ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
ऋषिः - त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीषः
देवता - आपः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
इ॒दमा॑प॒: प्र व॑हत॒ यत्किं च॑ दुरि॒तं मयि॑ । यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒ यद्वा॑ शे॒प उ॒तानृ॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । आ॒पः॒ । प्र । व॒ह॒त॒ । यत् । किम् । च॒ । दुः॒ऽइ॒तम् । मयि॑ । यत् । वा॒ । अ॒हम् । अ॒भि॒ऽदु॒द्रोह॑ । यत् । वा॒ । शे॒पे । उ॒त । अनृ॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदमाप: प्र वहत यत्किं च दुरितं मयि । यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वा शेप उतानृतम् ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । आपः । प्र । वहत । यत् । किम् । च । दुःऽइतम् । मयि । यत् । वा । अहम् । अभिऽदुद्रोह । यत् । वा । शेपे । उत । अनृतम् ॥ १०.९.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
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अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 5; मन्त्र » 8
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(आपः) जलो ! (इदम्) इस प्रसिद्ध शरीरमल-शरीर पर लिप्त मल को (प्रवहत) परे बहा दो (यत् किञ्च दुरितं मयि) जो कुछ दुःख से गमन-किसी कार्य में गति हो, उस अन्धरूप तमोगुण असावधानभाव को मेरे अन्दर से दूर करो (यत्-वा) और जो (अहम्-अभिदुद्रोह) मैं द्रोह-क्रोध करूँ, उसे भी परे करो (यत्-वा-उत) और जो भी (अनृतं शेपे) असत्य -झूठ या आक्षेपवचन किसी को बोलूँ, उसे भी दूर करो ॥८॥
भावार्थ
जल मनुष्य के देहमलों को अलग करता है, तमोगुण, आलस्य, असावधानता को मिटाता है, क्रोध को शान्त करता है। बुरा कहने, निन्दा करने, अहित वचन बोलने से उत्पन्न क्लेश को भी दूर करता है-उस प्रवृत्ति को हटाता है। जल से स्नान, नेत्रमार्जन और उसके पान द्वारा मनुष्य पापकर्म के उपरान्त पश्चात्ताप करता है। इसी प्रकार आप्तजन के सत्सङ्ग से मलिनता, तमोगुण की प्रवृत्ति, क्रोधभावना और निन्दा से परे हो जाता है ॥८॥
विषय
'दुरित-द्रोह - आक्रोश व अनृत' [नाश]
पदार्थ
[१] हे (आप:) = जलो ! (यत् किञ्च) = जो कुछ भी (मयि दुरितम्) = मेरे में अशुभ आचरण आ जाता है । (इदम्) = इसको प्रवहत आप बहा कर दूर कर दो। जल शरीर के मलों व रोगों को ही दूर करें, यह बात नहीं है। ये जल मानस मलों को भी, क्रोधादि को दूर करनेवाले हैं। इनके ठीक प्रयोग से स्वस्थ शरीर में मन भी स्वस्थ होता है । [२] (यद्वा) = और जो (अहम्) = मैं (अभिदुद्रोह) = किसी के प्रति द्रोह की भावना को करता हूँ, उसे भी आप बहा दो । [२] (यद्वा) = और जो (शेपे) = मैं क्रोधवश किसी को शाप देता हूँ, गाली आदि देता हूँ, उस सब आक्रोश को ये जल मेरे से दूर करें। [४] (उत) = और (अनृतम्) = सब अनृत को भी ये जल हमारे से दूर करें। हमारा सब व्यवहार ऋत को लिये हुए हो ।
भावार्थ
भावार्थ- जलों के समुचित प्रयोग से हम 'दुरित-द्रोह - आक्रोश व अनृत' से बचें।
विषय
आपः। आप्त जनों के कर्त्तव्य। जलों से उनकी तुलना। जलों का रोगों को, और आप्तों का दुर्भावों और पापों को दूर करने का कर्तव्य।
भावार्थ
व्याख्या देखो मं० १। सू० २३। मन्त्र २२॥ इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिन्धुद्वीपो वाम्बरीष ऋषिः। आपो देवताः॥ छन्दः-१—४, ६ गायत्री। ५ वर्धमाना गायत्री। ७ प्रतिष्ठा गायत्री ८, ९ अनुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(आपः) हे आपः ! (इदम्) इदं प्रसिद्धं शरीरोपलिप्तं मलं (प्रवहत) प्रवहत-दूरीकुरुत, तथा (यत् किञ्च दुरितं मयि) यत् किमपि दुरितं दुर्गतगमनं यत्-तत् तमोऽसावधानत्वं मयि भवेत् तदपि दूरं गमयत “सूर्य-उद्यन्। दिवाकरोऽति द्युम्नैस्तमांसि विश्वातारीद् दुरितानि शुक्रः” [अथर्व० १३।२।२४] (यत्-वा) यच्च (अहम्-अभिदुद्रोह) अहं द्रोहं क्रोधं कुर्यां तदपि दूरीकुरुत (यत्-वा) यच्च (उत) अपि (अनृतं शेपे) असत्यं शपामि-अपवदामि, निन्दामि-अन्यथा प्रलपामि वा तदपि मत्तो दूरीकुरुत ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Holy waters, wash off all this negativity and whatever is ill or deficient in me, or whatever I disapprove and hate, or whatever wrong, false or indecent I may speak or do.
मराठी (1)
भावार्थ
जल माणसाच्या देहातील मल वेगळे करते. तमोगुण, आलस्य, असावधानता मिटविते. क्रोध शांत करते. वाईट बोलणे, निंदा करणे, अहितकारक वचन बोलण्याने उत्पन्न झालेले क्लेशही दूर करते. ती प्रवृत्ती नष्ट करते. पापकर्म घडल्यास पश्चात्ताप करताना मनुष्य जलपान, जलाने स्नान, नेत्रमार्जन करतो. त्याच प्रकारे आप्त जनांच्या सत्संगाने, मलिनता, तमोगुणाची प्रवृत्ती, क्रोधभावना व निंदा नष्ट होते. ॥८॥
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