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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 118 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 118/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ता वां॑ नरा॒ स्वव॑से सुजा॒ता हवा॑महे अश्विना॒ नाध॑मानाः। आ न॒ उप॒ वसु॑मता॒ रथे॑न॒ गिरो॑ जुषा॒णा सु॑वि॒ताय॑ यातम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । वा॒म् । न॒रा॒ । सु । अव॑से । सु॒ऽजा॒ता । हवा॑महे । अ॒श्वि॒ना॒ । नाध॑मानाः । आ । नः॒ । उप॑ । वसु॑ऽमता । रथे॑न । गिरः॑ । जु॒षा॒णा । सु॒वि॒ताय॑ । यातम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता वां नरा स्ववसे सुजाता हवामहे अश्विना नाधमानाः। आ न उप वसुमता रथेन गिरो जुषाणा सुविताय यातम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता। वाम्। नरा। सु। अवसे। सुऽजाता। हवामहे। अश्विना। नाधमानाः। आ। नः। उप। वसुऽमता। रथेन। गिरः। जुषाणा। सुविताय। यातम् ॥ १.११८.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 118; मन्त्र » 10
    अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे सुजाता गिरो जुषाणाऽश्विना नरा नाधमाना वयं ययोर्वामवसे सुहवामहे ता युवां वसुमता रथेन नोऽस्मान् सुवितायोपायातम् ॥ १० ॥

    पदार्थः

    (ता) तौ (वाम्) युवाम् (नरा) नेतारौ स्त्रीपुरुषौ (सु) (अवसे) रक्षणाद्याय (सुजाता) शोभनेषु सद्विद्याग्रहणाख्यकर्मसु प्रादुर्भूतौ (हवामहे) आह्वयामहे (अश्विना) प्रजाङ्गपालकौ (नाधमानाः) प्राप्तपुष्कलैश्वर्याः (आ) (नः) अस्मान् (उप) (वसुमता) प्रशस्तानि सुवर्णादीनि विद्यन्ते यस्मिँस्तेन (रथेन) रमणीयेन विमानादियानेन (गिरः) शुभा वाणीः (जुषाणा) सेवमानौ (सुविताय) ऐश्वर्याय। अत्र सु धातोरौणादिक इतच् किच्च। (यातम्) प्राप्नुतम् ॥ १० ॥

    भावार्थः

    प्रजास्थैः स्त्रीपुरुषैर्ये राजपुरुषाः प्रीयेरन् ते प्रजाजनान् सततं प्रीणयन्तु यतः परस्पराणां रक्षणेनैश्वर्यवृन्दो नित्यं वर्द्धेत ॥ १० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (सुजाता) श्रेष्ठ विद्याग्रहण करने आदि उत्तम कामों में प्रसिद्ध हुए (गिरः) शुभ वाणियों का (जुषाणा) सेवन और (अश्विना) प्रजा के अङ्गों की पालना करनेवाले (नरा) न्याय में प्रवृत्त करते हुए स्त्री-पुरुषो ! (नाधमानाः) जिनको कि बहुत ऐश्वर्य्य मिला वे हम जिन (वाम्) तुम लोगों को (अवसे) रक्षा आदि के लिये (सु, हवामहे) सुन्दरता से बुलावें (ता) वे तुम (वसुमता) जिसमें प्रशंसित सुवर्ण आदि धन विद्यमान है, उस (रथेन) मनोहर विमान आदि यान से (नः) हम लोगों को (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये (उप, आ, यातम्) आ मिलो ॥ १० ॥

    भावार्थ

    प्रजाजनों के स्त्री-पुरुषों से जो राजपुरुष प्रीति को पावें, प्रसन्न हों, वे प्रजाजनों को प्रसन्न करें जिससे एक दूसरे की रक्षा से ऐश्वर्यसमूह नित्य बढ़े ॥ १० ॥

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    विषय

    वसुमान् रथ

    पदार्थ

    १. हे (नरा) = उन्नति - पथ पर हमारा नेतृत्व करनेवाले (सुजाता) = उत्तम विकासवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! (सु - अवसे नाधमानाः) = उत्तम रक्षण के लिए याचना करते हुए हम (ता वाम्( - उन आप दोनों को (हवामहे) = पुकारते हैं । प्राणापान से हम उन्नति के मार्ग पर चलते हैं , हमारा उत्तम विकास होता है । ये प्राणापान हमारा बड़ी उत्तमता से रक्षण करते हैं - हमारे शरीरों में रोगों को नहीं आने देते और मनों में न्यूनताओं को नहीं आने देते । २. हे प्राणापानो ! आप (नः) = हमारी (गिरः) = स्तुतिवाणियों का (जुषाणा) = प्रीतिपूर्वक सेवन करते हुए (वसुमता रथेन) = उत्तम वसुओंवाले रथ से (उप + आयातम्) = समीप प्राप्त होओ , ताकि (सुविताय) = हम दुरितों व दुःखों से दूर हों । प्राणसाधना के द्वारा हमारा यह शरीररथ वसुमान् बने - निवास के लिए आवश्यक सब तत्वों से यह सम्पन्न हो । इस रथ को प्राप्त करके हम जीवन - यात्रा में सुवित के मार्ग से ही चलें , दुरितों से दूर रहें । प्राणसाधना ही हमें दुरितों से दूर रखती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना से हमारा शरीर - रथ वसुमान् हो और हम दुरितों से दूर होकर सुवित के मार्ग से चलें ।

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    विषय

    विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( सुजाता ) उत्तम विद्या आदि शुभ गुणों में विख्यात ( अश्विना ) विद्वान् स्त्री पुरुषो ! हे ( नरा ) सन्मार्ग पर चलाने हारे नायक पुरुषो ! हम लोग ( नाधमानाः ) ऐश्वर्यवान् और ऐश्वर्य की याचना करते हुए, ( ता वां ) उन प्रसिद्ध आप दोनों को ( सु अवसे ) उत्तम ज्ञान और रक्षा के लिये ( हवामहे ) अपना प्रमुख स्वीकार करते हैं । आग ( गिरः जुषाणा ) उत्तम ज्ञान-वाणियों का सेवन करते हुए ( नः ) हमारे पास ( वसुमता रथेन ) ऐश्वर्य से पूर्ण रथ, या रमण साधनों से ( सुविताय ) सुख, ऐश्वर्य की वृद्धि करने और उत्तम मार्ग में ले जाने के लिये ( नः उपयातम् ) हमें प्राप्त होवें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ११ भुरिक् पंक्तिः । २, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ८ विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेतील स्त्री-पुरुषांकडून ज्या राजपुरुषांना प्रेम मिळते व ते प्रसन्न होतात तेव्हा प्रजेलाही ते प्रसन्न करतात. परस्पर रक्षण केल्यामुळे त्यांची ऐश्वर्यसंपन्नता सदैव वाढावी. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, powers of nature’s energy, leading lights of humanity, bom of divinity and risen in blessed knowledge and noble actions, we invoke you, invite you and call upon you for our protection and advancement in the hour of need at the height of power and prosperity. Listen to our prayer, come riding your chariot of universal wealth and stand by us for our freedom and prosperity.

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    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O leaders, manifested in the acquisition of knowledge and other good virtues according to our requests, with love, we earnestly call you to our succor possessing wealth of knowledge. Please come to us with your wealthy car in the form of aero-plane, to bring us felicity.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (नरा) नेतारौ स्त्रीपुरुषौ = Leading men and women. (रथेन) रमणीयेन विमानादियानेन = By a charming vehicle like the aero-plane etc. रममाणोऽस्मिस्तिष्ठतीतिरथ: (निरुक्ते ९-२.१ )

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The Officers of the State who are pleased and served by the people should also please them constantly, so that prosperity may increase by their mutual co-operation and protection.

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