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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 144 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 144/ मन्त्र 4
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    यमीं॒ द्वा सव॑यसा सप॒र्यत॑: समा॒ने योना॑ मिथु॒ना समो॑कसा। दिवा॒ न नक्तं॑ पलि॒तो युवा॑जनि पु॒रू चर॑न्न॒जरो॒ मानु॑षा यु॒गा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । ई॒म् । द्वा । सऽव॑यसा । स॒प॒र्यतः॑ । स॒मा॒ने । योना॑ । मि॒थु॒ना । सम्ऽओ॑कसा । दिवा॑ । न । नक्त॑म् । प॒लि॒तः । युवा॑ । अ॒ज॒नि॒ । पु॒रु । चर॑न् । अ॒जरः॑ । मानु॑षा । यु॒गा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमीं द्वा सवयसा सपर्यत: समाने योना मिथुना समोकसा। दिवा न नक्तं पलितो युवाजनि पुरू चरन्नजरो मानुषा युगा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। ईम्। द्वा। सऽवयसा। सपर्यतः। समाने। योना। मिथुना। सम्ऽओकसा। दिवा। न। नक्तम्। पलितः। युवा। अजनि। पुरु। चरन्। अजरः। मानुषा। युगा ॥ १.१४४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 144; मन्त्र » 4
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    सवयसा द्वा समाने योना मिथुना दम्पती समोकसा सह वर्त्तमानौ दिवा नक्तन्नेव यमीं वालं सपर्यतः सोऽजरो मानुषा युगा पुरु चरन् पालितोऽपि युवाऽजनि ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (यम्) सन्तानम् (ईम्) (द्वा) द्वौ (सवयसा) समानवयसौ (सपर्यतः) परिचरतः (समाने) तुल्ये (योना) योनौ जन्मनिमित्ते (मिथुना) दम्पती (समोकसा) समानगृहेण सह वर्त्तमानौ (दिवा) दिवसे (न) इव (नक्तम्) रात्रौ (पलितः) जातश्वेतकेशः (युवा) युवावस्थास्थः (अजनि) जायेत (पुरु) बहु (चरन्) विचरन् (अजरः) जरारोगरहितः (मानुषा) मनुष्यसम्बन्धीनि (युगा) युगानि वर्षाणि ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा प्रीत्या सह वर्त्तमानौ स्त्रीपुरुषौ धर्म्येण सुतं जनयित्वा सुशिक्ष्य शीलेन संस्कृत्य भद्रं कुरुतस्तथा समानावध्यापकोपदेशकौ शिष्यान् सुशीलान्कुरुतः। यथा वा दिनं रात्र्या सह वर्त्तमानमपि स्वस्थाने रात्रिं निवारयति तथाऽज्ञानिभिस्सह वर्त्तमानावध्यापकोपदेशकौ मोहे न संलगतः। यथा वा कृतपूर्णब्रह्मचर्यौ रूपलावण्यबलादिगुणयुक्तं सन्तानमुत्पादयतस्तथैतौ सत्याध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वेषां पूर्णमात्मबलं जनयतः ॥ ४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    (सवयसा) समान अवस्थायुक्त (द्वा) दो (समान) तुल्य (योना) उत्पत्ति स्थानमें (मिथुना) मैथुन कर्म करनेवाले स्त्री-पुरुष (समोकसा) समान घर के साथ वर्त्तमान (दिवा) दिन (नक्तम्) रात्रि के (न) समान (यम्) जिस (ईम्) प्रत्यक्ष बालक का (सपर्यतः) सेवन करें उसको पालें, वह (अजरः) जरा अवस्थारूपी रोगरहित (मानुषा) मनुष्य सम्बन्धी (युगा) वर्षों को (पुरु) बहुत (चरन्) चलता भोगता हुआ (पलितः) सुपेद बालोंवाला भी हो तो (युवा) ज्वान तरुण अवस्थावाला (अजनि) प्रकट होता है ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रीति के साथ वर्त्तमान स्त्री-पुरुष धर्मसम्बन्धी व्यवहार से पुत्र को उत्पन्न कर उसे अच्छी शिक्षा दे शीलवान् कर सुखी करते हैं, वैसे समान पढ़ाने और उपदेश करनेवाले दो विद्वान् शिष्यों को सुशील करते हैं। वा जैसे दिन, रात्रि के साथ वर्त्तमान भी अपने स्थान में रात्रि को निवृत्त करता है, वैसे अज्ञानियों के साथ वर्त्तमान पढ़ाने और उपदेश करनेवाले विद्वान् मोह में नहीं लगते हैं। वा जैसे किया है पूरा ब्रह्मचर्य जिन्होंने, वे रूपलावण्य और बलादि गुणों से युक्त सन्तान को उत्पन्न करते हैं, वैसे ये सत्य पढ़ाने और उपदेश करने से सबका पूरा आत्मबल उत्पन्न करते हैं ॥ ४ ॥

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    विषय

    प्रभुरूप समान गृह में

    पदार्थ

    १. (द्वा) = गतमन्त्र में वर्णित दोनों पति-पत्नी (सवयसा) = समानरूप से आयुष्य को प्राप्त किये हुए होकर (यम्) = जिस परमात्मा को (ईम्) = निश्चय से (सपर्यतः) = पूजित करते हैं और समाने (योना) = उस समान उत्पत्तिस्थान प्रभु में मिथुना मिलकर निवास करनेवाले (समोकसा) = समान गृहवाले होते हैं। वह प्रभु (दिवा न नक्तम्) न दिन में न रात्रि में (पलितः) = बुढ़ापे की सफेदीवाला होता है, अर्थात् दिन-रात बीतते हुए उसे वृद्ध नहीं कर देते, युवा अजनि वह सदा युवा बना रहता है। २. (मानुषा युगा) = अपने उपासक इन मानव- युगलों में पति-पत्नियों की जोड़ियों में (द्वन्द्वों में) (पुरुचरन्) = खूब गति करता हुआ वह (अजरः) = सदा अ-जीर्ण बना रहता है। मानवहित के लिए प्रभु की सब क्रियाएँ हैं। प्रभु को अपने लिए कुछ नहीं करना। यही उसकी अजीर्णता का रहस्य है।

    भावार्थ

    भावार्थ- पति-पत्नी मिलकर प्रभु का उपासन करते हैं तो वे एक प्रभु में निवास का अनुभव करने से परस्पर अधिक समीप होते हैं। वे प्रभु की भाँति परार्थ में प्रवृत्त होकर अजर बनने का प्रयत्न करते हैं।

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    विषय

    माता पिता का बालक के प्रति कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( यम् ) जिस बालक को ( द्वा ) दोनों ( सवयसा ) समान रूप से परिपक्व बल वीर्य वाले, मित्र या सखाभूत (समोकसा) एक ही गृह में रहते हुए, (मिथुना) स्त्री पुरुष, पति पत्नी ( समाने योनौ ) एक समान पुत्रोत्पादक गर्भाशय में स्थित ( ईम् ) इसकी ( सपर्यतः ) नाना प्रकार से परिचर्या करते हैं, उसको पालते पोषते हैं । तब वह ( दिवा नक्तं न = च ) दिन और रात ( पलितः = पालितः ) पाला जाकर अथवा ( पलितः ) ज्ञानवान् और पूर्ण होकर ( पुरु ) बहुत से ( मानुषा युगा ) मनुष्योचित जीवन के वर्षों को ( चरन् ) व्यतीत करता हुआ ( अजरः ) जरारहित, हृष्टपुष्ट ( युवा अजनि ) युवा हो जाता है। अथवा, वह ( युवा अजरः पुरु मानुषा युगा चरन् दिवानक्तं पलितः अजनि ) वह युवा होकर भी बहुत से वर्ष भोग कर बाद में वृद्ध होवे । वह बाल-काल में में नष्ट न होकर चिरायु हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ३, ४, ५, ७ निचृज्जगती । २ जगती । ६ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे स्त्री-पुरुष धर्मासंबंधी व्यवहार करून प्रेमाने पुत्र उत्पन्न करतात व त्याला चांगले शिक्षण देऊन सुशील व सुसंस्कारित करतात तसे समान शिकविणारे व उपदेश करणारे दोन विद्वान शिष्यांना सुशील करतात. जसा दिवस रात्रीबरोबर राहून स्वस्थानातून रात्रीचे निवारण करतो तसे अज्ञानी लोकांबरोबर असणारे अध्यापक व उपदेशक विद्वान मोहात अडकत नाहीत किंवा पूर्ण ब्रह्मचर्यपालन करून रूप, लावण्य व बल इत्यादी गुणांनी युक्त होऊन संतान उत्पन्न करतात तसे ते सत्याचे अध्यापन व उपदेश याद्वारे सर्वांमध्ये पूर्ण आत्मबल उत्पन्न करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When two persons of equal age, the wedded couple, living together, the two as one in the same one body, in the same one house, serve and worship the same Agni in love day and night, then the same old eternal Agni, ever vibrating in the human soul as the will to live and generate, unaging, for ages and ages, is reborn as new and young as ever in the human form.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Attributes of ideal teachers and preachers mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Like the day and night the parents, both united happily, give birth to a young progeny. Such offshoots remain young, energetic and free from the decay though apparently they may have grey heirs. Likewise, the good teachers and preachers build Aline for the society.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Good parents produce good children, and likewise the good teachers and preachers prepare ideal and dedicated citizens.

    Foot Notes

    (अजर:) जरारोगरहितः = Free from the diseases of old age. (युगा) युगानि = वर्षाणि = Years.

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