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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - चतुष्पदा बृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    जूर्णि॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनीः। यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जूर्णि॑ । पुन॑: । व॒: । य॒न्तु॒ । या॒तव॑: । पुन॑: । हे॒ति: । कि॒मी॒दि॒नी॒: । यस्य॑ । स्थ । तम् । अ॒त्त॒ । य: । व॒: । प्र॒ऽअहै॑त् । तम् । अ॒त्त॒ । स्वा । मां॒सानि॑ । अ॒त्त॒ ॥२४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जूर्णि पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनीः। यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत्तमत्त स्वा मांसान्यत्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जूर्णि । पुन: । व: । यन्तु । यातव: । पुन: । हेति: । किमीदिनी: । यस्य । स्थ । तम् । अत्त । य: । व: । प्रऽअहैत् । तम् । अत्त । स्वा । मांसानि । अत्त ॥२४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १.हे (जूर्णि) = क्रोधवृत्ति [जीण भवति प्राणिशरीरम् अनयेति जूर्णिः, Anger]! (किमीदिनी:) = डाका मारने की वृत्तियो! (व:) = तुम्हारे (यातव:) = पीड़ित करनेवाले राक्षसी वृत्ति के लोग (पुनः यन्तु) = फिर से तुम्हें प्राप्त हों। (हेति: पुन:) = तुम्हारे अस्त्र तुमपर ही प्रहार करनेवाले हों। २. (यस्य स्थ) = तुम जिसके हो (तम् अत्त) = उसी को खाओ, (यः वः प्राहैत्) = जो तुम्हें भेजता है, (तम्) = उसे खानेवाले होओ। (स्वा मांसानि अत्त) = अपने ही मांसों को खानेवाले बनों।

    भावार्थ -

    शक्ति को जीर्ण करनेवाली क्रोध आदि वृत्तियों से हम ऊपर उठे।

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