ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 78/ मन्त्र 5
अश्वा॑सो॒ न ये ज्येष्ठा॑स आ॒शवो॑ दिधि॒षवो॒ न र॒थ्य॑: सु॒दान॑वः । आपो॒ न नि॒म्नैरु॒दभि॑र्जिग॒त्नवो॑ वि॒श्वरू॑पा॒ अङ्गि॑रसो॒ न साम॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठअश्वा॑सः । न । ये । ज्येष्ठा॑सः । आ॒शवः॑ । दि॒धि॒षवः॑ । न । र॒थ्यः॑ । सु॒ऽदान॑वः । आपः॑ । न । नि॒म्नैः । उ॒दऽभिः॑ । जि॒ग॒त्नवः॑ । वि॒श्वऽरू॑पाः । अङ्गि॑रसः । न । साम॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वासो न ये ज्येष्ठास आशवो दिधिषवो न रथ्य: सुदानवः । आपो न निम्नैरुदभिर्जिगत्नवो विश्वरूपा अङ्गिरसो न सामभिः ॥
स्वर रहित पद पाठअश्वासः । न । ये । ज्येष्ठासः । आशवः । दिधिषवः । न । रथ्यः । सुऽदानवः । आपः । न । निम्नैः । उदऽभिः । जिगत्नवः । विश्वऽरूपाः । अङ्गिरसः । न । सामऽभिः ॥ १०.७८.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 78; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ये) जो विद्वान् (अश्वासः) विद्या में शीघ्र प्रवेशशील (ज्येष्ठासः:-आशवः-न) श्रेष्ठ घोड़ों के समान हैं (दिधिषवः) ध्यानवान् (रथ्यः-न) रथस्वामियों के समान स्वशरीररथ के स्वामी (सुदानवः) शोभन विद्यादाता (आपः-न) नदियों के समान (निम्नैः-उदभिः) नीचे बहनेवाले जल के समान (जिगत्नवः) ज्ञानप्रवाहक हैं (विश्वरूपाः-अङ्गिरसः-न) स्व ज्ञान के निरूपण करनेवाले सर्वाङ्गशास्त्र ज्ञानप्रेरकों के समान (सामभिः) शान्तभावों से वर्तमान होते हैं ॥५॥
भावार्थ
जो विद्वान् विद्या में प्रवेशशील, ध्यानवान्, उपासक, अपने शरीररथ के स्वामी अर्थात् संयमी, नम्र विद्या का प्रवाह चलानेवाले, सब मनुष्यों तक प्रवृत्त होते हैं, उनकी सङ्गति करनी चाहिए ॥५॥
विषय
वे नाना विद्याओं में पारंगत, सर्वपोषक, विनयी हों
भावार्थ
(न) और (ये) जो (अश्वासः) नाना विद्याओं में पारंगत (ज्येष्ठासः) प्रशंसनीय, मान, आदर गुणों में महान्, (आशवः) वेग से जाने वाले, (रथ्यः न) रथ में लगे अश्वों के समान (दिधिषवः) सब का पालन पोषण करने वाले, (निम्नैः उदभिः न आपः) नीचे बहने वाले जलों से जलधाराओं के समान (निम्नैः जिगत्नवः) निम्न, विनयशील आचार व्यवहारों से आगे बढ़ने वाले, (विश्व-रूपाः न) और अनेक प्रकार के (अंगिरसः) ज्ञानी, तेजस्वी पुरुष (सामभिः) उत्तम, विनययुक्त शान्तिदायक वचनों से विराजते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्यूमरश्मिर्भार्गवः॥ मरुतो देवता॥ छन्दः– आर्ची त्रिष्टुप्। ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। ८ त्रिष्टुप्। २, ५, ६ विराड् जगती। ७ पादनिचृज्जगती॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
विषय
संसार को सुन्दर बनानेवाले
पदार्थ
[१] प्राणसाधक पुरुष वे होते हैं (ये) = जो (अश्वासः न) = मार्ग का व्यापन करनेवाले घोड़ों के समान (आशवः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाले और अतएव (ज्येष्ठासः) = प्रशस्त जीवनवाले बनते हैं । प्राणसाधना स्फूर्ति को देकर हमारे जीवनों को प्रशस्त बनाती है । [२] ये साधक (दिधिषवः न) = वसुओं के जीवन के धारक तत्त्वों को धारण करनेवालों के समान (रथ्यः) = उत्तम शरीररूप रथवाले तथा (सुदानवः) = [दाप् लवने] शरीर में आ जानेवाली कमियों का खण्डन करनेवाले होते हैं कमियों को दूर करके ये इस रथ को सदा यात्रा के लिये उपयुक्त बनाये रखते हैं । [३] (आपः निम्नैः न) = जल जैसे निम्न मार्गों से गति करते हैं, उसी प्रकार ये साधक (निम्नैः उदभिः जिगत्लवः) = नम्रता की भावना को जगानेवाले रेतःकणों के साथ गतिशील होते हैं। ये अपने में रेत: कणों का रक्षण करते हैं और रक्षित रेतःकण इन्हें नम्र जीवनवाला बनाते हैं । [४] ये साधक (सामभिः) = उपासनाओं के द्वारा (अंगिरसः न) = अंगिरसों के समान, अंगारों की तरह देदीप्यमान पुरुषों के समान, (विश्वरूपा:) = [विश्वं रूपयन्ति] इस विश्व को उत्तम रूप देनेवाले हैं। उपासना से इन्हें शक्ति प्राप्त होती है, ये अग्निरूप प्रभु के समान ही चमक उठते हैं और संसार को उत्तम बनानेवाले होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ-प्राणसाधक 'शीघ्रता से कार्य करनेवाले, बुराइयों का खण्डन करनेवाले, नम्रतापूर्वक गतिशील तथा उपासना से संसार को उत्तम रूप देनेवाले बनते हैं ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ये-अश्वासः-न ज्येष्ठासः-आशवः) ये विद्वांसो विद्यायामाशु प्रवेशशीला ज्येष्ठा अश्वा इव सन्ति (दिधिषवः-रथ्यः-न सुदानवः) ध्यानवन्तः स्वशरीररथस्य स्वामिनः शोभनविद्यादातारः (आपः-न निम्नैः-उदभिः-जिगत्नवः) नद्य इव निम्नैर्जलैरिव ज्ञानप्रवाहका विद्वांसः सन्ति (विश्वरूपाः-अङ्गिरसः-न सामभिः) विश्वं ज्ञानं निरूपयितारः सर्वाङ्गशास्त्रज्ञानस्य प्रेरयितारः शान्तभावैरिव यथा भवितव्यं तथा ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
They are vibrant winners of the highest order like rays of light in focus, generous givers like commanders of the chariots of plenty and charity, progressive seekers like rivers flowing down to the sea, and versatile workers of theoretical knowledge into practice like the Angiras sages of Atharva Veda realising their hymns with the music of Samans.
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान विद्येत शीघ्र प्रवेश करणारे, ध्यानी, उपासक, आपल्या शरीररथाचे स्वामी अर्थात संयमी, नम्र विद्येचे प्रवाहक, सर्व माणसांपर्यंत पोचतात, त्यांची संगती केली पाहिजे. ॥५॥
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