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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
    ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीषः देवता - आपः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा । अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वश॑म्भुवम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प्ऽसु । मे॒ । सोमः॑ । अ॒ब्र॒वी॒त् । अ॒न्तः । विश्वा॑नि । भे॒ष॒जा । अ॒ग्निम् । च॒ । वि॒श्वऽश॑म्भुवम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा । अग्निं च विश्वशम्भुवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्ऽसु । मे । सोमः । अब्रवीत् । अन्तः । विश्वानि । भेषजा । अग्निम् । च । विश्वऽशम्भुवम् ॥ १०.९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमः) उत्पादक परमात्मा (मे) मेरे लिये (अब्रवीत्) कहता है-उपदेश देता है, कि (अप्सु-अन्तः) जलों के अन्दर (विश्वानि भेषजा) सारे औषध हैं (विश्वशंभुवम्-अग्निं च) सर्वकल्याण करनेवाले अग्नि को भी कहता है-उपदिष्ट करता है ॥६॥

    भावार्थ

    जलों में सर्वरोगों को दूर करनेवाले गुण हैं, विविध रीति से सेवन करने से-स्नान, पान, स्पर्श, मार्जन, आचमन आदि द्वारा वे प्राप्त होते हैं। जलों के अन्दर अग्नि भी है, वह स्वास्थ्य का संरक्षण करती है। वह जलों में स्वतः प्रविष्ट है, विद्युद्रूप से बाहर प्रकट होती है। इसी प्रकार आप्त जन, लोगों के आन्तरिक दोषों को दूर करते हैं और उनमें गुणों का आधान करते हैं ॥६॥

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    विषय

    विश्व- भेषज

    पदार्थ

    [१] (सोमः) = सोम शक्ति के पुञ्ज प्रभु ने (मे) = मेरे लिये (अब्रवीत्) = यह प्रतिपादन किया है कि (अप्सु अन्तः) = जलों के अन्दर (विश्वानि भेषजः) = सम्पूर्ण औषध हैं। सब रोग जलों के ठीक प्रयोग से चिकित्सित हो सकते हैं। कोई भी रोग ऐसा नहीं जो कि इन जलों के लिये असाध्य हो । 'जल घातने' इस धातु से बना हुआ 'जल' शब्द ही इस बात का संकेत कर रहा है कि ये सब रोगों का (घात) = विनाश करनेवाले हैं । [२] प्रभु का 'सोम' नाम से स्मरण भी यहाँ भी व पूर्ण है, ये जल ही वस्तुतः 'आप: रेतो भूत्वा० ' रेतः कण बनकर शरीर में प्रविष्ट होते हैं और ये हमें सोम [semen] शक्ति सम्पन्न बनाते हैं। यह सोम शक्ति ही रोगों का विनाश करती है। [३] प्रभु ने (च) = यह भी प्रतिपादित किया है कि (अग्निं विश्वशंभुवम्) = अग्नि सब रोगों को शान्त करनेवाली है। इस प्रकार 'अप्सुः व अग्निं' शब्द 'जलों में अग्नि' को सब रोगों का शामक व भेषज कर रहे हैं। इन शब्दों में पीने के लिये गरम जल के प्रयोग का संकेत स्पष्ट है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- गरम जल ही पीना चाहिए, यह हमारे सब रोगों को शान्त करेगा ।

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    विषय

    आपः। आप्त जनों के कर्त्तव्य। जलों से उनकी तुलना। जलों का रोगों को, और आप्तों का दुर्भावों और पापों को दूर करने का कर्तव्य।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो मं० १। सू० २३। मन्त्र २०॥ इति पञ्चमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीष ऋषिः। आपो देवताः॥ छन्दः-१—४, ६ गायत्री। ५ वर्धमाना गायत्री। ७ प्रतिष्ठा गायत्री ८, ९ अनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमः) उत्पादकः परमात्मा (मे) मह्यम् (अब्रवीत्) उपदिशति (अप्सु-अन्तः) अपामभ्यन्तरे (विश्वानि भेषजा) सर्वाण्यप्यौषधानि सन्ति (विश्वशंभुवम्-अग्निं च) सर्वकल्याणस्य भावयितारं साधकमग्निं च ‘अब्रवीत्’ ब्रवीति ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma in the waters touches and speaks to me: All sanatives reside in the waters which also contain the vital warmth and fire of Agni for peace and blessedness of all.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जलात सर्व रोग दूर करणारे गुण आहेत. विविध रीतीने सेवन करण्याने - स्नान, पान, स्पर्श, मार्जन, आचमन इत्यादीद्वारे ते प्राप्त होतात. जलात अग्नीही आहे. तो स्वास्थ्य संरक्षण करतो. तो जलात स्वत: प्रविष्ट आहे. विद्युतरूपाने बाहेर प्रकट होतो. याच प्रकारे आप्तजन लोकांचे आंतरिक दोष दूर करतात व त्यांच्यात गुणांचे आधान करतात. ॥६॥

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