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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 10 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 4
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - आर्ची बृहती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
1
तस्मा॑त्पि॒तृभ्यो॑ मा॒स्युप॑मास्यं ददति॒ प्र पि॑तृ॒याणं॒ पन्थां॑ जानाति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त् । पि॒तृऽभ्य॑: । मा॒सि । उप॑ऽमास्यम् । द॒द॒ति॒ । प्र । पि॒तृ॒ऽयान॑म् । पन्था॑म् । जा॒ना॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥ १२.४॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मात्पितृभ्यो मास्युपमास्यं ददति प्र पितृयाणं पन्थां जानाति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात् । पितृऽभ्य: । मासि । उपऽमास्यम् । ददति । प्र । पितृऽयानम् । पन्थाम् । जानाति । य: । एवम् । वेद ॥ १२.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मात्) इसी कारण (पितृभ्यः) ऋतुओं को [वा ऋतुओं से] (मासि) महीने-महीने (उपमास्यम्) चन्द्रमा में रहनेवाले अमृत को वे [ईश्वरनियम] (ददति) देते हैं, वह (पितृयाणम्) ऋतुओं के चलने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र जानाति) जान लेता है (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥४॥
भावार्थ
ऋतुओं के गुणों को जानकर मनुष्य ऋतुओं की सूक्ष्म अवस्था जान लेता है ॥४॥
टिप्पणी
४−(पितृभ्यः) ऋतूनामर्थम्। ऋतूनां सकाशात् (मासि) मासे (उपमास्यम्) मासि चन्द्रमसि प्रभवममृतम् (ददति) प्रयच्छन्ति, ईश्वरनियमा इति शेषः (प्र) प्रकर्षेण (पितृयाणम्) ऋतुभिर्गमनीयम् (पन्थाम्) मार्गम्। अन्यत् सुगमम् ॥
विषय
पितरों का विराट को प्राप्त होना
पदार्थ
१. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा पितन् आगच्छत) = वह पितरों को प्राप्त हुई। (पितरः ताम् अन्नत) = पितृजन उस विराट को प्राप्त हुए। (सा) = वह विराट् (मासि) = सम्पूर्ण मास में (सम् अभवत्) = उन पितरों के साथ हुई । (तस्मात्) = विराट के पितरों के साथ होने से (पितृभ्यः) = पितजनों के लिए (मासि) = प्रत्येक मास पर (उपमास्यं ददति) = मासिक वृत्ति दे देते हैं। उत्तम सन्तान प्रतिमास पितरों के लिए आवश्यक धन देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। यही उनका पितृयज्ञ होता है। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इस पितृयज्ञ के महत्व को समझ लेता है, वह (पिृयाणं पन्थां प्रजानाति) = पित्याणमार्ग को सम्यक् जान लेता है। इस पित्याण से चलता हुआ वह चन्द्रलोक [स्वर्ग] को प्राप्त करता है।
भावार्थ
विशिष्ट दीसिवाली शासन-व्यवस्थावाले राष्ट्र में युवक पितृयज्ञ को सम्यक् निभाते हैं। प्रतिमास पितरों के लिए आवश्यक धन प्राप्त करा देना वे अपना कर्तव्य समझते हैं।
भाषार्थ
(तस्मात्) इसलिये (पितृभ्यः) ऋतुओं के प्रति (मासि) प्रतिमास (मास्यम्) मास में देय हविः (उप ददति) उपहाररूप में देते हैं, वह (पितृयाणम् पन्थाम्) 'पितृयाण' नामक मार्ग को (प्रजानाति) जानता है (यः) जो (एवम्) इस प्रकार [ऋतुओं के स्वरूप को] (वेद) जानता है।
इंग्लिश (4)
Subject
Virat
Meaning
For that reason, homage is offered monthly and fortnightly to the Pitaras. One who knows this knows the path of Pitaras.
Translation
Therefore, they present monthly food-offerings to elders every month (masi-upamasi). He, who knows it thus, knows well the path, the elders tread.
Translation
Hence the people give monthly remuneration to men of Practice and action, or perform monthly yajna. He who knows this knows the path called Pitriyana,
Translation
Hence the fathers are given every month their monthly salary. He who knows this, knows the way The elders have trodden.
Footnote
Fathers: The able elderly administrators of the state, who rear the subjects like parents. He who performs his duty conscientiously knows’ the path of truth, wisdom and virtue the elders have set before us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(पितृभ्यः) ऋतूनामर्थम्। ऋतूनां सकाशात् (मासि) मासे (उपमास्यम्) मासि चन्द्रमसि प्रभवममृतम् (ददति) प्रयच्छन्ति, ईश्वरनियमा इति शेषः (प्र) प्रकर्षेण (पितृयाणम्) ऋतुभिर्गमनीयम् (पन्थाम्) मार्गम्। अन्यत् सुगमम् ॥
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