Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 127 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 127/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कुशिकः सौभरो, रात्रिर्वा भारद्वाजी देवता - रात्रिस्तवः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    नि ग्रामा॑सो अविक्षत॒ नि प॒द्वन्तो॒ नि प॒क्षिण॑: । नि श्ये॒नास॑श्चिद॒र्थिन॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । ग्रामा॑सः । अ॒वि॒क्ष॒त॒ । नि । प॒त्ऽवन्तः । नि । प॒क्षिणः॑ । नि । श्ये॒नासः॑ । चि॒त् । अ॒र्थिनः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण: । नि श्येनासश्चिदर्थिन: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि । ग्रामासः । अविक्षत । नि । पत्ऽवन्तः । नि । पक्षिणः । नि । श्येनासः । चित् । अर्थिनः ॥ १०.१२७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 127; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ग्रामासः) जनसमूह रात्रि में (नि-अविक्षत) शयन करते हैं-करें (पद्वन्तः-नि) पैरवाले पशु शयन करें (पक्षिणः-नि) पक्षी भी शयन करें (श्येनासः-अर्थिनः) तीव्र गतिमान् भी शयन करें (चित्-नि) थकावट दूर करने के लिए भी शयन करें।

    भावार्थ

    रात्रि में मनुष्य पशु पक्षी शान्तिप्रयोजन साधने के लिए शयन करें ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विश्राम काल

    पदार्थ

    [१] रात्रि आती है और (ग्रामासः नि अविक्षत) = ग्राम के ग्राम अपने घरों में प्रवेश करते हैं और सोने की तैयारी करते हैं । (पद्वन्तः) = सब पाँववाले द्विपात् मनुष्य व चतुष्पाद् पशु (नि) = सोने के लिए अपने-अपने स्थान में प्रवेश करते हैं । (पक्षिणः) = पक्षी भी (नि) = अपने घोंसलों में प्रवेश करते हैं । [२] (श्येनासः) = अत्यन्त तीव्र गतिवाले, इधर-उधर भागते हुए, एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते हुए (अर्थिनः) = धन के चाहनेवाले ये व्यापारी (चित्) = भी अपने-अपने स्थान में पहुँचकर सोने के लिए तैयार होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - रात्रि सब के विश्राम का कारण बनती है। रात्रि विश्राम काल है, जैसे दिन कार्य काल ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रात्रि के दृष्टान्त से जगत्-शासिका प्रभुशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे प्रभुशक्ते ! (ते यामन्) तेरे शासन में (ग्रामासः नि अविक्षत) अनेक जन-समूह डेरा डाले हैं, विश्राम पाते हैं। तेरे शासन में (पद्वन्तः निः पक्षिणः) चरणों वाले मनुष्य और पशु, और पक्षीगण और (श्येनासः) उत्तम आचरणवान् जन और (अर्थिनः चित्) बड़े धनशाली जन भी (नि) आश्रय लेते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः कुशिकः सौभरोः रात्रिर्वा भारद्वाजी। देवता—रात्रिस्तवः॥ छन्द:—१, ३, ६ विराड् गायत्री। पादनिचृद् गायत्री। ४, ५, ८ गायत्री। ७ निचृद् गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ग्रामासः-नि-अविक्षत) जनसमूहा रात्रौ निविशमाणाः शयनं कुर्वन्तु ‘लोडर्थे लुङ्’ (पद्वन्तः-नि) पादवन्तः पशवो निविशमाणाः शयनं कुर्वन्तु (पक्षिणः नि) पक्षिणोऽपि निविशमाणाः शयनं कुर्वन्तु (श्येनासः-अर्थिनः-चित्-नि) शंसनीयगतिमन्तस्तीव्रं गतिमन्तोऽपि रात्रौ-श्रान्तत्वनिवारणाय शयनं कुर्वन्तु ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    People come back home and rest in sleep. So do animals, so do birds, eagles too. They need rest and sleep after the day’s toil.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    मनुष्य, पशू, पक्षी यांनी शांती प्रयोजन साधण्यासाठी रात्री शयन करावे. ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top