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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 132

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 132/ मन्त्र 16
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    नील॑शिखण्ड॒वाह॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नील॑शिखण्ड॒वाह॑न:॥१३२.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नीलशिखण्डवाहनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नीलशिखण्डवाहन:॥१३२.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    १. वासना को जीतकर संसार के रंगों में न रंगा हुआ यह पुरुष-'नील' बनता है 'कृष्णा'-न रंगा हुआ। २. क्रोध को जीतकर यह 'शिखण्ड' [crest] मूर्धन्य-शिरोमणि बनता है। ३. लोभ को जीतकर यह न्यायार्जित धन से जीवन-यात्रा का वहन करनेवाला 'वाहन' बनता है। इसप्रकार इसका नाम 'नीलशिखण्ड वाहन' हो जाता है।

    भावार्थ - हम "काम, क्रोध, लोभ' रूप तीनों शत्रओं को जीतकर नीलशिखण्डवाहन' बनें।

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