ द्वारा प्रभुपूजन होता है। यह यज्ञ यजमान को उत्तम फल प्राप्त कराता है। यजमान इसे प्रभुशक्ति से होता हुआ समझे। इन यज्ञों को सूक्तवचनों के साथ करता हुआ वह उत्तम वीर्यवाला हो। यज्ञों के इन लाभों को समझता हुआ यजमान यज्ञशील बनें।

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    भाषार्थ

    (यज्ञ) हे सोमयज्ञ अर्थात् ब्रह्मचर्ययज्ञ ! (यज्ञम्) यज्ञनामक यष्टव्य-परमेश्वर की शरण में (गच्छ) तू जा (यज्ञपतिम्) इस यज्ञ के पति परमेश्वर की शरण में (गच्छ) तू जा। (स्वाम्) अपनी (योनिम्) योनि अर्थात् उत्पादिका पारमेश्वरी-माता की शरण में (गच्छ) जा (स्वाहा) एतनिमित्त हम प्रतिदिन के यज्ञ में आहुति देते हैं।

    टिप्पणी

    [ब्रह्मचर्याश्रम में जो ब्रह्मचर्य किया जाता है, उसे यज्ञ जानकर, उसे परमेश्वरार्पित करते हुए उसका संचालन करना चाहिये। "यज्ञ" परमेश्वर का नाम है। यथा "तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन पुरुषं जातमग्रतः” (यजु० ३१।९) में, "सहस्रशीर्ष" (यजु० ३१।१) पुरुष को "यज्ञं पुरुषम्" द्वारा निर्दिष्ट किया है]।

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    विषय

    ऋत्विजों का वरण।

    भावार्थ

    हे (यज्ञ) आत्मन्, समाधि द्वारा ईश्वर के साथ संगति लाभ करने हारे आत्मन् ! तू (यज्ञम्*) उस पूज्य यज्ञरूप परमेश्वर को (गच्छ) जा, प्राप्त हो। हे आत्मन् ! तू तो उसी (यज्ञ-पतिम्) समस्त यज्ञों, जीवों के पालक प्रभु को (गच्छ) प्राप्त कर। (स्वाहा) यह कितना अच्छा आदेश है कि तू (स्वां) अपने (योनिम्) परस आश्रयस्थान, स्वयोनि, आत्मभू, स्वयम्भू प्रभु को ही (गच्छ) प्राप्त हो। बस यही (स्वाहा) सबसे उत्तम आहुति अपना परमसर्वस्व है। आत्मा को परमात्मा में समर्पण करे।

    टिप्पणी

    *यज्ञं परमात्मानं विष्णुमिति सायणः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यज्ञासम्पूणकामोऽथर्वा ऋषिः। इन्द्राग्नी देवते। १-४ त्रिष्टुभः। ५ त्रिपदार्षी भुरिग् गायत्री। त्रिपात् प्राजापत्या बृहती, ७ त्रिपदा साम्नी भुरिक् जगती। ८ उपरिष्टाद् बृहती। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yajna

    Meaning

    O holy man, go and join every yajnic programme of holy creativity and positive production. Socially adorable, go and join every organiser of yajna. This way you go and join and thence rise in your own essential nature and character, go to the root and rise to the top. This is the voice of truth in the essence.

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    Translation

    O sacrifice, go to the sacrifice itself: go to the Lord of sacrifice; go to your own abode. Svaha. (Also Yv. VIII.22)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.102.5AS PER THE BOOK

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    Translation

    O righteous man! go to righteous deed as yajna etc. go to the performer of yajna and go to the root of your own nature through the Vedic speech.

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    Translation

    O soul go to God, the Venerable. O soul, realize God, the Nourisher of all souls. O soul, understand God, thy last Resort! What a nice instructing is this?

    Footnote

    See Yajur, 8-22.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यज्ञ) पूजनीय पुरुष (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (यज्ञपतिम्) पूजनीयव्यवहारस्य पालकम् (गच्छ) (स्वाम्) स्वकीयाम् (योनिम्) प्रकृतिम्। स्वभावम् (गच्छ) (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाण्या। वेदवाचा ॥

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